25.3.09

अपनी फिल्‍म रिलीज़ होने वाली है

जब से अपनी दोस्‍त अनुषा रिज़वी के निर्देशन में निर्मानाधीन फिल्‍म के एक दृष्‍य का हिस्‍सा बनने का मौक़ा मिला है, बड़ी ख़ुशी हो रही है. ये भी नहीं कह सकता कि उसमें अपनी कोई उल्‍लेखनीय भूमिका है पर इतनी साधारण भूमिका भी नहीं है. जी हां, फिल्‍म के जिस दृष्‍य में शामिल होने गर्म कपड़े के साथ मैं गया था दरअसल उसकी शूटिंग जंतर-मंतर पर हुई. और हम सब जानते हैं जंतर-मंतर का महत्त्व. जंतर-मंतर हमारे लोकतांत्रिक प्रतिरोध की आवाज़ को स्‍थान देता है. किसी भी वक्त, किसी भी मौसम में जंतर-मंतर कम-से-कम दर्जन भर धरने-प्रदर्शनों को स्‍थान दे रहा होता है. कोई चार साल से बैठा है तो कोई चार महीने से, कहीं चार दर्जन लोग बैठे हैं तो कहीं सिर्फ़ मियां और बीवी ही. प्रतिरोध के इस स्‍वर को कहीं तंबू-कनाट का सहारा है तो कहीं खुला आसमान ही किसी का आसरा है. कोई अपनी नौकरी बहाली की मांग लिए बैठा है तो किसी तंबू के बाहर अलग कूचबिहार स्‍वायत्त क्षेत्र की मांग टंगी है. तो दलितों के मसीहा कांशीराम के 'हत्‍यारे' को सज़ा की मांग कर रहा है तो कोई 'जूता मारो आंदोलन' से ही संतुष्‍ट है ....
कहने का मलतब ये कि हम भी परसो इसी तरह के एक प्रदर्शन में भाग लेने पहुंचे थे जंतर-मंतर. अपने मित्र और पुराने सहकर्मी महमूद फ़ारूकी साहब जो कि इस फिल्‍म-निर्माण में न केवल अनुषा की मदद कर रहे हैं बल्कि तमाम तरह की सहुलियतों का इंतजाम भी उन्‍होंने ही किया है, ने पहले ही अपने क्रिउ मेंबर राहुल से फोन पर कहलवा दिया था कि मैं नियत समय पर यानी शाम चार बजे जंतर-मंतर पहुंच जाउं और साथ में गर्म कपड़े ज़रूर लेता आउं. क़रीब-क़रीब उसी अंदाज़ में उन्‍होंने हमसे अपने साथ पांच और लोगों को लाने की छूट दे दी थी जिस अंदाज़ में अब तक हम कहते रहे हैं. जंतर-मंतर पहुंचने से पहले तक अपन को ये नहीं पता था कि करना क्‍या होगा. सबसे पहले अनुषा मिलीं और फिर बग़ल में सिगरेट फूंकते महमूद मिले. दुआ-सलाम और जफ़्फ़ी-वफ़्फ़ी के बाद महमूद ने बताया कि बस अभी थोड़ी में देर में एक 'कैंडल लाइट मार्च' होने वाला है. हमारे पास कैंडल्स के अलावा बैनर और प्‍लेकार्ड्स भी होंगे. फिर कैसे-कैसे क्‍या होने वाला है ये सब बताया उन्‍होंने.

इस पहले एक छोटा सा सीन और शूट किया जाना था जिसमें मौजूदा राजनीतिक हालत पर किसी राजनीतिक पार्टी के नेता की भूमिका अदा कर रहे महमूद फ़ारूकी साहब को दस-बारह सेकेंड की एक बाइट देनी थी. चूंकि मैं पहली बार किसी फिल्‍म की शूटिंग देख रहा था, इसलिए मेरी निगाहें वॉकी-टॉकी खोंसे क्रिउ मेंबर्स और उनके इक्‍वीपमेंट्स पर ही टिकी थी. इधर से कोई आवाज़ लगाता टेप, अगले पल टेप हाजिर; छतरी ... बड़ी छतरी ...., हाजिर बड़ी छतरी भी. कोई चाय लेकर आता, मेरे अलावा अगल-बग़ल बैठे 'सह-अभिनेता' पी लेते और उन्‍हीं में से कोई ब्‍लौक-टी की डिमांड ठोक देता; तीन मिनट के अंदर मांगने वाले के हाथ में कोई ब्‍लैक टी थमा जाता. कुर्सी, कितनी चाहिए? दस, बीस या तीस ... आदमी को बिठा ही दीजिए. एक-से-एक यंत्र, भांति-भांति के माइक्‍स, ट्रॉलियां ... और वो क्‍या कहते हैं आर्मी की तरह का 'वर्ड और कमांड' और उसका अनुपालन!

तो मित्रों, हमने जिस दृष्‍य में हिस्‍सेदारी की वो एक जुलूस थी. अपने नेता को खोजते हुए हम जंतर-मंतर पहुंचे थे मोमबत्ती लेकर. मेरे जैसे दिल्‍ली के इक्‍के-दुक्‍के और पेशेवर जुलूसबाज़ आपको इस सीन में नज़र आएंगे. 'आमीर ख़ान प्रॉडक्‍शन' तले बन रही इस फिल्‍म में अपने कुछ मित्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है. निर्देशक तो हैं ही अपनी मित्र. किसानों की समस्‍याओं पर आधारित इस निर्माणाधीन फिल्‍म में जुलूस के दौरान अगर कैमरे के लेंस में अपन आ गए हों और संपादन के दौरान कट-छट जाने से रह गए तो अपने दोस्‍तों को दिख भी जाएंगे. तब तक तो कह ही सकता हूं कि अपनी फिल्‍म रिलीज़ होने वाली है.
सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

4.3.09

तू गलियों का राजा मैं महलों की रानी उर्फ़ रमोला की प्रेम कहानी

राहुल पंडिता हमारी पीढ़ी के जाने-माने लेखक और पत्रकार हैं. आजतक, ज़ी न्यूज़, इंडियन एक्सप्रेस, संडे इंडियन समूह के साथ काम करते हुए इन्होंने हमेशा बेलौस और संजीदगी के साथ लिखा है. राहुल के बारे में और ज़्यादा जानने के लिए टहलें सैनिटीसक्स पर. टेलीविज़न माध्यम द्वारा ख़बर निर्माण पर मीडियानगर 03 के लिए उन्होंने ख़ास तौर से लिखा था तू गलियों का राजा मैं महलों की रानी उर्फ़ रमोला की प्रेम कहानी. लीजिए आप भी लुत्फ़ और बढाइए चर्चा को आगे.

रिंग रोड पर ट्रैफिक पिछले चार घंटो से जाम था। ऊपर से सूरज आग उगल रहा था और नीचे काली, पीली, नीली और लाल गाड़ियों में बंद लोग पिघल रहे थे। हॉर्न बजाते-बजाते लोगो के अँगूठे सुन्‍न हो गए, लेकिन ट्रैफिक एक इंच भी आगे नही बढ़ पाया। हाहाकार मच गया था।

कई लोगो ने फ़ोन करके पुलिस की सहायता माँगी। कार चला रहे एक नौजवान ने गाड़ी मे बैठे बाक़ी लोगों से कहा, लगता है उन्हें फोन करना ही पड़ेगा। गाड़ी में बैठे कम से कम दो लोगों ने एक साथ पूछा - किन्हें? नौजवान ने अपने माथे से पसीने की बूँदों को तितर-बितर किया और बोल पड़ा, पुलिस कमिश्नर को। वो मेरी चाची के भाई की पत्नी की ननद के ममेरे भाई लगते हैं। उन्हें फोन करूँगा तभी पुलिस आएगी और ट्रैफिक जाम से छुटकारा मिलेगा।
लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि आखि़र ये ट्रैफिक जाम लगा कैसे। थोड़ी देर में सायरन की आवाज़ सुनायी दी। लगता है पुलिस ख़ुद ही आ गयी, नौजवान ने सायरन की आवाज़ सुनकर कहा, बेकार में उन्हें फोन करना पडता, अच्छा हुआ पुलिस ख़ुद ही आ गयी। ये कहकर उसने शीशे में अपने बाल ठीक किए और कार को स्टार्ट की मुद्रा में ढालकर, एसी चालू कर दिया।

उधर इंस्पेक्टर सत्यवीर ने अपना काला चश्मा दुरुस्त किया और मोबाइल फोन को पिस्तौल की तरह अपनी बेल्ट में खोंसा। उनके पीछे-पीछे दो कॉन्स्टेबल थे, जिनके हाथ में बेंत के लम्बे डंडे थे। कंट्रोल रूम से कॉल आने के बाद वो स्पॉट के लिए निकल पड़े थे। गाड़ियों के सैलाब में सत्यवीर को कुछ नहीं सूझ रहा था। शोर-शराबे से वैसे भी डॉक्‍टर ने दूर रहने की सलाह दी थी। लेकिन कमबख़्त ड्यूटी डॉक्टरी सलाह को कहाँ मानती है!

भीड़ को चीरते-चीरते पसीने की बूँदें इंस्पेक्टर की ख़ाकी क़मीज़ को तर कर गयी थी। काफी मशक्क़त के बाद वो आख़िरकार सामने पहुँचे। उनकी ज़बान से दो-चार गालियाँ बाहर निकलने के लिए हिलोरें मार रही थीं। लेकिन जब इंस्पेक्टर सत्यवीर सामने पहुँचे तो देखते क्या हैं कि कई रंग-बिरंगी ओबी वैन पूरा रास्ता रोके खड़ी हैं। जेनरेटर धुंआ उगल रहे हैं और क़रीब एक दर्जन कैमरा बीच सड़क पर पैनदाबाद हैं। कैमरों के सामने उतने ही रिपोर्टर कोने में पड़ी किसी चीज़ की तरफ़ इशारा करते हुए शब्द उगल रहे हैं। इंस्पेक्टर ने उस चीज़ की तरफ़ ग़ौर से देखा तो पाया कि वो एक कुतिया है जिसने अभी-अभी पाँच बच्चों को जन्म दिया है।

तो ये थी ट्रैफिक जाम की वजह!

फटफट चैनल का रिपोर्टर कैमरा के सामने लाइव ज्ञान बाँट रहा थाः
''जी नेहा, मैं आपको बता दूँ कि सभी पिल्ले पूरी तरह से स्वस्थ हैं और रिंग रोड पर किसी कुतिया के पाँच बच्चों को जन्म देने की ये पहली घटना है ...''
उसी सुबह ...
फटफट चैनल के एक्जे़क्यूटिव प्रोड्यूसर (इनपुट) का फोन बजा। देखा, फोन पर ब्यूरो चीफ उनसे बात करना चाह रहा है।
''हाँ बोलो।''
''सर वो नंबर 12 का फोन आया था अभी। उसकी रिपोर्ट के मुताबि़क एरिया नंबर 52 में एक गर्भवती कुतिया अपने पिल्लों को जन्म देने ही वाली है। मेरे ख़याल से ये आज एक बढिया लाइव इवेंट साबित हो सकता है।''
''अरे हाँ, सही कह रहे हो। एकदम ओबी वैन भेज दो वहाँ।''
''सर लेकिन एक दिक्क़त है। हमारी दो ओबी वैन तो आउट ऑफ़ स्टेशन है। एक तो उस आदमी के घर पर डिप्‍लॉयड है जिसने भविष्यवाणी की है कि वो परसों चार बजे मरेगा और दूसरी वहाँ जहाँ मल्लिका सहरावत एक दुकान पर अपनी रेसिपी पर आधरित लड्डू बनाएगी।''
''और तीसरी कहाँ है?''
''सर वो अभी सफदरजंग हॉस्पिटल रवाना कर दी है। डाक्टरों की हड़ताल के चलते दो लोगों की मौत हो गयी है।''
''अरे यार अस्पताल में तो कल भी लोग मरेंगे। वहाँ कल लाइव करेंगे। इस ओबी को तुरंत डाइवर्ट कर दो''
लाइव न्यूज़ का दौर था। एक चैनल की लाइव कवरेज प्लान को कोई प्रतिद्वंद्वी चैनल हाइजैक करने के लिए तैयार रहता था। हर चैनल में प्रतिद्वंद्वी चैनल के जासूस बैठे थे। सूचना को गुप्त रखने के लिए रिपोर्टरों को नाम की जगह नंबर से पहचाना जाने लगा था और कवरेज के एरिया को भी नंबर दे दिए गए थे।

फटफट चैनल में झटपट चैनल का एक जासूस एक्जे़क्यूटिव प्रोड्यूसर और ब्यूरॉ चीफ के बीच हुई बातचीत को सुन चुका था। उसने बाहर जाकर चुपचाप झटपट चैनल में अपने ‘गाडॅफादर’ को फोन कर सारी जानकारी दी। झटपट चैनल ने तुरंत एरिया की पहचान करवाकर अपने दो रिपोर्टर ओबी वैन के साथ स्पॉट पर भेज दिए।

आध घंटा देर से लाइव जाने का ग़म, ख़बरी चैनल के इनपुट एडिटर को सता रहा था। उसने आनन-फानन एक मीटिंग बुलायी जिसमें ये तय हुआ कि फटफट और झटपट चैनल को बीट करने के लिए स्टूडियो में कुछ खेल किया जाए। दो रिपोर्टर तो स्पॉट पर थे। इसके अलावा तय हुआ कि स्टूडियो डिस्कशन के लिए विशेषज्ञों को बुलाया जाए। गेस्ट कॉर्डिनेटर को तलब किया गया। उसने डिस्कशन के लिए एक ऐनिमल राइट्स ऐक्टिविस्ट और एक वेटेरिनरी डॉक्टर को स्टूडियो बुलाया।

उधर इंस्पेक्टर सत्यवीर ने एक रिपोर्टर का हाथ पकड़कर उससे कहा, ''अरे भैया ये तामझाम यहाँ से हटा दो, देख नहीं रहे लोगों को कितनी असुविध हो रही है।'' रिपोर्टर ने एक नज़र इस्पेक्टर की तरफ देखा और कहा, ''लोग, कहाँ हैं लोग! ये तो हमारे लिए सिर्फ़ साउंड बाइट बटोरने का ज़रिया है। अब आप जाइए, मुझे बाइट लेनी है।'' ये कहकर वो अपनी माइक लेकर आगे बढ़ा और एक कार में बैठी महिला के सामने माइक लगा कर उससे पूछा, ''कुतिया ने पाँच बच्चों को जन्म दिया, कैसा महसूस हो रहा है आपको?''

दूसरी तरफ, ख़बरी चैनल का स्पेशल प्रोग्राम शुरू हो गया। ऐंकर ने पहले स्पॉट पर रिपोर्टर के साथ चैट कर, स्टूडियो में बैठी वेटेरिनरी डॉक्टर को संबोधित किया, ''डॉक्टर साहब आपसे जानना चाहेंगे कि रिंग रोड जैसी भीड़-भाड़ वाली सड़क पर एक कुतिया के लिए पिल्लों को जन्म देना कितना मुश्किल है? क्या मनोस्थिति होती है ऐसे में एक कुतिया की?''

इतनी देर में फटफट चैनल ने ब्रेकिंग न्यूज़ का पट्टा लगाकर सनसनी फैला दी। चैनल की ऐंकर बोली, ''अब ताज़ा जानकारी के लिए चलते हैं सीध रिंग रोड जहाँ पर हमारे संवाददाता नंबर 12 हैं: जी बताइए क्या जानकारी है आपके पास?''

रिपोर्टर के एक हाथ में माइक था और दूसरे से वो अपना ‘इयरपीस’ ऐडजस्ट कर रहा था। क्यू मिलते ही वो फौरन बोल पड़ा, ''जी मैं आपको बता दूँ कि हमें जानकारी मिली है कि इस कुतिया का नाम रमोला है। कुछ महीने पहले तक ये पास की एक पॉश कॉलोनी के एक बँगले में रहती थी। लेकिन इसका प्यार गली के एक कुत्ते से हो गया जिसका नाम हमें अभी तक पता नहीं चला है। इसी प्यार के चलते वो महलों से गलियों में आ गयी।''

ये जानकारी मिलने के बाद चैनल की ग्राफिक्‍स टीम को हिदायत दी गयी कि वो स्पेशल प्रोग्राम के लिए एक स्टिंग बनाए। स्टिंग पर कुतिया की तस्वीर लगाकर, बग़ल में लिखा गया: रमोला का प्यार। उसके बाद, एक एसएमएस प्रतियोगिता भी शुरू की गयी, ‘क्या रमोला को उसका हक़ मिलना चाहिए?’

ख़बरी चैनल भला कहाँ पीछे रहने वाला था। वहाँ एक एडीटर ने सोच लिया था कि स्टूडियो डिस्कशन के ज़रिए ही दूसरी चैनलों को पीछे किया जा सकता है। इसलिए उसने गेस्ट कॉर्डिनेशन को आनन-फानन फोन लेने की हिदायात दी। स्टूडियो के बाहर से पहला फोन मशहूर फिल्‍म निर्देशक रमेश भट्ट का आया। परमाणु निरीक्षण से लेकर नर्मदा आंदोलन तक - सभी मुद्दों पर भट्ट साहब की राय जानना चैनलों के लिए एकदम ज़रूरी हो गया था। और हमेशा की तरह उन्होंने चैनलों को निराश नहीं किया। बोले, ''पाकिस्तान के साथ दोस्ती बढाने का इससे अच्छा मौक़ा कोई हो ही नहीं सकता। प्रधनमंत्री कार्यालय को तुरन्त एलान कर देना चाहिए कि कुत्तों के बीच क्रॉस बॉर्डर शादियों को बढ़ावा दिया जाएगा और ऐसे प्रयासों का सारा ख़र्चा सरकार वहन करेगी।'' इसके बाद भट्ट साहब ने जो कहा, उसकी प्रतिक्रिया के लिए पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को फोन लगाया गया। वहाँ की प्रवक्ता को तो इसी मौक़े का इंतज़ार था। वो बोलीं, ''कुत्तों की क्रॉस-बॉर्डर शादी तब तक मुमकिन नहीं हो सकती है जब तक हिन्दुस्तान कश्मीर वादी में अपनी फौज कम नहीं करता।''

पाकिस्तान की इस प्रतिक्रिया का असर मुंबई में तुरन्त देखा गया। वहाँ पर शिव सैनिकों ने रमोला के पुतले जलाए और कहा कि ऐसी घटनाओं से देश की संस्कृति भ्रष्ट हो रही है। उग्र भीड़ ने ‘डॉग फूड’ बेचने वाली कई दुकानों को भी तोड़-फोड़ डाला। दूसरी तरफ़ जावेद अख़्तर और राहुल बोस ने शिव सैनिकों के इस प्रदर्शन के ख़िलाफ़ टीवी कैमरों के सामने आवारा कुत्तों को बिस्कुट खिलाए।

शाम को एसएमएस प्रतियोगिता के नतीजे भी आ गए। अस्सी प्रतिशत देशवासियों ने कहा कि रमोला को उसका ‘हक़ मिलना चाहिए’। दस प्रतिशत ने कहा ‘नहीं’ और दस प्रतिशत की इस पर ‘कोई राय नहीं थी’। पहले पाँच एसएमएस करने वालों को चैनल ने ‘विपुल साड़ीज़’ और ‘रूपा अंडरवीयर’ की तरफ से पाँच हज़ार रुपए के गिफ्ट वाउचर भेंट किए। लाइव कवरेज का ज़माना था, इसलिए गिफ्ट भी उनके विजेताओं तक उसी दिन पहुँचाए गए।
उसी शाम मल्लिका सहरावत ने अपनी रेसिपी पर आधरित लड्डू बनाए। इलाज के अभाव में सफदरजंग हॉस्पिटल में तीन मरीज़ों की मौत हो गयी। आंध्रप्रदेश के एक गाँव में तीन किसानों ने क़र्ज़ से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या की।

अगली सुबह मल्लिका सहरावत की स्टोरी टेलीविज़न पर देखते हुए इंस्पेक्टर सत्यवीर नाश्ता कर रहे थे। उनकी पत्नी ने नाश्ता उसी दिन के अख़बार पर रखा हुआ था। पराँठे का एक टुकड़ा तोड़ते हुए इंस्पेक्टर की नज़र किसानों की आत्महत्या की ख़बर पर पड़ी और उनके ज़हन में कल के रिपोर्टर की छवि उभर आयी। इतने में उनकी पत्नी मुस्कराते हुए बेडरूम से निकलीं और उनके सामने एक पैकेट रख दिया। ''क्या है इसमें?'' इंस्पेक्टर ने पूछा। ''मुझे कल एक एसएमएस प्रतियोगिता में इनाम मिला। वो तो साड़ी दे रहे थे पर मुझे तुम्हारा ख़याल आया। सो, तुम्हारे लिए जाँघिए लिए हैं।'' उसकी मुस्कुराहट और गहरी हो गयी। न जाने इंस्पेक्टर सत्यवीर को क्या हुआ, उन्होंने नाश्ते की थाली एक तरफ सरकाई, टीवी बंद किया और बुदबुदाए - मादर... !
रिंग रोड पर ट्रैफक पिछले चार घंटो से जाम था। ऊपर से सूरज आग उगल रहा था और नीचे काली, पीली, नीली और लाल गाड़ियों में बंद लोग पिघल रहे थे। हाॅर्न बजाते-बजाते लोगो के अँगूठे सुÂ हो गए, लेकिन टैªपि़फक एक इंच भी आगे नही बढ़ पाया। हाहाकार मच गया था।
कई लोगो ने प़फोन करके पुलिस की सहायता माँगी। कार चला रहे एक नौजवान ने गाड़ी मे बैठे बाक़ी लोगों से कहा, फ्लगता है उन्हंे प़फोन करना ही पड़ेगा।य् गाड़ी में बैठे कम से कम दो लोगों ने एक साथ पूछा - किन्हें? नौजवान ने अपने माथे से पसीने की बूँदों को तितर-बितर किया और बोल पड़ा, फ्पुलिस कमिश्नर को। वो मेरी चाची के भाई की पत्नी की ननद के ममेरे भाई लगते हैं। उन्हें प़फोन करूँगा तभी पुलिस आएगी और ट्रैपि़फक जाम से छुटकारा मिलेगा।य्
लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि आखि़र ये टैªपि़फक जाम लगा कैसे। थोड़ी देर में सायरन की आवाज़ सुनायी दी। फ्लगता है पुलिस ख़ुद ही आ गयीय्, नौजवान ने सायरन की आवाज़ सुनकर कहा, फ्बेकार में उन्हें प़फोन करना पडता, अच्छा हुआ पुलिस ख़ुद ही आ गयी।य् ये कहकर उसनेे शीशे में अपने बाल ठीक किए और कार को स्टार्ट की मुद्रा में ढालकर, एसी चालू कर दिया।
उध्र इंस्पेक्टर सत्यवीर ने अपना काला चश्मा दुरुस्त किया और मोबाइल प़फोन को पिस्तौल की तरह अपनी बेल्ट में खोंसा। उनके पीछे-पीछे दो काॅन्स्टेबल थे, जिनके हाथ में बेंत के लम्बे डंडे थे। कंट्रोल रूम से काॅल आने के बाद वो स्पॅाट के लिए निकल पड़े थे। गाड़ियों के सैलाब में सत्यवीर को कुछ नहीं सूझ रहा था। }ाोर-}ाराबे से वैसे भी डाॅक्टर ने दूर रहने की सलाह दी थी। लेकिन कमबख़्त ड्यूटी डाॅक्टरी सलाह को कहाँ मानती है!
भीड़ को चीरते-चीरते पसीने की बूँदें इंस्पेक्टर की ख़ाकी क़मीज़ को तर कर गयी थी। काप़फी मशक़्क़त के बाद वो आख़िरकार सामने पहुँचे। उनकी ज़बान से दो-चार गालियाँ बाहर निकलने के लिए हिलोरें मार रही थीं। लेकिन जब इंस्पेक्टर सत्यवीर सामने पहुँचे तो देखते क्या हैं कि कई रंग-बिरंगी ओबी वैन पूरा रास्ता रोके खड़ी हैं। जेनरेटर ध्ुँआ उगल रहे हैं और क़रीब एक दर्जन कैमरा बीच सड़क पर पैनदाबाद हैं। कैमरांे के सामने उतने ही रिपोर्टर कोने में पड़ी किसी चीज़ की तरप़फ इशारा करते हुए शब्द उगल रहे हैं। इंस्पेक्टर ने उस चीज़ की तरप़फ ग़ौर से देखा तो पाया कि वो एक कुतिया है जिसने अभी-अभी पाँच बच्चों को जन्म दिया है।
तो ये थी टैªपि़फक जाम की वजह!
पफटपफट चैनल का रिपोर्टर कैमरा के सामने लाइव ज्ञान बाँट रहा थाः
फ्जी नेहा, मैं आपको बता दूँ कि सभी पिल्ले पूरी तरह से स्वस्थ हैं और रिंग रोड पर किसी कुतिया के पाँच बच्चों को जन्म देने की ये पहली घटना है ...य्
उसी सुबह ...
पफटपफट चैनल के एक्जे़क्यूटिव प्रोड्यूसर ;इनपुटद्ध का प़फोन बजा। देखा, प़फोन पर ब्यूरो चीप़फ उनसे बात करना चाह रहा है।
फ्हाँ बोलो।य्
फ्सर वो नंबर 12 का प़फोन आया था अभी। उसकी रिपोर्ट के मुताबि़क एरिया नंबर 52 में एक गर्भवती कुतिया अपने पिल्लों को जन्म देने ही वाली है। मेरे ख़याल से ये आज एक बढिया लाइव इवेंट साबित हो सकता है।य्
फ्अरे हाँ, सही कह रहे हो। एकदम ओबी वैन भेज दो वहाँ।य्
फ्सर लेकिन एक दिक़्क़त है। हमारी दो ओबी वैन तो आउट आॅप़फ स्टेशन है। एक तो उस आदमी के घर पर डिप्लाॅयड है जिसने भविष्यवाणी की है कि वो परसों चार बजे मरेगा और दूसरी वहाँ जहाँ मल्लिका सहरावत एक दुकान पर अपनी रेसिपी पर आधरित लड्डू बनाएगी।य्
फ्और तीसरी कहाँ है?य्
फ्सर वो अभी सप़फदरजंग हाॅस्पिटल रवाना कर दी है। डाक्टरों की हड़ताल के चलते दो लोगों की मौत हो गयी है।य्
फ्अरे यार अस्पताल में तो कल भी लोग मरेंगे। वहाँ कल लाइव करेंगे। इस ओबी को तुरंत डाइवर्ट कर दोय्
लाइव न्यूज़ का दौर था। एक चैनल की लाइव कवरेज प्लान को कोई प्रतिद्वंद्वी चैनल हाइजैक करने के लिए तैयार रहता था। हर चैनल में प्रतिद्वंद्वी चैनल के जासूस बैठे थे। सूचना को गुप्त रखने के लिए रिपोर्टरों को नाम की जगह नंबर से पहचाना जाने लगा था और कवरेज के एरिया को भी नंबर दे दिए गए थे।
पफटपफट चैनल में झटपट चैनल का एक जासूस एक्जे़क्यूटिव प्रोड्यूसर और ब्यूरो चीप़फ के बीच हुई बातचीत को सुन चुका था। उसने बाहर जाकर चुपचाप झटपट चैनल में अपने ‘गाॅडप़फादर’ को प़फोन कर सारी जानकारी दी। झटपट चैनल ने तुरंत एरिया की पहचान करवाकर अपने दो रिपोर्टर ओबी वैन के साथ स्पाॅट पर भेज दिए।
आध घंटा देर से लाइव जाने का ग़म, ख़बरी चैनल के इनपुट एडिटर को सता रहा था। उसने आनन-प़फानन एक मीटिंग बुलायी जिसमें ये तय हुआ कि पफटपफट और झटपट चैनल को बीट करने के लिए स्टूडियो में कुछ खेल किया जाए। दो रिपोर्टर तो स्पाॅट पर थे। इसके अलावा तय हुआ कि स्टूडियो डिस्कशन के लिए विशेषज्ञों को बुलाया जाए। गेस्ट काॅर्डिनेटर को तलब किया गया। उसने डिस्कशन के लिए एक ऐनिमल राइट्स ऐक्टिविस्ट और एक वेटेरिनरी डाॅक्टर को स्टूडियो बुलाया।
उध्र इंस्पेक्टर सत्यवीर ने एक रिपोर्टर का हाथ पकड़कर उससे कहा, फ्अरे भैया ये तामझाम यहाँ से हटा दो, देख नहीं रहे लोगों को कितनी असुविध हो रही है।य् रिपोर्टर ने एक नज़र इस्पेक्टर की तरप़फ देखा और कहा, फ्लोग, कहाँ हैं लोग! ये तो हमारे लिए सिपऱ्फ साउंड बाइट बटोरने का ज़रिया है। अब आप जाइए, मुझे बाइट लेनी है।य् ये कहकर वो अपनी माइक लेकर आगे बढ़ा और एक कार में बैठी महिला के सामने माइक लगा कर उससे पूछा, फ्कुतिया ने पाँच बच्चों को जन्म दिया, कैसा महसूस हो रहा है आपको?य्
दूसरी तरप़फ, ख़बरी चैनल का स्पेशल प्रोग्राम }ाुरू हो गया। ऐंकर ने पहले स्पाॅट पर रिपोर्टर के साथ चैट कर, स्टूडियो में बैठी वेटेरिनरी डॅाक्टर को संबोध्ति किया, फ्डाॅक्टर साहब आपसे जानना चाहेंगे कि रिंग रोड जैसी भीड़-भाड़ वाली सड़क पर एक कुतिया के लिए पिल्लों को जन्म देना कितना मुश्किल है? क्या मनोस्थिति होती है ऐसे में एक कुतिया की?य्
इतनी देर में पफटपफट चैनल ने ब्रेकिंग न्यूज़ का पट्टा लगाकर सनसनी पैफला दी। चैनल की ऐंकर बोली, फ्अब ताज़ा जानकारी के लिए चलते हैं सीध रिंग रोड जहाँ पर हमारे संवाददाता नंबर 12 हैं: जी बताइए क्या जानकारी है आपके पास?य्
रिपोर्टर के एक हाथ में माइक था और दूसरे से वो अपना ‘इयरपीस’ ऐडजस्ट कर रहा था। क्यू मिलते ही वो प़फौरन बोल पड़ा, फ्जी मैं आपको बता दूँ कि हमें जानकारी मिली है कि इस कुतिया का नाम रमोला है। कुछ महीने पहले तक ये पास की एक पाॅश काॅलोनी के एक बँगले में रहती थी। लेकिन इसका प्यार गली के एक कुत्ते से हो गया जिसका नाम हमेें अभी तक पता नहीं चला है। इसी प्यार के चलते वो महलों से गलियों में आ गयी।य्
ये जानकारी मिलने के बाद चैनल की ग्रापि़फक्स टीम को हिदायत दी गयी कि वो स्पेशल प्रोग्राम के लिए एक स्टिंग बनाए। स्टिंग पर कुतिया की तस्वीर लगाकर, बग़ल में लिखा गया: रमोला का प्यार। उसके बाद, एक एसएमएस प्रतियोगिता भी शुरू की गयी, ‘क्या रमोला को उसका हक़ मिलना चाहिए?’
ख़बरी चैनल भला कहाँ पीछे रहने वाला था। वहाँ एक एडीटर ने सोच लिया था कि स्टूडियो डिस्कशन के ज़रिए ही दूसरी चैनलों को पीछे किया जा सकता है। इसलिए उसने गेस्ट काॅर्डिनेशन को आनन-पफानन प़फोन लेने की हिदायात दी। स्टूडियो के बाहर से पहला प़फोन मशहूर पि़फल्म निर्देशक रमेश भट्ट का आया। परमाणु निरÐीकरण से लेकर नर्मदा आंदोलन तक - सभी मुद्दों पर भट्ट साहब की राय जानना चैनलों के लिए एकदम ज़रूरी हो गया था। और हमेशा की तरह उन्होंने चैनलों को निराश नहीं किया। बोले, फ्पाकिस्तान के साथ दोस्ती बढाने का इससे अच्छा मौक़ा कोई हो ही नहीं सकता। प्रधनमंत्राी कार्यालय को तुरन्त एलान कर देना चाहिए कि कुत्तों के बीच क्राॅस बाॅर्डर शादियों को बढ़ावा दिया जाएगा और ऐसे प्रयासों का सारा ख़र्चा सरकार वहन करेगी। इसके बाद भट्ट साहब ने जो कहा, इसकी प्रतिक्रिया के लिए पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को प़फोन लगाया गया। वहाँ की प्रवक्ता को तो इसी मौक़े का इंतज़ार था। वो बोलीं, फ्कुत्तों की क्राॅस-बाॅर्डर शादी तब तक मुमकिन नहीं हो सकती है जब तक हिन्दुस्तान कश्मीर वादी में अपनी प़फौज कम नहीं करता।य्
पाकिस्तान की इस प्रतिक्रिया का असर मुंबई में तुरन्त देखा गया। वहाँ पर शिव सैनिकों ने रमोला के पुतले जलाए और कहा कि ऐसी घटनाओं से देश की संस्कृति भ्रष्ट हो रही है। उग्र भीड़ ने ‘डाॅग प़ूफड’ बेचने वाली कई दुकानों को भी तोड़-पफोड़ डाला। दूसरी तरप़फ जावेद अख़्तर और राहुल बोस ने }िाव सैनिकों के इस प्रदर्शन के ख़िलाप़फ टीवी कैमरों के सामने आवारा कुत्तों को बिस्कुट खिलाए।
शाम को एसएमएस प्रतियोगिता के नतीजे भी आ गए। अस्सी प्रतिशत देशवासियों ने कहा कि रमोला को उसका ‘हक़ मिलना चाहिए’। दस प्रतिशत ने कहा ‘नहीं’ और दस प्रतिशत की इस पर ‘कोई राय नहीं थी’। पहले पाँच एसएमएस करने वालों को चैनल ने ‘विपुल साड़ीज़’ और ‘रूपा अंडरवीयर’ की तरप़फ से पाँच हज़ार रुपए के गिफ्ऱट वाउचर भेंट किए। लाइव कवरेज का ज़माना था, इसलिए गिफ्ऱट भी उनके विजेताओं तक उसी दिन पहुँचाए गए।
उसी शाम मल्लिका सहरावत ने अपनी रेसिपी पर आधरित लड्डू बनाए। इलाज के अभाव में सप़फदरजंग हाॅस्पिटल में तीन मरीज़ों की मौत हो गयी। आंध््रप्रदे}ा के एक गाँव में तीन किसानों ने क़र्ज़ से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या की।
अगली सुबह मल्लिका सहरावत की स्टोरी टेलीविज़न पर देखते हुए इंस्पेक्टर सत्यवीर नाश्ता कर रहे थे। उनकी पत्नी ने नाश्ता उसी दिन के अख़बार पर रखा हुआ था। पराँठे का एक टुकड़ा तोड़ते हुए इंस्पेक्टर की नज़र किसानों की आत्महत्या की ख़बर पर पड़ी और उनके ज़हन में कल के रिपोर्टर की छवि उभर आयी। इतने में उनकी पत्नी मुस्कराते हुए बेडरूम से निकलीं और उनके सामने एक पैकेट रख दिया। फ्क्या है इसमें?य् इंस्पेक्टर ने पूछा। फ्मुझे कल एक एसएमएस प्रतियोगिता में इनाम मिला। वो तो साड़ी दे रहे थे पर मुझे तुम्हारा ख़याल आया। सो, तुम्हारे लिए जाँघिए लिए हैं।य् उसकी मुस्कुराहट और गहरी हो गयी। न जाने इंस्पेक्टर सत्यवीर को क्या हुआ, उन्हांेने नाश्ते की थाली एक तरप़फ सरकाई, टीवी बंद किया और बुदबुदाए - मादर... !


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