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9.11.09

हिंदी और क्षेत्रीय चैनलों के संबंधों की पड़ताल हो

महुआ पर भोजपुरी के पहले रियल्‍टी शो 'सुरसंग्राम' के फिनाले के बाद मैंने अपनी राय भोजपुरी में लिखने की कोशिश की थी. उस पर ब्‍लॉगर मित्र विनीत ने फेसबुक पर लगाए हमारे लिंक पर अपनी राय कुछ इस तरह ज़ाहिर की है. उनकी राय पर गंभीरतापूर्वक विचार होना चाहिए. क्‍योंकि टेलीविज़न, भाषा और उससे उपजती संस्‍कृति पर विनीत लगातार लिख पढ़ रहे हैं. हाल के दिनों में विभिन्‍न मंचों से भी उन्‍होंने यह प्रश्‍न उठाना शुरू किया है. भारत में टीवी को लेकर गंभीर लिखापढ़ी इतनी कम हुई है कि अकसर लोग उनकी बात सुन कर भौंचक रह जाते हैं या फिर 'टीवी ने सर्वस्‍व लूट लिया है'वाले अंदाज में खीस निकालते हुए आपे से बाहर हो जाते हैं. और तो और बुद्धिजीवियों की एक जमात भी इसमें शामिल है. मैं विनीत की उस टिप्‍पणी को यहां आपसे साझा करते हुए यह उम्‍मीद करता हूं कि इस सवाल पर चर्चा आगे बढ़ाने में आपका योगदान मिलेगा.

माफ कीजिएगा,भोजपुरी में लिखी पोस्ट का जबाब हिन्दी में दे रहा हूं। मैं नहीं जानता इसमें लिखना। अच्छी लगा कि आपने महुआ चैनल के जरिए एक बनती संभावना को पहचानने की कोशिश की है। मैंने नया ज्ञानोदय के अगस्त अंक में इसी मिजाज को लेकर एक लेख लिखा- टेलीविजन विरोधी आलोचना और रियलिटी शो। आपकी महुआ की इस संभावना को हिन्दी के तमाम रियलियी शो में देखने की कोशिश की थी और कई लोगों के बहुत ही उत्तेजित फोन आए। जाहिर सी बात है आप जिस रुप में महुआ को देख रहे हैं,इसी तरह से वो हिन्दी के रियलिटी शो देखने-समझने के पक्ष में नहीं थे। एक सवाल आपसे भी पूछना चाहता हूं कि क्या जिस नजरिए से आपने महुआ के इस रियलिटी शो को देखा और विश्लेषित किया है क्या हिन्दी रियलिटी शो को भी इसी रुप में भी विश्लेषित किया जा सकता है? क्योंकि सामाजिक पृष्ठभूमि को लेकर वहां भी कई ऐसे ही रेफरेंस मिल जाएंगे।
पोस्ट पढ़ते हुए लगा कि आप चैनल के एफर्ट को शायद इसलिए सपोर्ट कर रहे हैं कि वो भोजपुरी में है। कहीं-कहीं आपके बचपन का लगाव और नास्टॉल्जिक एटीट्यूड। नहीं तो हिन्दी चैनलों की तरह इसमें भी फूहड़ता,एक किस्म का सस्तापन है। मैं इसे किसी भी रुप में गलत या वकवास नहीं मानता लेकिन इस पर बात किया जाना इसलिए जरुरी है क्योंकि यही हिन्दी रियलिटी शो के आलोचना का आधार बनता है। इसलिए मुझे लगता है कि इस पोस्ट के जरिए क्षेत्रीय भाषाओं के कार्यक्रमों और चैनलों और हिन्दी चैनलों के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन की गुंजाइश बनती है.

6.11.09

जीत गइल भोजपुरिया

भाई मोहन राठौर आ आलोक कुमार के ढेर सारा बधाई! आज भोजपुरिया समाज आपन दू गो सितारन पर ठप्‍पा लगा देहलस. उत्तर प्रदेश के भाई मोहन राठौर आउर बिहार के आलोक कुमार संयुक्‍त रूप से विजेता घोषित कइल गइलन महुआ चैनल के सुर सग्राम कार्यक्रम में. हम त भोजपुरी आउर मैथिली के बीच बज्जिका नामक बोली में पैदा भइल बानि लेकिन अड़ोसी पड़ोसी आ संगी साथी के जौरे रह के भोजपुरी से हमार परिचय भइल. जब से महुआ चैनल शुरू भइल तबे से हमार इ कोशिश रहे कि कम से कम सुर संग्राम जरूर देखिं. आउर आज गांधी मैदान पटना से जब लाइव टे‍लीकास्‍ट भइल सुर सग्राम के फिनाले के, त दारू पिनाई बीचे में छोड़ के टीवी के आगे आ गइनि.
हमरा नइखे मालूम के जे हम लिख S तानि उ भोजपुरी ह कि ना, बाकी एतना जरूर कहेब कि महुआ के इ प्रोग्राम अपना किसिम के अलग कार्यक्रम रहे आउर बहुत मजेदार रहे.
हां, इ जरूर कहेब कि आज ग्रेंड फिनाले के नाम पर बंबइयो लटका झटका जरूर भइल., मजेदार बात इ कि अंतिम दुनो विजेता में से कौनो नामचीन ना रहस आज से पहिए. दिलदारनगर, यू पी के निवासी मोहन के बाबूजी कपड़ा के फेरी लगावलन जबकि लक्‍खीसराय, बिहार के रहे वाला आलोक कुमार के परिवारो के आज से पहिले कोई खास ररूख ना रहे. पर आज से इ दुनु जना और इनकर परिवार के समाज में एगो स्‍थान तय हो गइल. हमरा पूरा विश्‍वास बाटे कि दुनो जना भोजपुरी समाज के काफी आगे ले जइहन, विशेष करके भोजपुरी संगीत के.
हमार खयाल बा कि भारतीय रियल्‍टी शो के इतिहास में शायदे कबहुं अइसन होइल होखे कि एक के जगह दू जना के विजेता घोषित कइल गइल हो. कार्यक्रम के संचालक रवि किशन कार्यक्रम के समापन वेला में कहलन कि दुनो कंटेस्‍टेंट के पक्ष में आइल वोट में ढाई प्रतिशत के मार्जिन रह गइल, आउर एह बात के ध्‍यान में रख के महुआ चैनल के मालिक श्री तिवारीजी इ तय कइलन कि दुनो जना के विजेता वाला रकम मिली, माने दुनो जना के पचीस- पचीस लाख. केतना सुंदर विचार, केतना सुंदर प्रस्‍थापना. आज एह बजार के जमाना में जहां चवन्‍नी खातिर मार हो जाला, लूट मचल बा चारो तरफ; मनोरंजन त छोडिं, खबर देखावे-सुनावे के नाम पर धंधा करे वाला चैनल आधा घंटा के पैकेज में से लगभग आधा समय विज्ञापन पर खर्च करके माल कमावे के 'धर्मसूत्र' में लागल बाड़न, इ महुआ चैनल एगो मिशाल कायम कर दिहलस. पचीस लाख कौनो छोट रकम नइखे. आज तक के इतिहास में अइसन ना भइल.
सुर संग्राम के आपन अनुभव के आधार पर कहे के चाह S तानि कि मनोज तिवारी भोजपुरिए के ना बल्कि समस्‍त कला विरादरी में अद्भूद हवन. तत्‍काल, तत्‍क्षण कौनो विषय पर गीत बना के सुनावे के अद्भूद क्षमता के मालिक हवन मनोज. उन कर विचार, उन कर रहन-सहन से हो सकेला कि हम सहमत ना होखिं, बाकी उनकर इ गुण्‍ा के हम कायल हो गइनि.
आज के प्रोग्राम पटना के गांधी मैदान में भइल. उहे गांधी मैदान जहां जेपी के लोकनायक के उपाधि से नवाजल गइल, जेकरा बड़का बड़का आंदोलन के आरंभ के गौरव हासिल बा; आज ओह मैदान पर लालू प्रसाद यादव आउर रामविलास पासवान जैसन विभूतियन के सामने इ कार्यक्रम भइल. फेर कहेब कि इ पोलिटिशियन के काम-धंधा आउर आचरण से बहुत लोगन के दिक्‍कत होई बाकी इ हो सांच बा कि इ लोग के हिंदुस्‍तान के राजनीति में आउर समाज में एगो हैसियत बा. लोग एक आवाज पर आजो ओहिं गई दौड़ जाला जइसे गांधी और जेपी के आवाहन पर कबहूं दउड़ जात रहे. दुनो जना बैठल रहलें कार्यक्रम के समापन तक. बहुत शा‍लीनता से, कौने हबड़-दबड़ के बिना. ओ‍हु से ज़्यादा ध्‍यान देवे वाला बात इ कि कउनो तरह के अगधड़-भगदड़ ना भइल. सब शांति से निबट गइल. आउर देस-दुनिया के सामने अब इ एगो मिशाल बन गइल. बाकी मुखिया नितीशोजी के आबे के घोषणा भइल रहे मंच से, बाकी अंतिम समय में पता चलल कि तबियत ढीला होए के वजह से उ ना पहुंच सकलन. हो सकता कि तबीयत साचो में ठीक ना रहल होई, लेकिन लालूजी और रामविलासजी के उपस्थिति के वजह से अगर उ ना आइल होखस त हमरा विचार से आपन मा‍टी के साथ इ उनकर न्‍याय ना कहल जा सकेला. उनकरो मालूम होई कि पटना कौनो बंबई चाहे दिल्‍ली नइखे जहां रोजे अइसन कार्यक्रम होला. ओहू में कौनो बोली, कौनो संस्‍कृति (मनसे आउर ठाकरे वाला ना) के लेके अगर कुछ सुगबुहाट हो रहल बा त ओमे जरूर साथ रहे के चाहिं, इ हमार विचार बा.
हमार विचार से इ बहुत निमन शुरुआत कहल जा सकेला जहवां आपन माटी, आपन समाज से लोगन के इ मौका मिलल और कोई सितारा निकल के देस-दुनिया के सामने आ सकल.
टीवी पर देखाए जाए वाला कार्यक्रम, विशेषकर हिंदी मनोरंजन आउर समाचार चैनल के रंग ढंग के लेके हमरा मन में कोई विशेष श्रद्धा नइखे. जहां, नाग-नागिन, सांप-संपेरा, भू‍त-प्रेत से लेके यू ट्यूब तक से उधार लेहल प्रोग्राम आउर रियलिटी शो से पूरा के पूरा पैकेज देखावल जाला, उहां महुआ चैनल में काफी कुछ ओरिजन माल मिलेला देखे के. सुर संग्राम के अलावा 'भौजी नं. 1' जइसन कार्यक्रम शुरू कर के महुआ भोजपुरी समाजे में ना बल्कि बिहार-यूपी आउर ओकर प्रभाव वाला क्षेत्रन में आपन एगो विशेष जगह बना लेले बा. आउर इ प्रयास के जेतना सराहना आउर प्रशंसा कइल जाव, कमे होई.
अंत में फेर एतने कहे चाह S तानि कि सुर संग्राम के मार्फत महुआ चैनल बिहार-यूपी के देहात के लडिकन-लइकिन में आपन हुनर के लेके एगो आत्‍मविश्‍वास जगावे के काम कइलस ह. तारीफ होए के चाहिं. हर रियलिटी शो बहुत सुंदर और रियल ना होखेला. तनि उ 'लिटिल चैंप्स' के याद करिं, आउर याद करिं के जे दुनो बच्‍चा-बच्‍ची ओहमें एंकरिंग करत रहें उनकर बचपनाकहां हेरा गइल रहे. हम एहूं भ्रम में नइखिं कि महुआ में सब ठीके होई. काहे भइया, बजार के नियम त S सब पर बराबरे नूं लागू होई! हां, इ जरूर सवाल बाटे कि बजार के एहिं गई छूट्टा सांढ नियर हरहराए दिहल जाई कि ओके काबू में लावे के उपायो पर विचार होए के चाहिं. इ हमार जमाना के एगो बड़ा सवाल ह, आउर एकरा पर विचार होखे के चाहिं. लेकिन एह बजार में रह के भी अगर कहीं इंसानी मूल्‍य दिखाता, तS ओकर सराहना करे में कौनो हरज बाटे!! मोहन आउर आलोक भाई के बहुत बहुत मुबारकबाद आउर जीवन में सफलता खातिर हमार शुभकामना. सुर संग्राम कार्यक्रम से जुड़ल तमाम कलाकर, टेक्निशियन, सहयोगी, आयोजक, प्रायोजक आउर महुआ चैनल के तमाम स्‍टाफ के धन्‍यवाद.
भोजपुरी में लिखे के पहिला प्रयास बा, गलती-सलती क्षमा करेब.
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