तू जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत पर यक़ीन कर, अगर कहीं हैं स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर ... गा रहे थे हम लोग. संवेदना मार्च जनपथ मार्केट से गुजर रहा था. हममें से कुछ के हाथों में दान-पात्र थे. लोग हमें कौतूहल भरी नजरों से देख रहे थे और उन्हीं में से कुछ हमारे दान-पात्रों में कुछ डालते जा रहे थे. ये बिहार के बाढ़ पीडितों के लिए राहत के लिए किया जा रहा था. हमारा गाना ख़त्म भी नहीं हुआ था कि दो ज़ोरदार धमाके हुए. साथ चल रही मालविका ने पूछा, 'सर ये किस चीज़ की आवाज़ है ?' कबूतर उड़ाने के लिए किसी ने पटाखे छोड़े हैं शायद, कहकर मैंने मामले को हल्का करना चाहा.
हम गाते हुए जंतर-मंतर की तरफ़ बढ रहे थे. अफ़रातफ़री-सी शुरू हो गयी थी. इसी बीच ग्रीष्मा ने कहा कि उसके पापा ने फोन करके बताया है कि दिल्ली में सिरीयल ब्लास्ट हो रहा है. करोलबाग और सेंट्रल पार्क में हो चुके हैं धमाके. यानी जिसे मैंने कबूतर उड़ाने वाला पटाखा कहा था अब वो सचमूच का बम-विस्फोट साबित हो चुका था. सेंट्रल पार्क से केवल आधा किलोमीटर दूर थे हम. चारों ओर से पुलिस और एम्बुलेंस उधर ही जा रही थी. हमारे पीछे-पीछे चल रहे एक वायरलेस वाले सिपाही ने हमसे दो-दो के ग्रुप में जल्दी से जल्दी इलाक़ा छोड़ देने की लगभग मिन्नत ही कर रहे थे. आखिरकार, हमें वहां से हटना पड़ा.
कुछ लोग सेंट्रल पार्क जाकर वोलंटियरी भी करना चाह रहे थे. पर देर हो चुकी थी. हमें भगाने वाले लोग हमसे ज़्यादा प्रतिबद्ध निकले. गजब की भीड़ थी मेट्रो में. पहले कभी भी वैसी भीड़ नहीं देखी. तिल रखने की जगह भी नहीं थी. किलकारी और कई अन्य साथियों तो फर्श पर ही बैठ गए. थके थे.
पल भर में ही दिल्ली और बाहर से तमाम दोस्तों के मैसेज आ गए. हालचाल जानना चाह रहे थे वे. दिल्ली के कुछ दोस्तों को मालूम था कि आज बिहार फ़्लड रिलीफ़ नेटवर्क की ओर से संवेदना मार्च निकलने वाला है. कई दोस्तों आशंकित थे. नौ बजे के क़रीब जब फोन चालू हुआ तो सबको बताया कि ठीक हैं हम लोग और मार्च ठीक ठाक रहा. तक़रीबन तीन हज़ार रुपए भी जमा हुए.
पता चला है कि कुछ संगठनों ने जिम्मेदारी ली है इस सिरीयल ब्लास्ट की. मुझे नहीं मालूम कि कैसे लोग हैं ये जो ऐसे विस्फोटों के बाद जिम्मा झटकने लगते हैं. इस झटकदारी से अगर कोई किसी मसले को हल कर लेने का मंसूबा रखता है तो भइया एक नहीं हज़ारो-लाखों बार उन्हें पटखनी खानी होगी. कौन सा समाज इस बर्बरता की तरफदारी करेगा. ये निहायत ही खोखला और कायराना काम है.
के शिकार हुए लोगों के प्रति व्यक्त करने का कोई नहीं है मेरे पास. इस क्षति की भरपाई कैसे होगी, नहीं मालूम. हां, आगे न हो इसके लिए समाज में विश्वास का माहौल क़ायम करना बेहद ज़रूरी है. कैसे होगा
13.9.08
12.9.08
बिहार बाढ़ पीड़ितों के साथ एकजुटता के लिए सामने आएं
बिहार फ़्लड रिलीफ़ नेटवर्क की ओर से बिहार बाढ़ पीडितों के समर्थन में जारी अपील
प्रिय साथियों
बिहार के शोक के नाम से जानी जानेवाली कोसी नदी ने अपने साथ हुई छेड़छाड़ के प्रति अपना ग़ुस्सा दिखाते हुए तटबंधों को तोड़ दिया है। उत्तर बिहार के 15 ज़िले के लोगों की ज़िंदगी और रोज़गार पानी के धारों के साथ बह चली है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से राज्य के लगभग 30 लाख लोग अपने घर, रोज़गार और सम्मान से वंचित हो गए हैं। अपनी मेहनत से कमाकर खानेवाले लोग मुट्ठी-भर दाने के लिए मुहताज हो गए हैं। कार्यकर्ता और बचाव और राहत कार्य में जुटे गंभीर विश्लेषकों का मानना है कि मृतकों और प्रभावितों की संख्या का सही आकलन तभी लगाया जा सकता है जब बाढ़ उतर जाए और सारे लोग अपनी जगह पर वापस आ जाएं। इसकी संभावना भी कम ही दिखाई देती है क्योंकि अभी से लोग बड़ी संख्या में पनाह और रोज़गार की तलाश में दिल्ली, पंजाब और दूसरे छोटे-बड़े शहरों की ओर पलायन करने लग गए हैं। एक अख़बार के अनुसार 1 लाख हेक्टेयर या 2.5 लाख एकड़ की खेती तबाह हो गई है। इससे बिहार की पहले से बिगड़ी खाद्य-स्थिति पर और भी बुरा असर पड़ेगा और क्षेत्र की जनसंख्या को पोषित करने की क्षमता में तीव्र गिरावट निश्चित है।
दोस्तो, जैसे-जैसे बाढ़ के पानी के उतरने की ख़बर आ रही है मीडिया के लिए बाढ़ की ख़बर ग़ैर-ज़रूरी होती जा रही है। बिहार सरकार ने मान लिया है कि बचाव का काम पूरा हो चुका है और अब बचाव कार्य की कोई ज़रूरत नहीं रह गई है। सरकार ने यह घोषणा भी कर दी है लेकिन बचाव और राहत कार्य से जुड़े एक प्रोफ़ेसर कार्यकर्ता ने सेना के एक महत्वपूर्ण अफ़सर के हवाले से कहा है कि अभी तक 3/4 लोग यहां-वहां बाढ़ के पानी में फंसे हैं और उनतक राहत का कोई सामान नहीं पहुंच रहा है।
अभी समय की मांग है कि सभी प्रभावित और बाढ़ में फंसे लोगों को बिना और समय गंवाए सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया जाए। बाढ़ग्रस्त इलाक़ांे से यह ख़बर आ रही है कि बचाव और राहत कार्य में दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ बड़े स्तर पर भेदभाव किया जा रहा है। हम सभी का यह दायित्व है कि सरकारों और प्रशासन पर यह दबाव बनाया जाए कि वे जाति-धर्म और दूसरी सभी दीवारों को भूलकर सभी प्रभावित लोगों को देश का समान नागरिक मानकर अपनी सेवाएं पहुंचाएं।
दोस्तो, बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में राहत सामग्रियों की बेहद कमी है। कई सामाजिक संस्थाओं, राज्यों की सरकारों और दूसरे समूहों ने अपनी इस ज़िम्मेदारी को समझते हुए बाढ़ पीड़ितों के साथ अपनी एकजुटता का परिचय दिया है और राहत के कामों में जुटी हैं। लेकिन इस बाढ़ से जिस स्तर की तबाही आई है उससे लड़ने के लिए इतना सहयोग काफ़ी नहीं है। बिहार की सरकार द्वारा कोसी नदी तटबंध के टूटने के पहले और बाद में जिस तरह की लापरवाहियां बरती गई हैं वे जगज़ाहिर हैं। बचाव और राहत कार्यों को पूरा करने में भी सरकार ने अपनी अक्षमता का खुलकर प्रदर्शन किया है। इन कारणों से सरकारी पुनर्निर्माण की संभावनाएं भी शक के घेरे में आ जाती हैं। इसलिए जागरूक नागरिकों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि बचाव और राहत कार्यों पर कड़ी नज़र रखें और राहत सामग्री सही हक़दारों तक पहुंचे इसकी भी गारंटी करें।
दोस्तो, इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि बाढ़ का पानी जैसे-जैसे उतरेगा मानवीय अपील के कारण होने वाले राहत कार्य भी शिथिल पड़ते जाएंगे। पीड़ित लोगों की यादों में बाक़ी रह जाएंगी अपने अपनों, घर और रोज़गार की तबाही की तस्वीरें और एक ऐसा निराशाजनक भविष्य जो किसी का भी दिल दहला दे। इसलिए हमारी यह भी मांग होनी चाहिए कि सभी प्रभिावित लोगों का पूरा पुनस्र्थापन हो। जीवन और मानवता के पुनर्निर्माण के इस काम में हमें अपनी भूमिका भी तय करनी होगी। अगर हम इस काम में असमर्थ रहते हैं तो पलायन का एक ऐसा दौर चलेगा जो ग़रीबों के जीवन को और भी कठिन बना देगा और मानवाधिकारों की सभी लड़ाइयों को कमज़ोर कर देगा।
दिल्ली के सजग नागरिकों, कार्यकर्ताओं और सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने मिलकर बिहार फ़्लड रिलीफ़ नेटवर्क नाम से एक मोर्चा बनाया है जो बाढ़ पीड़ितों के अधिकारों के लिए काम करनेवाले लोगों और संस्थाओं के कामों में अपना सहयोग दे रहा है। आप भी इस मोर्चे से जुड़ें और बिहार के बाढ़ पीड़ितों के जीवन के पुनर्निर्माण के काम में अपना सहयोग सुनिश्चित करें।
ज़्यादा जानकारी के लिए संपर्क करें
राकेश सिंह फ़ोनः 9811972872 ईमेलः rakeshjee@gmail.com
विनय सिंह फ़ोनः 9810361918 ईमेलः kumarvinaysingh@gmail.com
इश्तियाक़ अहमद फ़ोनः 9968329198 ईमेलः muktigami@gmail.com
प्रिय साथियों
बिहार के शोक के नाम से जानी जानेवाली कोसी नदी ने अपने साथ हुई छेड़छाड़ के प्रति अपना ग़ुस्सा दिखाते हुए तटबंधों को तोड़ दिया है। उत्तर बिहार के 15 ज़िले के लोगों की ज़िंदगी और रोज़गार पानी के धारों के साथ बह चली है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से राज्य के लगभग 30 लाख लोग अपने घर, रोज़गार और सम्मान से वंचित हो गए हैं। अपनी मेहनत से कमाकर खानेवाले लोग मुट्ठी-भर दाने के लिए मुहताज हो गए हैं। कार्यकर्ता और बचाव और राहत कार्य में जुटे गंभीर विश्लेषकों का मानना है कि मृतकों और प्रभावितों की संख्या का सही आकलन तभी लगाया जा सकता है जब बाढ़ उतर जाए और सारे लोग अपनी जगह पर वापस आ जाएं। इसकी संभावना भी कम ही दिखाई देती है क्योंकि अभी से लोग बड़ी संख्या में पनाह और रोज़गार की तलाश में दिल्ली, पंजाब और दूसरे छोटे-बड़े शहरों की ओर पलायन करने लग गए हैं। एक अख़बार के अनुसार 1 लाख हेक्टेयर या 2.5 लाख एकड़ की खेती तबाह हो गई है। इससे बिहार की पहले से बिगड़ी खाद्य-स्थिति पर और भी बुरा असर पड़ेगा और क्षेत्र की जनसंख्या को पोषित करने की क्षमता में तीव्र गिरावट निश्चित है।
दोस्तो, जैसे-जैसे बाढ़ के पानी के उतरने की ख़बर आ रही है मीडिया के लिए बाढ़ की ख़बर ग़ैर-ज़रूरी होती जा रही है। बिहार सरकार ने मान लिया है कि बचाव का काम पूरा हो चुका है और अब बचाव कार्य की कोई ज़रूरत नहीं रह गई है। सरकार ने यह घोषणा भी कर दी है लेकिन बचाव और राहत कार्य से जुड़े एक प्रोफ़ेसर कार्यकर्ता ने सेना के एक महत्वपूर्ण अफ़सर के हवाले से कहा है कि अभी तक 3/4 लोग यहां-वहां बाढ़ के पानी में फंसे हैं और उनतक राहत का कोई सामान नहीं पहुंच रहा है।
अभी समय की मांग है कि सभी प्रभावित और बाढ़ में फंसे लोगों को बिना और समय गंवाए सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया जाए। बाढ़ग्रस्त इलाक़ांे से यह ख़बर आ रही है कि बचाव और राहत कार्य में दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ बड़े स्तर पर भेदभाव किया जा रहा है। हम सभी का यह दायित्व है कि सरकारों और प्रशासन पर यह दबाव बनाया जाए कि वे जाति-धर्म और दूसरी सभी दीवारों को भूलकर सभी प्रभावित लोगों को देश का समान नागरिक मानकर अपनी सेवाएं पहुंचाएं।
दोस्तो, बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में राहत सामग्रियों की बेहद कमी है। कई सामाजिक संस्थाओं, राज्यों की सरकारों और दूसरे समूहों ने अपनी इस ज़िम्मेदारी को समझते हुए बाढ़ पीड़ितों के साथ अपनी एकजुटता का परिचय दिया है और राहत के कामों में जुटी हैं। लेकिन इस बाढ़ से जिस स्तर की तबाही आई है उससे लड़ने के लिए इतना सहयोग काफ़ी नहीं है। बिहार की सरकार द्वारा कोसी नदी तटबंध के टूटने के पहले और बाद में जिस तरह की लापरवाहियां बरती गई हैं वे जगज़ाहिर हैं। बचाव और राहत कार्यों को पूरा करने में भी सरकार ने अपनी अक्षमता का खुलकर प्रदर्शन किया है। इन कारणों से सरकारी पुनर्निर्माण की संभावनाएं भी शक के घेरे में आ जाती हैं। इसलिए जागरूक नागरिकों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि बचाव और राहत कार्यों पर कड़ी नज़र रखें और राहत सामग्री सही हक़दारों तक पहुंचे इसकी भी गारंटी करें।
दोस्तो, इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि बाढ़ का पानी जैसे-जैसे उतरेगा मानवीय अपील के कारण होने वाले राहत कार्य भी शिथिल पड़ते जाएंगे। पीड़ित लोगों की यादों में बाक़ी रह जाएंगी अपने अपनों, घर और रोज़गार की तबाही की तस्वीरें और एक ऐसा निराशाजनक भविष्य जो किसी का भी दिल दहला दे। इसलिए हमारी यह भी मांग होनी चाहिए कि सभी प्रभिावित लोगों का पूरा पुनस्र्थापन हो। जीवन और मानवता के पुनर्निर्माण के इस काम में हमें अपनी भूमिका भी तय करनी होगी। अगर हम इस काम में असमर्थ रहते हैं तो पलायन का एक ऐसा दौर चलेगा जो ग़रीबों के जीवन को और भी कठिन बना देगा और मानवाधिकारों की सभी लड़ाइयों को कमज़ोर कर देगा।
दिल्ली के सजग नागरिकों, कार्यकर्ताओं और सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने मिलकर बिहार फ़्लड रिलीफ़ नेटवर्क नाम से एक मोर्चा बनाया है जो बाढ़ पीड़ितों के अधिकारों के लिए काम करनेवाले लोगों और संस्थाओं के कामों में अपना सहयोग दे रहा है। आप भी इस मोर्चे से जुड़ें और बिहार के बाढ़ पीड़ितों के जीवन के पुनर्निर्माण के काम में अपना सहयोग सुनिश्चित करें।
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राकेश सिंह फ़ोनः 9811972872 ईमेलः rakeshjee@gmail.com
विनय सिंह फ़ोनः 9810361918 ईमेलः kumarvinaysingh@gmail.com
इश्तियाक़ अहमद फ़ोनः 9968329198 ईमेलः muktigami@gmail.com
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