21.10.08

बाढ़ के दो महीने बाद सहरसा

सहरसा रेलवे स्‍टेशन से कुछ तस्‍वीरें. काफ़ी कुछ माल है आपसे शेयर करने के लिए, पर थोड़ा वक्‍़त लगेगा.






13.10.08

डीटीपी को सच पसंद नहीं

13 अक्टूबर. शाम लगभग पांच बजे. दफ़्तर से लौट रहा था. पीछे चन्द्रा बैठी थी. बीडी एस्टेजट से थोड़ा पहले ही दिल्लीट्रैफिक पुलिस की बुलेट पर नज़र पड़ी. दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के नियम के मुताबिक़ मोटर साइकिल की पिछली सीट पर बैठे व्यजक्ति के लिए हेल्मेट पहनना अनिवार्य है. इसी नियम के मुताबिक़ DL-1S 4589 पर नीली-सफ़ेद वर्दी धारण किए महोदय के सिर पर हेलमेट होनी चाहिए थी. रहा गया. अपनी मोटर साइकिल उनके क़रीब लाकर हल्केह से पूछ लिया, ‘सबके लिए क़ायदा-क़ानून, आपके लिए कुछ नहीं ? ‘ दांत निपोरे और बोले, ‘इमरजेंसी है...’ अचानक उनके मोटर साइकिल की रफ़्तार तेज़ हो गयी.
कुछ दूर बाद याद आया कि मेरे बैग में कैमरा तो है. चन्द्रा़ को कहा, ‘झट से कैमरा निकाल कर एक तस्‍वीर उतार लो सरजी की. चन्‍द्रा ने वैसा किया, पर थोड़ा वक़्त लग गया. और ये सब करते हुए हम तिमारपुर गोल मार्केट के क़रीब पहुंच चुके थे. चन्द्रा ने दो तस्वीरें ली थी. बुलेट के चालक महोदय ने दाईं ओर वाले आइने से यह देख लिया. अपने पीछे से रही ब्ल्यू लाइन को आगे जाने देने के लिए पहली ब्‍ल्‍यू लाइन जैसे आड़े-तिरछे खड़ी हो जाती है, उसी अंदाज़ में उस गोरे-चिट्टे नौजवान ने अब बुलेट हमारे आगे खड़ी कर दी. अचानक ज़ोर से ब्रेक लगाना पड़ा.
पीछे बैठे दिल्‍ली ट्रैफिक पुलिस के सब इंस्‍पेक्‍टर का नाम अब हम पढ़ पा रहे थे. शुरुआती दो अक्षर दो बिंदुओं के साथ मिलकर नाम के अगले हिस्‍से को थामे था, औरडोगराके साथ उसका समापन हो रहा था. यानी कोई डोगरा साहब थे वे. गुस्से में तमतमाते डोगरा साहब आये और जिस पुलिसिया अंदाज़ से हम परिचित हैं उसी में हमसे मुख़ातिब हुए. उनके उस उपक्रम को धमकाना भी कह सकते हैं. और वो गोरा, छरहरा जवान पहले कुछ शब्द अपने मुंह में छानता और फुसफुसाहट के अंदाज़ में कुछ मेरे सामने पटकता. पर उसकी लिप सिंकिंग हमें उसकी लगभग हर अभिव्यमक्ति समझा पा रहे थे. गली-मोहल्लों में नौजवान ऐसा बोलते ही रहते हैं. बहरहाल, श्री डोगरा साहब डांटते-धमकाते हुए हमें ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि किसी की इमरजेंसी को हम नहीं समझ पाए. उनकी गाड़ी या कुछ ख़राब है जिसको बनवाने के लिए वे मेकेनिक ले जा रहे हैं अपने साथ. यानी उस गोरे नौजवान को उन्होंने मेकेनिक बताया जिसके मुंह से रह-रह कर महीन बातों (बदलफ़्जों) की बुंदाबांदी हो रही थी. हमारा अंदाज़ है कि वो या तो डोगरा साहब का बेटा था या कोई बेहद रिश्तेदार या परिचित.
श्रीमान डोगराजी की इस हरकत को क़रीब 50 राहगीर देख रहे. जानने की कोशिश कर रहे थे लोग कि हमेशा आम आदमी की पर्ची काटने वाला ये पुलिसकर्मी आखिर यूं उलझ क्‍यों रहा है इस दंपत्ति से. तभी एक मित्र जाने कहां से धमके. हम कुछ उन्‍हें बता पाते, इससे पहले डोगरा साहब ने लगभग एक सांस में ही ये बता दिया कि हमने कितनी बड़ी ग़लती कर दी है उनकी तस्‍वीर लेकर. साथ में डोगरा साहब ने हमारे मित्र को ये भी 'समझाया' कि हममें इंसानियत है ही नहीं. हमारे मित्र को समझाने का डोगरा साहब का अंदाज़ लगभग वैसा ही था जिस तरह वो हमें 'समझाने' की कोशिश कर रहे थे. उनकामेकेनिकअपनेमालिककी वर्दी और स्थिति को देखते हुए अब फुसफुसाहट से आगे बढ़ चुका था. फुसफुसाहट अब सिसिआहट (धीरे-धीरे सिटी बजाने की आवाज़) का रूप लेने लगी थी. अब उसके कुछ शब्‍द साफ़-साफ़ बाहर आने लगे थे. ‘अच्छा फोटो खिंचा है, देखते हैं .... बताते हैं ....’ उसने मेरी मोटर साइकिल की नंबर प्‍लेट पर भी नज़रें इनायत की. तात्पर्य ये कि श्रीमान डोगरा साहब और उनके मेकेनिक में ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था किसकी धमकी/डांट मेरे लिए ज्‍़यादा समझने और आदर करने योग्‍य है. मैं बार-बार दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के सब इंस्पेक्‍टर श्रीमान डोगराजी से यही अनुरोध करता रहा किआप अपनी बात कहिए पर इस जनाब को चुप कराइए’. तमतमाहट इतनी थी कि वे मेरी बात सुन नहीं पा रहे थे. कई बार तमतमाहट सुनने में अवरोध उत्‍पन्‍न करने लगता है.
दिल्लीट ट्रैफिक पुलिस के एक सब इंस्पेबक्ट की उनके ही विभाग द्वारा बनाए और उसी की हिफ़ाज़त में पलने वाले क़ानून की अवहेलना करने की एक मिसाल कैमरे में क़ैद कर लेने का 'जुर्म' हम पर थोपा जा रहा था. मुझे इस बात के लिए खुली सड़क पर हर संभव तरीक़े सेसमझायाजा रहा था कि मैंने कैसे ग़लत किया है. कैसे ये ग़लती मुझे परेशानी में डाल सकती है.
अपने देश में न्या केवल भांति-भांति के सप्‍ताहों, पखवाड़ों, जयंतियों, पुण्‍यतिथियों, दिवसों तक ही सिमट कर रह गया है? गांधी जयंती गुज़रे एक पखवाड़ा भी नहीं बीता है. अख़बारों का वज़न विज्ञापनों से दोगुना हो गया था उस दिन. शायद ही कोई विभाग बापू की तस्‍वीर के साथ अपना संदेश और विज्ञापन प्रकाशित करने रह गया हो उस दिन. सबने सच की राह पर चलने की नसीहत दी. हर साल देते हैं. एक सच पर अमल क्‍या किया रात भर नींद ही नहीं आयी.
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1.10.08

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