तहलका हिंदी.कॉम में शोमा चौधरी ने राहुल गांधी के हालिया दौरों से उपजे सवालों पर आधारित एक विश्लेषण पथरीला डगर, लंबा सफर, पथिक अग्रसर लिखा है. पढ़ने के बाद मैंने अपनी प्रतिक्रिया वहां डाल दी, सोचा आपसे भी साझा कर ली जाए. लिहाज़ा ये चंद पंक्तियां:
राहुल गांधी से विस्तृत जान-पहचान कराने के लिए आपका शुक्रिया. बस एक अनुरोध, राहुलजी तक यदि पहुंचाया जा सके तो कृपया ज़रूर प्रयास कीजिएगा: जिस ग़रीबी, मुफ़लीसी, दलितों और आदिवासियों की बदहाली को जानने, समझने, महसूसने के लिए राहुलजी देश के दूर-दराज का दौरा कर रहे हैं; दिल्ली में भी महसूस कर सकते हैं. कैसे मान लें कि वे बंत सिंह को नहीं जानते जिनके हाथ-पांव अमीर जाटों ने काट लिया था पंजाब में ... संभव है व्यस्ताओं की वजह से राहुल तहलका पढ़ने का समय न निकाल पाते हों पर तहलका ने बंत सिंह के इलाज के लिए जो अभियान छेड़ा था आर्थिक मदद जुटाने का, राहुलजी की सलाहकार मंडली के किसी सहृदय सदस्य ने उन्हें शायद बताया भी हो (बशर्ते उन्होंने ख़ुद महसूस किया हो). नर्मदा से लेकर नेतरहाट, कोयल कारो ... तमाम जगहों पर आदिवासियों के साथ हो रहे छल से राहुलजी वाकिफ़ तो होंगे ही. केरल में जारी मछुआरों के संघर्ष ने भी कभी राहुलजी की चेतना को दस्तक दी हो. शायद राहुलजी को किसी ने ये भी बताया हो कि फिलहाल कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज प्रॉजेक्ट में मज़दूरी करने वालों में दलितों और आदिवासियों की ही बड़ी तादाद है. दिल्ली में भवनों और सड़कों के निर्माण में लगे कामगारों में दलितों और आदिवासियों की वही आबादी शामिल हैं जिनके नाते-रिश्तेदारों को कहीं नक्सली तो कहीं फिरकापरस्त बता कर सलाखों के अंदर रखा गया है, और जिनका बहुत बड़ा तबक़ा कहीं-कहीं देश के 'विकास' के नाम पर बेदखल कर दिया गया है. राहुलजी ये भी जानते होंगे कि दलित घरों के बच्चों को आज भी राजधानी दिल्ली के स्कूलों में बहुत मुश्किल से दाखिला मिल पाता है, हज़ारों बाहर ही रह जाते हैं. उनके दोपहर के भोजन को सरकारी कर्मचारी और अधिकारी मिलकर चट कर देते हैं. दुर्व्यवहार झेलने के लिए जैसे वे जाते ही हैं स्कूलों में. राहुलजी भूख, भय और भ्रष्टाचार की चपेट में अकसर दलित और आदिवासी ही आते रहे हैं, समय और स्थान चाहे जो भी रहा हो. जब दौरा कर ही रहे हैं राहुलजी तो कहिएगा दिल्ली में कुछ जगहों पर मैं आपको घुमाना चाहूंगा जहां के दलित बच्चे महानगर में रहने के बावजूद अपने लिए जाति प्रमाण पत्र भी नहीं बनवा पा रहे हैं. ऐसे तो घूमते ही रह जाइएगा आप. विद्वान सलाहकार मंडल तो आपके साथ चिपक कर संगठन में रसूखदार तो बने रहना चाहेंगे ही. उनके पास सलाहों का जखीरा है. आपको देश भर में दौडा-दौड़ा कर थका देंगे उसके बाद आप और कुछ सोचने लायक नहीं रह जाएंगे. मैं नयी बात नहीं कह रहा हूं. समय मिले तो विचार कीजिएगा.
देखिये कहाँ तक आपकी बात पहुँच पाती है. शुभकामनाऐं.
ReplyDeletebaat to pahunchegee hee..aur haan Dur talak...........
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