2.6.08

चौथी कक्षा में पहली बार भेदभाव हुआ था मेरे साथ: कनकलता


दिल्ली स्कूल ऑफ़ सोशल वर्क में दलित लेखक संघ का द्विवार्षिक सम्मेलन का आज आखिरी दिन है. कल मैं भी गया था सम्मेलन में. दूसरी पाली में. साथ में डॉ. अजीता, नोवा उनकी बिटिया नव्या और किलकारी तथा चन्द्रा भी थे. दूसरा सत्र आरंभ हो रहा था. आयोजकों ने अतिथि वक्ताओं को मंच पर बुलाया. अजीता और कनकलता भी पहुंचे मंच पर. सबसे पहले कनकलता को ही बोलने को कहा गया.
कनक ने बातचीत की शुरुआत में बताया कि कैसे पहली बार चौथी कक्षा में उन्हें ये लगा कि उनके साथ जाति के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है. कनक ने ये भी बताया कि तबतक उन्हें पता नहीं था कि जाति-पाति भी कोई चीज़ होती है. बहरहाल, छठी कक्षा तक आते-आते उन्हें कुछ-कुछ बात समझ में आनी शुरू हो गयी थी. उन्होंने आगे बताया कि जातीय उत्पीड़न से लड़ने में अकसर गैर-दलित मित्रों ने उनकी सहायता की है. उन्होंने कहा कि पिछले दिनों उनके साथ जो भी दुर्व्यवहार हुआ उसमें भी ग़ैर-दलित मित्र और शुभचिंतक काफी बढ-चढ कर उनकी मदद कर रहे हैं. उनके मुताबिक कई बार तो दलित तबक़े के लोगों ने उनकी टांग खींचने की कोशिश की है.

ज़ाहिर है, एक दलित लड़की, जिसके साथ हाल ही में जातीय दुर्व्यवहार की घटना ने दिल्ली के प्रगतिशील तबक़े में एक हलचल सी पैदा कर दी है; वो दलित लेखकों के सम्मेलन में अगर ऐसी बात कहती हैं तो सभागार सन्न तो हो ही जाएगा. कल ऐसा ही हुआ. संचालक की ओर से एक-दो बार ये कहा गया कनक को कि उनके साथ पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ, उसके बारे में वो बताएं. पर कनक ने यह कह कर कि उनके साथ जो भी हुआ उस पर काफी कुछ लिखा-बोला जा रहा है, दो-चार बातें कह कर रह गयीं. और एक बार फिर ये कहकर कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है, और कुछ नहीं बोल पाएंगी, उन्होंने अपनी बात समाप्त कर दी. उनके भाषण के बाद संचालक ने यह स्पष्ट किया कि दलितों ने उनके मामले के बारे में न अख़बार में लिखा और न ही मोहल्ला पर लेकिन थाने से लेकर कोर्ट तक दलित साथ ही रहे, जमानत भी ली दलितों ने.
उन्होंने अपनी बात शुरू करने से पहले ये साफ़ कर दिया था कि इस सम्मेलन में बोलने के लिए उन्हें पिछली रात को ही कहा गया है और पिछले दिनों हुई दौड़-भाग की वजह से तबीयत भी ठीक नहीं है, लिहाज़ा वो अपना भाषण तैयार नहीं कर पायी हैं.
दरअसल, पांच मिनट के कनक के भाषण और तत्काल बाद संचालक के स्पष्टीकरण से यह तो साफ हो गया कि कनक की बात आयोजकों और सम्मेलन के कुछ भागीदारों को अच्छा नहीं लगा. देर रात मेरे एक मित्र का फ़ोन आया जो दलित भी हैं और इस पूरे प्रकरण में पीडित पक्ष के साथ मुस्तैद हैं. घुम-फिर कर सभागार में कनक का भाषण और उसके बाद की स्थिति की जानकारी उन तक पहुंच चुकी थी, जिसकी तस्दीक वो मुझसे करना चाह रहे थे. मैंने सारी बात बता दी.

जो बातें मैंने रात अपने दोस्त से शेयर की, वही मैं यहां भी करना चाहूंगा. दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में कुछ छात्रों और शिक्षकों के अलावा कनक अपने सिविल सर्विसेज़ की तैयारी करने वाले दोस्तों के लिए ज़रूर जाना-पहचाना नाम रही होगी. मैंने भी कनक तो विगत 4 मई को मुखर्जीनगर थाने पहुंचकर ही जाना, वो भी अपने मित्र संजीव के फ़ोन के बाद. यानी कनक हिन्दी विभाग में एम फिल की छात्रा के अलावा सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए ख़ुद को तैयार करने वाली एक मेधावी और प्रतिभान छात्रा रही हैं. पर प्रगतिशील या दलित साहित्य में उनके दख़ल की मुझे जानकारी नहीं है. अगर मैं भूला न होउं तो शायद कल जिस सत्र में कनक बोल रही थीं वो 'पितृसत्ता और दलित साहित्य' पर केंद्रित था. अब ऐसे में आनन-फानन में कनक को भाषण के लिए किसी भी प्रकार तैयार करना, वो भी बेहद शॉट नोटिस पर शायद सामयिक और समुचित निर्णय नहीं माना जाएगा. दूसरी बात, कनक ने वही कहा जो उन्होंने महसूस किया. मैं भी इस पूरे मामले को नजदीक से देख रहा हूं, और काफ़ी हद तक पूरे प्रकरण में कनक के साथ हूं. मुझे मालूम है कि ग़ैर-दलितों एक अच्छा-ख़ासा दायरा इस संघर्ष में उनके साथ है. पर मैं ये भी जानता हूं कि आज जो संघर्ष चल रहा है उसका विगुल दलित कार्यकर्ताओं ने ही फूंका था. थाने से लेकर अदालत तक की लड़ाई में आज तक दलित मित्र कनक के साथ हैं.
शायद कनक पहली बार किसी बड़े मंच से बोल रही थीं, जिसकी तैयारी उन्होंने नहीं की थी और न ही वो साहित्य और राजनीति की वैसी पुरोधा हैं जिन्हें कहीं बोलने के लिए किसी तैयारी की ज़रूरत नहीं पड़ती है. ऐसे में कनक की बात से इतना आहत होने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए.
कभी-कभी सामाजिक कार्यकर्ता जल्दबाज़ी कर जाते हैं. कनक कार्यकर्ता बनना चाहती हैं या नहीं ये उनके व्यक्तिगत पसंद-नापसंद की बात है. फिलहाल तो वो संघर्ष कर रही हैं. हर तरह से उनके साथ खड़ा होना वक्त की ज़रूरत है, बीच में अपना मन खट्टा करना नहीं.

3 comments:

  1. kanak ke saath hui ghatna koi nai nahi hai. delhi univerasity ke so called highly academic atmoshphere me dalit utpiran ko aur strong tarike se justify kiya jata raha hai.
    I have been witnessed many incidences in hostels of D.U. many dalits student fought and resisted but many like Ratan lal succummed to the pressure and left non dalits comreds whoi fought for their cause and very few dalit use DALIT bannerv fore their personal gain..
    But fight will go on.. We are with kanaklatas....
    Suraj

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  2. बड़े साफ़-साफ़ शब्दों में सब लिख दिया आपने.

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  3. yeah, apni to aadat hai ki saf saf bole aur likhen ,bhi.abhivaykti ki freedom to hono hi chahiye. BUT IT IS BITTER TRUTH THAT Dalit andolan ka istemal kiya gaya hai becos iska ideological base narrow hata hai aur sustainable nahi .
    hum log aage bhi bat kar sakte hain
    regards

    SURAJ

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