7.2.08

जनता का धैर्य की परीक्षा कब तक लेते रहोगे

भगवती सराय में हमारे सहकर्मी हैं. शहर और संगीत के बदलते आयाम पर इन्होंने ठीकठाक काम किया है. तकनीकी के साथ हमेशा कुछ न कुछ प्रयोग करते रहते हैं. पेश है जनता और सरकार के बीच नित हो रहे नए घमासान पर उनकी एक बेवाक टिप्पणी.

पिछले दिनों एक घटना ने लोगों को चकित कर दिया। गूढ़ को जाने वाला फ्लाईओवर काफ़ी दिनों से तैयार था। से प्रतीक्षा थी अपने उद्घाटन के लिए किसी अदद बड़े नाम की। लेकिन फ्लाईओवर अपनी यह व्यथा नहीं कह पाया। यातायात की ज़रूरत ने उस पर चलने वालों को यह कहने के लिए मज़बूर कर दिया कि बस अब बहुत हो गया। जनता ने न तो किसी बड़े नाम का इंतज़ार किया और न ही किसी जनप्रतिनिधि को बुलाया। जनता ने जनता का फ्लाईओवर ख़ुद ही जनता को समर्पित कर लिया। यह सब देखकर सरकार ने आनन-फ़ानन आकर फिर से फ्लाईओवर का उद्घाटन किया।
इस घटना ने सरकार और जनता के बीच बनते-बिगड़ते रिश्तों पर बहुत से सवाल खड़े किए हैं। जनता का प्रतिनिधि लोकतंत्र के मुताबिक जन प्रतिनिधि कहलाता है। लेकिन इस घटना में जन तो क़ायम रहा, प्रतिनिधि गायब हो गया। शहरीकरण के इस दौर में आए दिन ढ़ेरों फ्लाईओवर, मेट्रो, अस्पताल, सामुदायिक केन्द्र और न जाने क्या-क्या लगातार बन कर यह शहर को नई शक्ल देते जा रहे हैं। जहाँ देखो शिलान्यास, उद्घाटन और न जाने क्या होना बाक़ी है। इन उद्घाटनों के लिए बड़े से बड़ा नाम सिर झुकाए तैयार खड़ा है। सत्ता में बैठी राजनीति के लिए तो यह वो क्षण होते हैं जब वह अपने काम और अपने व्यवहार को जनता के ज़्यादा दिखाना चाहती है।
उद्घाटन के तामझाम, पार्टी के कार्यकर्ता, अंत में जनता, लंबा इंतज़ार, प्रतिनिधि के पहुँचते ही पार्टी कार्यकर्ताओं या जनता के बीच से ऊँचे क़द वालों का मालाएँ लेकर टूट पड़ना, एक के बाद एक नाम ... और बस चंद मिनटों में प्रतिनिधि द्वारा सारा जीवन जनता के चरणों में समर्पित कर देने की बातें। नेता गाड़ी में सवार मंच बन जाते हैं और जनता के लिए यह कोई नई बात नहीं है। जनता पक चुकी है। कई और उदाहारण भी ऐसे हैं जहाँ जनता अपने आप को ही सर्वोपरि मानकर काम चालू कर लेती है। जनप्रतिनिधि की कोई आवश्यकता नहीं।
यह घटना राजनीतिक पार्टियों और जनता के बीच बिख़रते रिश्तों की पहचान है। मुझे लगता है कि जनता को सौंपा जाने वाला कोई भी फ्लाईओवर, मेट्रो, अस्पताल, सामूहिक केन्द्र आदि के शिलान्यास, उद्घाटन की रस्म समय रहते जनता को सौंप देनी चाहिए। बाद में सरकार जितनी बार चाहे उसका शिलान्यास, उद्घाटन करती रहे। इसी कारण कई ज़मीनें अपने सीने पर शिलान्यास का पत्थर लिए अपने ऊपर बनने वाली सार्वजनिक इमारत की प्रतीक्षा में खाली पड़ी हैं।






2 comments:

  1. तो भगवती भाई भी अपनी बिरादरी में आ ही गए। बधाई। जनता समझती है कि अब बर्दाश्त करने और आश्वासन मिलने से कुछ उखड़ने वाला नहीं है और फिर पैसा लगाए जनता और माला पहने नेता. इ तो जुलूम है भाई। भगवती भाई...हल्ला बोल..

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  2. sir
    khali ishi se hume khush hone ki jarurat nahi hai halanki shuruaat hui accha laga magar in bahro ko ye awazein sunai nahi deti ya ye jaan bujhkar sunte nahi ..bada nakar chahiye janta se mujhe to usi ka intezar hai jab janta khud hi kahegi samne khade ho jao netao aur ish falan cheez ka udghatan hiraman ,budhan sanichar ...ityadi bhai log karenge kyonki ishme inki hi mihnat aur pasina hai aur aapka kaam hai ki aap in logon ko mala pahnakar pushpaguch dekar sammanit karein..badhiya likha aapne...janta jag rahi hai magar "YE DIL MAANGE MORE"
    munna

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