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4.3.09

तू गलियों का राजा मैं महलों की रानी उर्फ़ रमोला की प्रेम कहानी

राहुल पंडिता हमारी पीढ़ी के जाने-माने लेखक और पत्रकार हैं. आजतक, ज़ी न्यूज़, इंडियन एक्सप्रेस, संडे इंडियन समूह के साथ काम करते हुए इन्होंने हमेशा बेलौस और संजीदगी के साथ लिखा है. राहुल के बारे में और ज़्यादा जानने के लिए टहलें सैनिटीसक्स पर. टेलीविज़न माध्यम द्वारा ख़बर निर्माण पर मीडियानगर 03 के लिए उन्होंने ख़ास तौर से लिखा था तू गलियों का राजा मैं महलों की रानी उर्फ़ रमोला की प्रेम कहानी. लीजिए आप भी लुत्फ़ और बढाइए चर्चा को आगे.

रिंग रोड पर ट्रैफिक पिछले चार घंटो से जाम था। ऊपर से सूरज आग उगल रहा था और नीचे काली, पीली, नीली और लाल गाड़ियों में बंद लोग पिघल रहे थे। हॉर्न बजाते-बजाते लोगो के अँगूठे सुन्‍न हो गए, लेकिन ट्रैफिक एक इंच भी आगे नही बढ़ पाया। हाहाकार मच गया था।

कई लोगो ने फ़ोन करके पुलिस की सहायता माँगी। कार चला रहे एक नौजवान ने गाड़ी मे बैठे बाक़ी लोगों से कहा, लगता है उन्हें फोन करना ही पड़ेगा। गाड़ी में बैठे कम से कम दो लोगों ने एक साथ पूछा - किन्हें? नौजवान ने अपने माथे से पसीने की बूँदों को तितर-बितर किया और बोल पड़ा, पुलिस कमिश्नर को। वो मेरी चाची के भाई की पत्नी की ननद के ममेरे भाई लगते हैं। उन्हें फोन करूँगा तभी पुलिस आएगी और ट्रैफिक जाम से छुटकारा मिलेगा।
लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि आखि़र ये ट्रैफिक जाम लगा कैसे। थोड़ी देर में सायरन की आवाज़ सुनायी दी। लगता है पुलिस ख़ुद ही आ गयी, नौजवान ने सायरन की आवाज़ सुनकर कहा, बेकार में उन्हें फोन करना पडता, अच्छा हुआ पुलिस ख़ुद ही आ गयी। ये कहकर उसने शीशे में अपने बाल ठीक किए और कार को स्टार्ट की मुद्रा में ढालकर, एसी चालू कर दिया।

उधर इंस्पेक्टर सत्यवीर ने अपना काला चश्मा दुरुस्त किया और मोबाइल फोन को पिस्तौल की तरह अपनी बेल्ट में खोंसा। उनके पीछे-पीछे दो कॉन्स्टेबल थे, जिनके हाथ में बेंत के लम्बे डंडे थे। कंट्रोल रूम से कॉल आने के बाद वो स्पॉट के लिए निकल पड़े थे। गाड़ियों के सैलाब में सत्यवीर को कुछ नहीं सूझ रहा था। शोर-शराबे से वैसे भी डॉक्‍टर ने दूर रहने की सलाह दी थी। लेकिन कमबख़्त ड्यूटी डॉक्टरी सलाह को कहाँ मानती है!

भीड़ को चीरते-चीरते पसीने की बूँदें इंस्पेक्टर की ख़ाकी क़मीज़ को तर कर गयी थी। काफी मशक्क़त के बाद वो आख़िरकार सामने पहुँचे। उनकी ज़बान से दो-चार गालियाँ बाहर निकलने के लिए हिलोरें मार रही थीं। लेकिन जब इंस्पेक्टर सत्यवीर सामने पहुँचे तो देखते क्या हैं कि कई रंग-बिरंगी ओबी वैन पूरा रास्ता रोके खड़ी हैं। जेनरेटर धुंआ उगल रहे हैं और क़रीब एक दर्जन कैमरा बीच सड़क पर पैनदाबाद हैं। कैमरों के सामने उतने ही रिपोर्टर कोने में पड़ी किसी चीज़ की तरफ़ इशारा करते हुए शब्द उगल रहे हैं। इंस्पेक्टर ने उस चीज़ की तरफ़ ग़ौर से देखा तो पाया कि वो एक कुतिया है जिसने अभी-अभी पाँच बच्चों को जन्म दिया है।

तो ये थी ट्रैफिक जाम की वजह!

फटफट चैनल का रिपोर्टर कैमरा के सामने लाइव ज्ञान बाँट रहा थाः
''जी नेहा, मैं आपको बता दूँ कि सभी पिल्ले पूरी तरह से स्वस्थ हैं और रिंग रोड पर किसी कुतिया के पाँच बच्चों को जन्म देने की ये पहली घटना है ...''
उसी सुबह ...
फटफट चैनल के एक्जे़क्यूटिव प्रोड्यूसर (इनपुट) का फोन बजा। देखा, फोन पर ब्यूरो चीफ उनसे बात करना चाह रहा है।
''हाँ बोलो।''
''सर वो नंबर 12 का फोन आया था अभी। उसकी रिपोर्ट के मुताबि़क एरिया नंबर 52 में एक गर्भवती कुतिया अपने पिल्लों को जन्म देने ही वाली है। मेरे ख़याल से ये आज एक बढिया लाइव इवेंट साबित हो सकता है।''
''अरे हाँ, सही कह रहे हो। एकदम ओबी वैन भेज दो वहाँ।''
''सर लेकिन एक दिक्क़त है। हमारी दो ओबी वैन तो आउट ऑफ़ स्टेशन है। एक तो उस आदमी के घर पर डिप्‍लॉयड है जिसने भविष्यवाणी की है कि वो परसों चार बजे मरेगा और दूसरी वहाँ जहाँ मल्लिका सहरावत एक दुकान पर अपनी रेसिपी पर आधरित लड्डू बनाएगी।''
''और तीसरी कहाँ है?''
''सर वो अभी सफदरजंग हॉस्पिटल रवाना कर दी है। डाक्टरों की हड़ताल के चलते दो लोगों की मौत हो गयी है।''
''अरे यार अस्पताल में तो कल भी लोग मरेंगे। वहाँ कल लाइव करेंगे। इस ओबी को तुरंत डाइवर्ट कर दो''
लाइव न्यूज़ का दौर था। एक चैनल की लाइव कवरेज प्लान को कोई प्रतिद्वंद्वी चैनल हाइजैक करने के लिए तैयार रहता था। हर चैनल में प्रतिद्वंद्वी चैनल के जासूस बैठे थे। सूचना को गुप्त रखने के लिए रिपोर्टरों को नाम की जगह नंबर से पहचाना जाने लगा था और कवरेज के एरिया को भी नंबर दे दिए गए थे।

फटफट चैनल में झटपट चैनल का एक जासूस एक्जे़क्यूटिव प्रोड्यूसर और ब्यूरॉ चीफ के बीच हुई बातचीत को सुन चुका था। उसने बाहर जाकर चुपचाप झटपट चैनल में अपने ‘गाडॅफादर’ को फोन कर सारी जानकारी दी। झटपट चैनल ने तुरंत एरिया की पहचान करवाकर अपने दो रिपोर्टर ओबी वैन के साथ स्पॉट पर भेज दिए।

आध घंटा देर से लाइव जाने का ग़म, ख़बरी चैनल के इनपुट एडिटर को सता रहा था। उसने आनन-फानन एक मीटिंग बुलायी जिसमें ये तय हुआ कि फटफट और झटपट चैनल को बीट करने के लिए स्टूडियो में कुछ खेल किया जाए। दो रिपोर्टर तो स्पॉट पर थे। इसके अलावा तय हुआ कि स्टूडियो डिस्कशन के लिए विशेषज्ञों को बुलाया जाए। गेस्ट कॉर्डिनेटर को तलब किया गया। उसने डिस्कशन के लिए एक ऐनिमल राइट्स ऐक्टिविस्ट और एक वेटेरिनरी डॉक्टर को स्टूडियो बुलाया।

उधर इंस्पेक्टर सत्यवीर ने एक रिपोर्टर का हाथ पकड़कर उससे कहा, ''अरे भैया ये तामझाम यहाँ से हटा दो, देख नहीं रहे लोगों को कितनी असुविध हो रही है।'' रिपोर्टर ने एक नज़र इस्पेक्टर की तरफ देखा और कहा, ''लोग, कहाँ हैं लोग! ये तो हमारे लिए सिर्फ़ साउंड बाइट बटोरने का ज़रिया है। अब आप जाइए, मुझे बाइट लेनी है।'' ये कहकर वो अपनी माइक लेकर आगे बढ़ा और एक कार में बैठी महिला के सामने माइक लगा कर उससे पूछा, ''कुतिया ने पाँच बच्चों को जन्म दिया, कैसा महसूस हो रहा है आपको?''

दूसरी तरफ, ख़बरी चैनल का स्पेशल प्रोग्राम शुरू हो गया। ऐंकर ने पहले स्पॉट पर रिपोर्टर के साथ चैट कर, स्टूडियो में बैठी वेटेरिनरी डॉक्टर को संबोधित किया, ''डॉक्टर साहब आपसे जानना चाहेंगे कि रिंग रोड जैसी भीड़-भाड़ वाली सड़क पर एक कुतिया के लिए पिल्लों को जन्म देना कितना मुश्किल है? क्या मनोस्थिति होती है ऐसे में एक कुतिया की?''

इतनी देर में फटफट चैनल ने ब्रेकिंग न्यूज़ का पट्टा लगाकर सनसनी फैला दी। चैनल की ऐंकर बोली, ''अब ताज़ा जानकारी के लिए चलते हैं सीध रिंग रोड जहाँ पर हमारे संवाददाता नंबर 12 हैं: जी बताइए क्या जानकारी है आपके पास?''

रिपोर्टर के एक हाथ में माइक था और दूसरे से वो अपना ‘इयरपीस’ ऐडजस्ट कर रहा था। क्यू मिलते ही वो फौरन बोल पड़ा, ''जी मैं आपको बता दूँ कि हमें जानकारी मिली है कि इस कुतिया का नाम रमोला है। कुछ महीने पहले तक ये पास की एक पॉश कॉलोनी के एक बँगले में रहती थी। लेकिन इसका प्यार गली के एक कुत्ते से हो गया जिसका नाम हमें अभी तक पता नहीं चला है। इसी प्यार के चलते वो महलों से गलियों में आ गयी।''

ये जानकारी मिलने के बाद चैनल की ग्राफिक्‍स टीम को हिदायत दी गयी कि वो स्पेशल प्रोग्राम के लिए एक स्टिंग बनाए। स्टिंग पर कुतिया की तस्वीर लगाकर, बग़ल में लिखा गया: रमोला का प्यार। उसके बाद, एक एसएमएस प्रतियोगिता भी शुरू की गयी, ‘क्या रमोला को उसका हक़ मिलना चाहिए?’

ख़बरी चैनल भला कहाँ पीछे रहने वाला था। वहाँ एक एडीटर ने सोच लिया था कि स्टूडियो डिस्कशन के ज़रिए ही दूसरी चैनलों को पीछे किया जा सकता है। इसलिए उसने गेस्ट कॉर्डिनेशन को आनन-फानन फोन लेने की हिदायात दी। स्टूडियो के बाहर से पहला फोन मशहूर फिल्‍म निर्देशक रमेश भट्ट का आया। परमाणु निरीक्षण से लेकर नर्मदा आंदोलन तक - सभी मुद्दों पर भट्ट साहब की राय जानना चैनलों के लिए एकदम ज़रूरी हो गया था। और हमेशा की तरह उन्होंने चैनलों को निराश नहीं किया। बोले, ''पाकिस्तान के साथ दोस्ती बढाने का इससे अच्छा मौक़ा कोई हो ही नहीं सकता। प्रधनमंत्री कार्यालय को तुरन्त एलान कर देना चाहिए कि कुत्तों के बीच क्रॉस बॉर्डर शादियों को बढ़ावा दिया जाएगा और ऐसे प्रयासों का सारा ख़र्चा सरकार वहन करेगी।'' इसके बाद भट्ट साहब ने जो कहा, उसकी प्रतिक्रिया के लिए पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को फोन लगाया गया। वहाँ की प्रवक्ता को तो इसी मौक़े का इंतज़ार था। वो बोलीं, ''कुत्तों की क्रॉस-बॉर्डर शादी तब तक मुमकिन नहीं हो सकती है जब तक हिन्दुस्तान कश्मीर वादी में अपनी फौज कम नहीं करता।''

पाकिस्तान की इस प्रतिक्रिया का असर मुंबई में तुरन्त देखा गया। वहाँ पर शिव सैनिकों ने रमोला के पुतले जलाए और कहा कि ऐसी घटनाओं से देश की संस्कृति भ्रष्ट हो रही है। उग्र भीड़ ने ‘डॉग फूड’ बेचने वाली कई दुकानों को भी तोड़-फोड़ डाला। दूसरी तरफ़ जावेद अख़्तर और राहुल बोस ने शिव सैनिकों के इस प्रदर्शन के ख़िलाफ़ टीवी कैमरों के सामने आवारा कुत्तों को बिस्कुट खिलाए।

शाम को एसएमएस प्रतियोगिता के नतीजे भी आ गए। अस्सी प्रतिशत देशवासियों ने कहा कि रमोला को उसका ‘हक़ मिलना चाहिए’। दस प्रतिशत ने कहा ‘नहीं’ और दस प्रतिशत की इस पर ‘कोई राय नहीं थी’। पहले पाँच एसएमएस करने वालों को चैनल ने ‘विपुल साड़ीज़’ और ‘रूपा अंडरवीयर’ की तरफ से पाँच हज़ार रुपए के गिफ्ट वाउचर भेंट किए। लाइव कवरेज का ज़माना था, इसलिए गिफ्ट भी उनके विजेताओं तक उसी दिन पहुँचाए गए।
उसी शाम मल्लिका सहरावत ने अपनी रेसिपी पर आधरित लड्डू बनाए। इलाज के अभाव में सफदरजंग हॉस्पिटल में तीन मरीज़ों की मौत हो गयी। आंध्रप्रदेश के एक गाँव में तीन किसानों ने क़र्ज़ से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या की।

अगली सुबह मल्लिका सहरावत की स्टोरी टेलीविज़न पर देखते हुए इंस्पेक्टर सत्यवीर नाश्ता कर रहे थे। उनकी पत्नी ने नाश्ता उसी दिन के अख़बार पर रखा हुआ था। पराँठे का एक टुकड़ा तोड़ते हुए इंस्पेक्टर की नज़र किसानों की आत्महत्या की ख़बर पर पड़ी और उनके ज़हन में कल के रिपोर्टर की छवि उभर आयी। इतने में उनकी पत्नी मुस्कराते हुए बेडरूम से निकलीं और उनके सामने एक पैकेट रख दिया। ''क्या है इसमें?'' इंस्पेक्टर ने पूछा। ''मुझे कल एक एसएमएस प्रतियोगिता में इनाम मिला। वो तो साड़ी दे रहे थे पर मुझे तुम्हारा ख़याल आया। सो, तुम्हारे लिए जाँघिए लिए हैं।'' उसकी मुस्कुराहट और गहरी हो गयी। न जाने इंस्पेक्टर सत्यवीर को क्या हुआ, उन्होंने नाश्ते की थाली एक तरफ सरकाई, टीवी बंद किया और बुदबुदाए - मादर... !

11.8.08

...शंका लघु ही है, दीर्घ नहीं

पढिए प्रोफ़ेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल के मंकीमैन के नाम खुला ख़त की अगली किस्त

यह चिट्ठी आपका अमूल्य समय नष्ट करने के लिए नहीं लिखी जा रही, महामहिम मंकी-मानव।

कोई ज्ञानी कहते भए कि आप आई.एस.आई का किरदार हैं तो कोई कहते भए कि आप बजरंगबली का क्रुद्धावतार हैं। किन्हीं ने कहा कि आप कल्पना का चमत्कार हैं तो किन्हीं ने कहा कि आप प्रदूषण के पुरस्कार हैं। एक बोले कि आप उन्हीं को दिखे जिन्होंने नशा किया, दूजे कहे कि आप तो हैं कलेक्टिव हिस्टीरिया जिसने देखते-देखते दिल्ली का दिल जीत लिया।

यों तो मैंने दीवान--सराय के संपादक रविकांत के कहने पर यह तूमार बाँधा, और यों कुछ अर्थसिद्धि का कारोबार साधा। कुछ हो भी गई, कुछ और हो जाए। सराय का चंदा दिन दूना रात चौगुना बढ़ता जाए। लेकिन इसके अलावा भी एक वजह है, वह यह कि उस दिन एक टीवी प्रोग्राम के चक्कर में श्री बी.पी. सिंघल के दर्शन भए जो नासा के खींचे फ़ोटू के आधार पर रामजी के सेतुबंध का अस्तित्व प्रमाणित कर गए। अपना चित्त प्रसन्न भया। सारा संदेह दूर गया। सिंघल जी निश्चिंत, उनका प्रसिद्ध ‘‘परिवार’’ निश्चिंत कि अब तो रामजी पर अंकल सामजी की मोहर लग गई। अमेरिकी स्वीकृति से बेचारों की राम-कथा समुद्र तर गई। अमेरिका को सुहाते तो पता नहीं इन आजकल के रामभक्तों को राम भाते या भाते! इतना ग्द्गद् कर देने वाला अनुभव था बी.पी. सिंघल साहब की सिंह गर्जना सुनना और ऊपर से उन्ही के श्रीमुख से तुम्हारे आस्तित्व के अकाट्य प्रमाण गुनना कि पत्र लिखे बिना मन नहीं माने। यों कसक तो रह गई मन में कि दिव्य दर्शन आपके नहीं हुए लेकिन कमी पूरी भई प्रवचन से जो प्रवास में सेवक ने नियमित रूप से सुने। कोई ज्ञानी कहते भए कि आप आई.एस.आई का किरदार हैं तो कोई कहते भए कि आप बजरंगबली का क्रुद्धावतार हैं। किन्हीं ने कहा कि आप कल्पना का चमत्कार हैं तो किन्हीं ने कहा कि आप प्रदूषण के पुरस्कार हैं। एक बोले कि आप उन्हीं को दिखे जिन्होंने नशा किया, दूजे कहे कि आप तो हैं कलेक्टिव हिस्टीरिया जिसने देखते-देखते दिल्ली का दिल जीत लिया। ये सब सुनकर अपन को याद भए बरसों पहले के ग्वालियर के श्री चंपतिया। वे भी यों ही आप की ही भाँति अवतरे थे और ग्वालियर निवासियों के हृदय में महीनों तक घर करे थे। हाँ, ये ज़रूर है कि उन्हें टीवी पर चर्चित होने का सुख मिला, वॉशिंगटन पोस्ट में ख़बर बनने का। वक़्त वक़्त की बात है; वक़्त की ही सब ख़ुराफ़ात है। एक वक़्त वो था जब चंपतियाजी सीधे-सीधे डिसमिस होते भए, एक वक़्त ये है जब आप ओवरनाइट सेलेब्रिटी बन गए। दिल्लीवासियों के दिल में बसे सो बस ही गए।
यों तो भैया लोग कहते हैं कि दिल के साथ दानिश भी ज़रूरी है; हृदय के साथ बुद्धि मनुष्य की मज़बूरी है लेकिन अपनी इक्कीसवीं सदी के पोस्ट-मॉडर्न दौर में तो दानिश हो या बुद्घि - वैसे ही कल्चरल मार्जिन पर पहुँच गई हैं, वहीं भली ठहरी - बड़ी दुःखदायी होवे है दानिश ससुरी। सो, प्रभु आप थे कलेक्टिव हिस्टीरिया - अपने लिए तो बन गए आप कल्चरल ऐण्ड पर्सनल नॉस्टैल्जिया, सो अपन ने ये ख़त आपको लिख दिया।
ये सराय वाले दोस्त-यार चाहते थे इस वर्ष इस नगर के कुछ समाचार। पढ़े-लिखे ठहरे। शहर का हाल-चाल, हालात का लेखा-जोखा, सालभर का देखा-भोगा दर्ज करने को पढ़े-लिखे लोग नहीं उत्सुक होंगे तो कौन होगा? लेकिन भैया मंकीमैन अपना ऐसा ठहरा कि अपने पढ़े-लिखे नहीं, बस लिखे-लिखे हैं - सो उठाई क़लम दिलदार, लिख डाला ये हाले जार जिसे अल्ला सुने सुने, तू तो सुन ही रहा है।
ये जो बीच-बीच में कुछ तुकबंदी सी हो गई है बंधुवरइससे उखड़ना मत। ये तो कुछ आउटडेटेड क़िस्म के कवियों की कुसंगति का प्रसाद है - वरना आजकल तो ऐन कविता के बीचोंबीच भी प्रोज़ ही आबाद है। जीवन हो या कविता - नगर हो या महानगरतुक दिखे तब , बची हो अगर!
एक सवाल सदियों से दुःखी किए है तुम्हारे वंशधरों को मित्रवर! लगता है तुम उसका सही उत्तर दे सकते हो। ट्राय मारे में क्या हर्ज है, बात यों है कि तुम सचमुच इस बात के ठोसतरीन प्रमाण हो कि हर वर्तमान में कुछ अतीत तो व्यापा ही रहता है। तुम - ‘‘मैन’’ हो लेकिन मंकी भी हो। नर हो, वानर भी हो। वर्तमान तो हो ही - अतीत के आगर भी हो - बल्कि थोड़ी तुक और झेलो तो भविष्य की गागर भी हो। इसलिए सोचता हूँ कि इस शंका समाधान के लिए तुम्ही को कष्ट दूँ। निश्चिंत रहो मित्रशंका लघु ही है, दीर्घ नहीं।
सो शंका इस प्रकार है। नैमिषारण्य में बैठने वाली ऋषियों की एसेंबली से लेकर सारे ज्ञानियों, सुधियों, बुधियों की चेतना से जो कुछ प्रोडक्ट और बाय-प्रोडेक्ट हमें प्राप्त हुए हैं, उनका सार मैंने यथामति यों समझा है कि मनुष्य के मा.चो. होने

ये अफ़सोस तो बना ही रह गया कि आपके प्रभाव से प्रेरित और आपकी व्याप्ति से विलक दिल्ली नगरिया का वातावरण प्रत्यक्ष सुन पाए देख पाए। कुछ महीने और रुक जाते तो क्या हर्ज था गुरु? कहाँ बिलाए गए? बता तो जाते कि गए कहाँ और क्यों? असर यज्ञ-हवन का पड़ा या पुलिस ऐक्शन का? प्रभाव महामानवसागर वासी भारत जन का पड़ा या जॉर्ज जी के, मोदी के परमप्रिय ऐक्शन-रिऐक्शन का? रौब तुमने होम मिनिस्टर के बयान का खाया या ज्ञानियों के ज्ञान का?

में तो कोई संदेह है नहीं। प्रश्न केवल यह है कि मनुष्य मा.चो. मूलतः है या भूलतः? इस प्रश्न पर अपन आगे भी लघु-दीर्घतर-नातिदीर्घ विमर्श करेंगे लेकिन सोचो ज़रूर इस पर - इस यक्ष प्रश्न पर कि मनुष्य मूलतः मा.चो. है या भूलतः?
माचो समझ गए ? वो आंग्ल-भाषा वाला नहीं - फ़ारसी देशज के समास वाला! यों तो ये सराय वाले मित्र अपनेओरलके बड़े साधक हैं, सो ओरल ट्रैडिशन के इस परमलोकप्रिय पद को बिना संकेत के भी लिखा जा सकता है, लेकिन भैया संस्कार बड़े से बड़े साधक के यहाँ बाधक बन जाते हैं - सो जो लिखा वही पढ़ना - मा.चो. को ठीक से गढ़ना और इस मूलचूल, बुनियादी फ़ंडामेंटल सवाल पर ग़ौर करना। इंतज़ार करेंगे - आप के प्रज्ञापूर्ण प्रत्युत्तर का।

वैसे, ये अफ़सोस तो बना ही रह गया कि आपके प्रभाव से प्रेरित और आपकी व्याप्ति से विलक दिल्ली नगरिया का वातावरण प्रत्यक्ष सुन पाए देख पाए। कुछ महीने और रुक जाते तो क्या हर्ज था गुरु? कहाँ बिलाए गए? बता तो जाते कि गए कहाँ और क्यों? असर यज्ञ-हवन का पड़ा या पुलिस ऐक्शन का? प्रभाव महामानवसागर वासी भारत जन का पड़ा या जॉर्ज जी के, मोदी के परमप्रिय ऐक्शन-रिऐक्शन का? रौब तुमने होम मिनिस्टर के बयान का खाया या ज्ञानियों के ज्ञान का?
चलो, कोई बात नहीं, ज़रूरत तो हमें तुम्हारी, तुम जैसों की, बार-बार पड़ेगी - मुलाक़ात इस बार नहीं तो फिर किसी बार होगी ही। तब तक पत्राचार ही सही - ‘मूलतभूलतः वाली गुत्थी पर तुम्हारी राय का इंतज़ार ही सही!