आम तौर पर एएमयू के किसी अन्य एल्युम्नायी की तरह एहसान भी हमेशा एएमयू की समृद्ध परंपरा का जमकर
वैसे तो एहसान फक्कड़ मिजाज़ी इंसान है, उसकी रोज़मर्रा आम तौर पर उसे भी मालूम नहीं होती। बिना किसी को बताए आठ-आठ दिनों तक शहर से ग़ायब हो जाना, दिन-दिन भर खाना नहीं खाना, जमकर दारू पीना, सिगरेट तो जैसे उसकी प्रेमिका है, हमेशा उसे दिल के पास कमीज़ की जेब में ही रहती है। लेकिन आज उसे देखकर आदर्श बाबु से रहा नहीं गया, ‘कितने दिन हो गए दारू पिये? लगता है बहुत दिनों से गला तर नहीं हुआ है नहीं तो अब तक तो एहसान कई किस्से सुना चुका होता।’
गुनगान करता है। वहां गुज़ारे अपने दिनों के किस्से वह यार दोस्तों के बीच इतनी बार सुना चुका है कि अब तो कई बार ऐसा होता है कि जैसे ही वह किसी वाक़या की शुरुआत करता है दोस्तों में से कोई न कोई उसे सफलतापूर्वक पूरा कर देता है। वही एहसान तीसरा पैग गटकने के बाद नूर, मज़ाज, फैज़, साहिर, कलिम अज़ीज और न जाने किन-किन के नाम पर शे’र-ओ-शायरी की जमकर बर्बादी करने लगता है। उसकी इस हरकत से आदर्श बाबु तो क्या, समूची मंडली यह मान लेती है कि ग़ालिब की असली औलाद वही है। नौबत यहां तक आ जाती है कि उसे चुप रहने के लिए ‘सामूहिक धमकियां’ मिलने लगती है। स्मृति न हो तो यारों के आगे उसकी चूं भी न निकले। वह इस तीसरे पैग के बाद वाले एहसान की फ़ैन है। एहसान के शायरी उगलने भर की देरी है, स्मृति की रेनॉल्ड्स डायरी पर अपना काम शुरू कर देती है। अकसर ऐसा होता है कि हू-ब-हू डायरी पर न उतार पाने के कारण स्मृति ‘वाह! वाह! एक बार और एहसान!’ कहती है। फिर तो एहसान स्मृति के निवेदन में न केवल पिछली शायरी को धीमी गति के बुलेटिन की तरह पढ़ता है बल्कि अंग्रेज़ी में उसके माने भी बताता है।बहुत दिनों बाद आज दफ़्तर से लौटते वक्त माल रोड पर एहसान और आदर्श बाबु का आमना-सामना हो गया। बड़ी उत्सुकता से दोनों सड़क पर ही गले मिले। ‘कहां हो एहसान आजकल तुम, बिल्कुल दिखना बंद हो गए’, आदर्श बाबु ने पूछा। ‘यहीं हैं, आपके ही शहर में। ख़ाक छान रहे हैं। आप बताईए, कैसा चल रहा है आपका रिसर्च?’ एहसान ने चेहरे पर सहजता ओढ़े हुए बोला। लेकिन आदर्श बाबु भी कम नहीं हैं। किसी सधे हुए भाव विशेषज्ञ की तरह उन्होंने कहा, ‘पुत के पांव पालने में दिख जाते हैं एहसान मियां! मुझसे मत छुपाओ। वैसे भी यार, डॉक्टर से बीमारी, वकील से जुर्म और दोस्तों से परेशानी नहीं छुपाया करते हैं।’
‘क्या बात है! आप तो आज बुजुर्गों की तरह बात कर रहे हैं। सब ठीक-ठीक तो है? लगता है मोहतरमा वकील साहिबा
आप तो साला सीबीआई की तरह सबकुछ एक ही बार में उगलवा लेना चाहते हैं। चलिए एक ख़ुशख़बरी देता हूं, मुस्लिम पॉलिटिक्स वाला मेरा पेपर ब्राजील वाले यूथ कॉन्फ़्रेंस के लिए सिलेक्ट हो गया है। कल ही कंफ़र्मेशन आया है। टू ऐंड फ़्रो हवाई जहाज का टिकट भेज रहे हैं, साथ में अच्छा-ख़ासा परडियम भी है। चलिए, दूसरी ख़ुशख़बरी भी दे ही दूं। एक जगह बात चल रही है काम की, अपने मन का तो नहीं है लेकिन पैसा ठीक-ठाक ऑफ़र कर रहे हैं।
ने आपको भी कुछ जुमले सिखा दियें हैं’, एहसान ने एक बार फिर सामान्य दिखने की कोशिश की। वैसे तो एहसान फक्कड़ मिजाज़ी इंसान है, उसकी रोज़मर्रा आम तौर पर उसे भी मालूम नहीं होती। बिना किसी को बताए आठ-आठ दिनों तक शहर से ग़ायब हो जाना, दिन-दिन भर खाना नहीं खाना, जमकर दारू पीना, सिगरेट तो जैसे उसकी प्रेमिका है, हमेशा उसे दिल के पास कमीज़ की जेब में ही रहती है। लेकिन आज उसे देखकर आदर्श बाबु से रहा नहीं गया, ‘कितने दिन हो गए दारू पिये? लगता है बहुत दिनों से गला तर नहीं हुआ है नहीं तो अब तक तो एहसान कई किस्से सुना चुका होता।’ हाज़िरजवाबी एहसान कहां पीछे रहने वाला था। ‘आप तो साला सीबीआई की तरह सबकुछ एक ही बार में उगलवा लेना चाहते हैं। चलिए एक ख़ुशख़बरी देता हूं, मुस्लिम पॉलिटिक्स वाला मेरा पेपर ब्राजील वाले यूथ कॉन्फ़्रेंस के लिए सिलेक्ट हो गया है। कल ही कंफ़र्मेशन आया है। टू ऐंड फ़्रो हवाई जहाज का टिकट भेज रहे हैं, साथ में अच्छा-ख़ासा परडियम भी है। चलिए, दूसरी ख़ुशख़बरी भी दे ही दूं। एक जगह बात चल रही है काम की, अपने मन का तो नहीं है लेकिन पैसा ठीक-ठाक ऑफ़र कर रहे हैं।’ आदर्श बाबु ने तपाक से कहा, ‘बधइयां! मियां बधइयां! तुम तो बुद्धिजीवियों की जमात में शामिल हो गए। एक साथ दोनों हाथों में लड्डू। चलो, इसी ख़ुशी में वोडका आज मेरी तरफ़ से।’ ‘क्या बात है! ग़ालिब की परेशानियां भी ऐसे ही दूर हुआ करती थीं’, चहका एहसान। अब दोनों ख़ैबर पास वाले ठेके की ओर चल पड़े।
...हम्म
ReplyDeleteपर हमने तो सुना है कि खैबरपास वाले ठेके की वोडका में दम नहीं... शायद मिलावटी रखते हैं।
अरे नहीं, ऐसा की चकरधिन्नी बना दे:)
ReplyDeleteआपकी ये राय कॉम्प्लान रही.