25.11.09

चैनलों की फुसफास

बंबई में लियोपोल्‍ड कैफे में शिवसेना की हुड़दंग पर विनीत ने आज एक पोस्‍ट लिखा है. कुछ तकनीकी दिक्‍कत की वजह से मेरी राय वहां पोस्‍ट नहीं हो पा रही है, लिहाज़ा यहां आपके साथ साझा कर रहा हूं:

क्‍या कहते हो भैया इसी एनडीटीवी को किसानों का प्रदर्शन शहर में अव्‍यवस्‍था फैलाता दिखता है! भाई शिवसेना या किसी भी सेना द्वारा भड़काए जाने वाले दंगे-फसादों का मैं भी घोरविरोधी हूं. पर कम से कम अपने विवेक को खुला रखता हूं कि अंध शिवसेना विरोध या अंध मनसे विरोध के चक्‍कर में बेहद महत्तवपूर्ण मसलों पर निगाह डालने से मेरी आंखें इनकार न दे.

किसानों के प्रदर्शन से शहर में अव्‍यवस्‍था फैलने के पीछे तर्क ये दिया गया कि प्रदर्शनकारियों ने जमकर शहर में उत्‍पात मचाया, सरकारी और निजी संपत्तियों को नुक्‍शान पहुंचाया, आदि-आदि. मैं उनकी बातों से इस बात से सहमत हूं कि हां, प्रदर्शनकारियों ने वैसा किया. पर सवाल ये है कि क्‍या सारे प्रदर्शनकारी हुड़दंग में शामिल थे? चलिए, इससे भी क्‍या हो जाएगा ... पर क्‍या उनकी मांग नाजायज़ थी, क्या देश के दूर-दराज़ से लोग बड़ा खुश होकर आते हैं दिल्‍ली में प्रदर्शन करने, जब प्रदर्शनकारी लाठी खाकर दर्द सहलाते जाते हैं तब कौन अव्‍यवस्‍था फैला रहा होता है और कौन निरंकुश? पंकज पचौरी और उनके सानिध्‍य में पत्रकारिता करने वालों को ज़रा इन बातों पर भी विचार करना होगा.

'हमलोग' वाले शीर्षस्‍थ पत्रकार साहब ये बता पाएंगे कि अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान जिस जंतर-मंतर पर 'उत्‍पात' मचा रहे थे वहीं देश भर के ग़रीब-गुर्बा और आदिवासी जमा होकर अपने ज़मीन पर अपने हक़ के लिए प्रतिरोध सभा कर रहे थे, उनकी नेता मेधा पाटकर भी कम कद्दावर नहीं थी, क्यों नहीं उस पर अपना कैमरा घुमवा लिए?

'आइबीएन लोकमत' के दफ़्तर में जब लंपटों ने हमला किया था तब कैसे छाती पीट-पीट कर लोकतंत्र को बचाने की गुहार कर रहे थे, पंकज बाबु ने कहा था कि ब्रॉडकास्‍ट एडिटर्स गिल्‍ड (या एसोशिएशन ने मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा इस वक्‍त) ने यह तय किया था कि मीडिया वालों को बुला कर की जाने वाली कार्रवाई को कवर नहीं किया जाएगा. बड़ी अच्‍छी बात है, कितनी बार पालन किया आपने!

भैया, यही लोग हैं जो 'राष्‍ट्रीय महत्त्‍व' की शिल्‍पा-कुंदरा की शादी को हेडलाइन बताते हैं और उस पर स्‍पेशल पैकेज लेकर आते हैं.

भैया, काहे भोलेपन से भारी सवाल की ओर इशारा करते हो. ये चैनल-वैनल एक बड़ी साजीश का हिस्‍सा हैं. वैसे किसी मसले या वैसी किसी नीति की तरफ़ ये इशारा नहीं करेंगे जिससे लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है. पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान या हों या विदर्भ के या फिर बलिया या सीतामढ़ी के, या देश भर के आदिवासी: उनके सवालों में किसी भी मीडिया की दिलचस्‍पी नहीं है. प्रतीक के तौर पर महंगाई का जिक्र करते कभी इनके लोग ओखला या आज़ादपुर मंडी से आलू-प्‍याज़ के भाव बताते दिख जाएंगे, कभी-कभार किसी मध्‍यवर्गीय कॉलोनी की इटालियन मार्वल ठुके किचेन से किसी महिला का बिगड़ता मासिक बजट सुना देंगे. बस. खुर्जा, सोनीपत, धुल्‍लै, सहारनपुर, शाहजहांपुर, पासीघाट, डिमापुर, कोकराझार या डेहरी ऑन सॉन में इस महंगाई से पहले भी कैसे लोगों की कमर टेढी हो रही थी - कभी न बताया न बताएंगे.

चाहिए मसाला, चटपटा मसाला. ऐसा कि डालें तो चना जोर गरम बन जाए. ग़रीब, ग़रीबों की समस्‍याएं और उनकी जद्दोजहद को आज का मीडिया और खासकर कोई चैनलवाला कभी स्‍टोरी का प्‍लॉट नहीं बनाता. अपवाद और मिसाल भले गिना दें, गिना ही सकते हैं. बस.

आतंकवाद, शिवसेना, ठाकरे फैमिली, फिल्‍म, फैशन, लाइफ़-स्‍टाइल, बाज़ार, राहुल बाबा, यु-ट्यूब, चमत्‍कार, बाबा-ओझा से इतर सोचना भी इन्‍हें पहाड़ लगता है.

आतंकवाद और पाकिस्‍तान न होता तो 24 घंटे वाले चैनलों की कैसी दुगर्ति होती, कल्‍पना की जा सकती है. ऐसे में भावनाओं, संवेदनाओं, हत्‍याओं, कुर्बानियों और संबंधों का बाज़ारीकरण बड़ा सहारा देता है.

मैं तो अब भी इस 'भ्रम' में रहूंगा कि नागरिक हूं, और स्‍कूलिया ज्ञान पर भी अभी भरोसा क़ायम है. इसलिए उम्‍मीद है कि शायद कभी अंगूलीमाल से इनकी भेंट होगी और ये मरा-मरा से राम-राम में बदलेंगे. गलत कहा?




सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

9 comments:

  1. आपकी बात से पूरी सहमति है।.

    ReplyDelete
  2. मैं भी सहमत…

    ReplyDelete
  3. http://www.youtube.com/watch?v=1ZADwvQ0tQI

    ReplyDelete
  4. dear sir
    hi I sayed parwez i have read your blog
    good blog writing i cannot explain
    syed parwez
    my blog --- syedparwez.blogspot.com

    ReplyDelete
  5. ग़लत नहीं कहा आपने। सही कहा है। जाने कब चैनलों का ये दौर बदलेगा।

    ReplyDelete
  6. आपकी बातें सही हैं, पर इण्डिया टीवी के विकल्प में NDTV कुछ सुख तो देता है। कम से कम रवीश ने ये हिम्मत तो दिखाई कि वो खुले मंच पर आकर संवाद कर रहे हैं। इसका मतलब उन्हें ज्ञात है कि कुछ गलत हो रहा है। स्वीकार करने का साहस करने वाले से सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

    ReplyDelete