महुआ पर भोजपुरी के पहले रियल्टी शो 'सुरसंग्राम' के फिनाले के बाद मैंने अपनी राय भोजपुरी में लिखने की कोशिश की थी. उस पर ब्लॉगर मित्र विनीत ने फेसबुक पर लगाए हमारे लिंक पर अपनी राय कुछ इस तरह ज़ाहिर की है. उनकी राय पर गंभीरतापूर्वक विचार होना चाहिए. क्योंकि टेलीविज़न, भाषा और उससे उपजती संस्कृति पर विनीत लगातार लिख पढ़ रहे हैं. हाल के दिनों में विभिन्न मंचों से भी उन्होंने यह प्रश्न उठाना शुरू किया है. भारत में टीवी को लेकर गंभीर लिखापढ़ी इतनी कम हुई है कि अकसर लोग उनकी बात सुन कर भौंचक रह जाते हैं या फिर 'टीवी ने सर्वस्व लूट लिया है'वाले अंदाज में खीस निकालते हुए आपे से बाहर हो जाते हैं. और तो और बुद्धिजीवियों की एक जमात भी इसमें शामिल है. मैं विनीत की उस टिप्पणी को यहां आपसे साझा करते हुए यह उम्मीद करता हूं कि इस सवाल पर चर्चा आगे बढ़ाने में आपका योगदान मिलेगा.
माफ कीजिएगा,भोजपुरी में लिखी पोस्ट का जबाब हिन्दी में दे रहा हूं। मैं नहीं जानता इसमें लिखना। अच्छी लगा कि आपने महुआ चैनल के जरिए एक बनती संभावना को पहचानने की कोशिश की है। मैंने नया ज्ञानोदय के अगस्त अंक में इसी मिजाज को लेकर एक लेख लिखा- टेलीविजन विरोधी आलोचना और रियलिटी शो। आपकी महुआ की इस संभावना को हिन्दी के तमाम रियलियी शो में देखने की कोशिश की थी और कई लोगों के बहुत ही उत्तेजित फोन आए। जाहिर सी बात है आप जिस रुप में महुआ को देख रहे हैं,इसी तरह से वो हिन्दी के रियलिटी शो देखने-समझने के पक्ष में नहीं थे। एक सवाल आपसे भी पूछना चाहता हूं कि क्या जिस नजरिए से आपने महुआ के इस रियलिटी शो को देखा और विश्लेषित किया है क्या हिन्दी रियलिटी शो को भी इसी रुप में भी विश्लेषित किया जा सकता है? क्योंकि सामाजिक पृष्ठभूमि को लेकर वहां भी कई ऐसे ही रेफरेंस मिल जाएंगे।
पोस्ट पढ़ते हुए लगा कि आप चैनल के एफर्ट को शायद इसलिए सपोर्ट कर रहे हैं कि वो भोजपुरी में है। कहीं-कहीं आपके बचपन का लगाव और नास्टॉल्जिक एटीट्यूड। नहीं तो हिन्दी चैनलों की तरह इसमें भी फूहड़ता,एक किस्म का सस्तापन है। मैं इसे किसी भी रुप में गलत या वकवास नहीं मानता लेकिन इस पर बात किया जाना इसलिए जरुरी है क्योंकि यही हिन्दी रियलिटी शो के आलोचना का आधार बनता है। इसलिए मुझे लगता है कि इस पोस्ट के जरिए क्षेत्रीय भाषाओं के कार्यक्रमों और चैनलों और हिन्दी चैनलों के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन की गुंजाइश बनती है.
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