रवि नागर जाने-माने समकालीन गीतकार हैं. रचना, गाना, बजाना, झुमाना, सराबोर कर देना: रवि भाई की ख़ासियत है. रहते लखनउ में हैं पर देश का शायद ही कोई हिस्सा बचता हो जहां इनके चाहने वाले न बसते हों. शुरुआत इप्टा के दिनों में ही मुक्तिबोध, कबीर, खुसरो आदि से लगाव हुआ. ऐसा कि उनको गाने लगे. शास्त्रीय संगीत में महारत भी शायद आपने उन्हीं दिनों में हासिल कर ली थी. लखनउ में रहने की वज़ह से काफ़ी कुछ तो विरासत में ही पा गए थे. आजकल जनांदोलनों, साहित्य व लोक संस्कृतियों से उभरी-पगी रचनाओं का शास्त्रीय संगीत के साथ बड़ा दिलचस्प फ़्यूजन कर रहे हैं. पेश है अपने मित्रों के लिए उनका ये गीत जो उन्होंने अपने इलाहाबादी मित्र और बड़े भाई यश मालवीय के घर पर बड़े ही अनौपचारिक माहौल में गाया था.
सफ़र द्वार 14 अप्रैल को बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती के अवसर पर आयोजित 'अभिव्यक्ति' में इस बार दिल्ली में मित्रों को रवि नागर के गायन का लुत्फ़ उठाने का मौक़ा मिलेगा. विस्तृत जानकारी बाद में पोस्ट कर दी जाएगी. फिलहाल आनंद लें.
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