मुझे लगा कि आगे बढ़ने से पहले कुछ मित्रों की भ्रांतियों को दुरुस्त करने की एक और कोशिश कर ली जाए. सिलसिलेवार ठीक रहेगा.
कल मैंने ये लिखा कि आतंकवाद से निबटने के लिए जो भी क़ानून अपने देश में बनाए जाएंगे उसके तहत अगर सबसे पहले आडवाणीजी पर कार्रवाई होगी तो मुझ जैसे टैक्सपेयर को बड़ी तसल्ली होगी और देश में अमन-चैन को भी बढ़ावा मिलेगा. और ये मेरा प्रस्ताव था. जिस पर मैं आज भी क़ायम हूं. और आपलोगों ने इसे पता नहीं किन-किन रिश्तेदारियों में ढालने की कोशिश की. मेरे लिए तर्क यानी दलील अलग चीज़ है और रिश्तेदारी अलग. और शायद तमाम विवेकशील लोग मेरी इस राय से सहमत होंगे. आप ज़रूर अपने लिए इसे किसी रिश्तेदारी की चीज़ मानें. हां, जहां तक रिश्तेदारी की बात है तो मैं ख़ुद को वसुधैव कुटुम्बकम वाली जमात का मानता हूं.
आडवाणीजी की फिरकापरस्त गतिविधियों की चर्चा करना देशद्रोह हुआ, क्यों भाई? कौन नहीं जानता कि आडवाणीजी उस राजनीतिक वंश के बूढ़े बरगद ठहरे जिसका ताल्लुक़ कभी भी देशहित के बारे में विचारने या करने से नहीं रहा. जी हां, मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ही बात कर रहा हूं. पुराना ही सवाल दोहरा रहा हूं : बता सकते हैं आप कि आज़ादी के आंदोलन के दौरान आडवाणी या संघ से जुड़े किसी भी सख़्स ने बलिदान किया हो? मित्र आप (यानी संघ परिवार के विभिन्न घटक) तो पैदा होते ही हिन्दू राष्ट्र के चक्कर में पड़ गए, या आपको पैदा ही इसलिए किया गया. आपको भारत की आज़ादी या आज़ाद भारत की फिक्र करने का मौक़ा कहां मिला! आपका दोष नहीं है. थानेदार को माफ़ीनामा देकर कौन कैसे भागा और कैसे आज़ादी के आंदोलन में शामिल लोगों के बारे में अंग्रेज़ों को जानकारी दी जाती रही, नहीं जानते हैं आप? आपको जानना चाहिए. कम से कम अपना इतिहास तो आपको क़ायदे से जानना चाहिए.
ये बताने की बार-बार ज़रूरत क्यों होनी चाहिए कि देशद्रोही क़रार दिए जाने की पात्रता आडवाणीजी के पास है. अंग्रेज़ों से लड़कर, करोड़ों कुर्बानियां देकर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने जो देश हमें दिया वो एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य है. चाहें तो प्रस्तावना पर एक नज़र मार लें. किसी ख़ास धर्म, समुदाय, रंग, लिंग या क्षेत्र के प्रति पक्षधरता हो हमारे संविधान का, ऐसा उल्लेख तो नहीं मिलता उस किताब में जिसे डॉ. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने बनाया था और जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. वही 26 जनवरी जिस दिन समूचा देश गणतंत्र दिवस मनाता है. हमें ये दिन इसलिए भी याद है कि इस दिन स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री लक्ष्मीनारायण ठाकुर को झंडोत्तोलन के तुरंत बाद एनसीसी द्वारा पेश किए जाने वाले गार्ड ऑफ़ ऑनर का निरीक्षण करने के लिए मैं आमंत्रित करता था. और इस रस्म के बाद थोड़ा भाषण-वाषण और फिर नयी बिल्डिंग में सीढियों के बग़ल में हम बच्चों के बीच जलेबी वितरण कार्यक्रम होता था. हमारे रोएं खड़े हो जाते थे जब हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में सुनते थे. पर मित्रों, तब से लेकर अब तक एक भी बार आपके संघ से जुड़े किसी नेता के नाम के साथ 'अमर रहें' न हमसे बोलवाया गया और न हम बोल पाए.
हां तो कह रहा था कि आडवाणीजी देशद्रोही क़रार दिए जाने की पर्याप्त पात्रता रखते हैं. चाहें तो देशद्रोह की परिभाषा पर आप स्वयं एक निगाह डाल लें. वो ऐसे कि हमारे देश के नाम का जान-बूझकर ग़लत उच्चारण करते हैं, जिससे यह घ्वनित होता है कि यह देश किसी धर्म विशेष का है, इससे हमारे संविधान का ही नहीं, उन करोड़ों स्वाधीनता सेनानियों का अपमान होता है जिन्होंने इस देश को आज़ाद करने के लिए बेहिसाब यातनाएं झेलीं और अपने जान न्यौछावर किये. वैसे तो इस मुल्क में आज तक किसी ने ऐसी ज़ुर्रत की नहीं लेकिन सेकेंड भर के लिए यह मान लें कि कोई इसे कृश्चिस्थान, सिखिस्थान, इस्लामिस्थान, बुदिस्थान, जैनिस्थान, कबीरस्थान, नास्तिकस्थान कह दे. आपको लगता है कि राज्य ऐसा कहने वालों को छोड़ देगा? छोड़ नहीं देगा, तोड़ देगा. हर तरह से तोड़ देगा, हर तरह से. और धर्म विशेष के पक्ष और विपक्ष में उनके कई भाषण यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं. मुझसे ज़्यादा सहजता से आप ढूंढ लेंगे, और अपनी पसंद का. लचीला या तीखा : जैसा चाहेंगे मिल जाएगा. यानी वैसा कुछ भी करने की क्षमता और माद्दा न केवल वे रखते हैं बल्कि समय-समय पर इज़हार भी करते रहते हैं जिससे इस देश की धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक संरचना तार-तार होती है.
थोड़ी चर्चा आतंकवाद की. परिभाषा स्वयं देख लें. अब बताएं कि क्या श्रीमान आडवाणीजी के कारनामे आतंकवादी कहे जा सकने लायक़ हैं या या नहीं. उनके द्वारा, या उनके निर्देश से या उनके संरक्षण में या प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से उनकी मिलीभगत से, या उनकी जानकारी में, या उनकी निगरानी में होने वाली हर वो गतिविधि और हर वो कार्रवाई आतंकवादी है जिससे समाज समग्रता में या तबक़ा विशेष ख़ौफ़जदा होने को मजबूर होता या है. मिसालें जितनी चाहें, आपको मिल जाएंगी. फिर भी कुछ मोटे उदाहरण आपकी खिदमत में पेश करने की गुस्ताख़ी कर रहा हूं. क़रीब सोलह साल पहले श्रीमान लालकृष्ण ने राम के नाम पर एक यात्रा निकाली. उसके बाद क्या-क्या हुआ, कहां-कहां हुआ, कब-कब हुआ, कितना-कितना हुआ, कैसे-कैसे हुआ - आप जानते ही होंगे; हां आपको उस पर गर्व हो रहा होगा, हमें शर्म आती है. सरयूतीरे रचित नव अयोध्याकांड के प्रणेता कौन हैं और कौन प्रेरणास्रोत: मेरे ख़याल बताने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए. इस पर भी आप गर्व करेंगे.
यही सख्स कुछ साल पहले इस देश के गृहमंत्री थे और उसके उप भी जिसके प्रधान बनने की जल्दबाज़ी में हैं आजकल. तो उन दिनों देश के विभिन्न हिस्सों में और विशेषकर उन प्रदेशों में जहां-जहां सीधे उस पार्टी जिससे लालकृष्णजी ताल्लुक़ रखते हैं, की सरकार थी या फिर सहयोगी दलों का शासन जहां-जहां था; ईसाइयत में आस्था रखने वालों के साथ जमकर दुर्व्यवहार हुआ. दुर्व्यवहार क्या, संगठित जघन्य अपराध. जिन्दा जलाने से लेकर सामूहिक बलात्कार तक. लौहपुरुष एक बार भी न पिघले. पिघलते क्या, उल्टे परोक्ष रूप से अपराधियों की तरफ़दारी ही कर पाए. देखा नहीं आपने गुजरात के 'हिन्दु राष्ट्र' में प्रहरियों ने तलवार की नोंक से कैसे कौसरबानों की अजन्मी बिटिया को कोख से बाहर खींच कर सड़क पर मसल दिया! क्या-क्या कहा जाए. बहुत बातें हैं. मुझे मालूम है जितने तथ्य मैं गिना रहा हूं उसे ग्रहण तो आप करेंगे लेकिन पचा तभी पाएंगे जब आपको अमन और इंसानियत से प्यार होगा.
एक बात और बताउं आपको? ये आडवाणीजी देवद्रोही भी हैं. राम नामक एक देवता हुए हैं. उनके नाम पर मंदिर बनवाने के बहाने काफ़ी कुछ किया गया. मसलन देश भर में ईंटें घुमायी गयीं, डीजल वाला रथ घुमाया गया, देश भर से लोगों को ख़ासकर नौजवानों से फ़ैज़ाबाद जिले के अयोध्या में जमा होने का आवाहन किया गया और हज़ारों की तादाद में नौजवान बताए हुए स्थान पर पहुंचे, एक पुरानी मस्जिद ढाही गयी, उसके बाद दंगे हुए और करवाए गए, फिर चुनाव के वक़्त वोट मांगे और बटोरे गए, फिर जगह-जगह राज भोगा गया. और ये सब हुआ श्रीमान लालकृष्ण आडवाणी जी के प्रत्यक्ष और कभी-कभार परोक्ष नेतृत्व में. और इन 'महत्त्वपूर्ण' प्रक्रिया में डेढ़ दशक से ज़्यादा अवधि की खपत हो गयी. पर वो रामालय आज तक नहीं बन पाया. रामजी सोचते नहीं होंगे? सोचते होंगे, ज़रूर सोचते होंगे. मेरे खयाल से इतना कुछ हो जाने के बाद तो देवद्रोह का मामला भी बनता है. बल्कि स्पष्ट रूप से कहें तो रामद्रोह का. यानी आडवाणीजी रामद्रोही भी हुए?
अडवाणी, भाजपा या संघ का प्रशंसक नहीं हूँ.. फिर भी आपका लेख हजम नहीं हुआ.. कुछ ज्यादा हो गया..
ReplyDeleteशुक्रिया. थोड़ा और खोलकर लिखते तो कुछ सीख पाता. लिख सकें तो ज़रूर लिखिएगा.
ReplyDeleteभाजपा और आर0एस0एस0 के बारे में पहली इतने धारदार शैली में लिखा पढने को मिला। वैसे मेरी सलाह यही है कि इतनी बेबाकी अच्छी नहीं, लोग आपको चैन से जीने नहीं देंगे।
ReplyDeleteभैये ये चित्रपहेली ठीक लगाई है आपने ...क्यों कि 20 बरस से संघ का सक्रिय स्वयं सेवक होने के बाद भी आजतक हमें ये बंदूक चलाना नहीं सिखाया किसी ने...कृपया बतायें मैं भी इच्छुक हूं ..और थोङा इस बात पर भी प्रकाश डालें कि किस तरह से उत्तरपूर्व मैं संघ के स्वयं सेवकों ने आतंकवादियों से लोहा लेते हुए वहां संस्कृति और राष्ट्रीयता की रक्षा मैं लगे हुए हैं
ReplyDeleteमित्र बस इन तस्वीरों पर क्लिक करें इनका स्रोत पता चल जाएगा. उन स्रोतों के तह में चले जाइए, पहुंच जाइएगा किसी न किसी ट्रेनिंग कैंप में. वैसे सुना है गुजरात में बहुतेरे ट्रेनिंग कैंप्स चलते हैं.
ReplyDeleteअच्छा ही लिखा होगा, पढ़ा नहीं पूरा. ब्लॉग होते ही भड़ास निकालने के लिए है.
ReplyDeleteवैसे आज़ादी में किन किन का योगदान था, उसकी सूची भी थमा दें हम जैसों को आसानी रहेगी.
इस प्रकार के बहुतेरे लेख पहले भी पढ़े हैं, सेकुलरिज़्म(?) और कथित हिन्दू साम्प्रदायिकता(?) के बीच यह वैचारिक युद्ध जारी है, जिसमें पिछले 60 साल से "सेकुलरिज़्म" का पलड़ा भारी रहा है, और जिसका खामियाज़ा देश कश्मीर और असम में भुगत ही रहा है। जो तस्वीरें आपने लगाई हैं, उसके जवाब में मुस्लिम आतंकवाद की हजारों तस्वीरें और "पेट फ़ाड़ने" जैसी लाखों घटनाओं का उल्लेख किया जा सकता है, लेकिन क्या फ़ायदा, जब आप "क्रिया की प्रतिक्रिया" तथा "आत्मरक्षा" को भी साम्प्रदायिकता बताने पर उतारू हों… यह वैचारिक युद्ध तो जारी है और रहेगा… आप अपनी ढपली बजाईये और हम अपनी…
ReplyDeleteराष्ट्र के हर महत्वपूर्ण मोड़ पर वामपंथी मस्तिष्क की प्रतिक्रिया राष्ट्रीय भावनाओं से अलग ही नहीं उसके एकदम विरूध्द रही है। गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन के विरूध्द वामपंथी अंग्रेजों के साथ खड़े थे। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को 'तोजो का कुत्ता' वामपंथियों ने कहा था। मुस्लिम लीग की देश विभाजन की मांग की वकालत वामपंथी कर रहे थे। आजादी के क्षणों में नेहरूजी को 'साम्राज्यवादियों' का दलाल वामपंथियों ने घोषित किया। भारत पर चीन के आक्रमण के समय वामपंथियों की भावना चीन के साथ थी। अंग्रेजों के समय से सत्ता में भागीदारी पाने के लिए वे राष्ट्र विरोधी मानसिकता का विषवमन सदैव से करते रहे। कम्युनिस्ट सदैव से अंतरराष्ट्रीयता का नारा लगाते रहे हैं। वामपंथियों ने गांधीजी को 'खलनायक' और जिन्ना को 'नायक' की उपाधि दे दी थी। खंडित भारत को स्वतंत्रता मिलते ही वामपंथियों ने हैदराबाद के निजाम के लिए लड़ रहे मुस्लिम रजाकारों की मदद से अपने लिए स्वतंत्र तेलंगाना राज्य बनाने की कोशिश की। वामपंथियों ने भारत की क्षेत्रीय, भाषाई विविधता को उभारने की एवं आपस में लड़ने की रणनीति बनाई। 24 मार्च, 1943 को भारत के अतिरिक्त गृह सचिव रिचर्ड टोटनहम ने टिप्पणी लिखी कि ''भारतीय कम्युनिस्टों का चरित्र ऐसा कि वे किसी का विरोध तो कर सकते हैं, किसी के सगे नहीं हो सकते, सिवाय अपने स्वार्थों के।'' भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले गांधी और उनकी कांग्रेस को ब्रिटिश दासता के विरूध्द भूमिगत आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे देशभक्तों पर वामपंथियों ने 'देशद्रोही' का ठप्पा लगाया।
ReplyDeleteराकेशजी कम्युनिस्ट हैं। झूठ बोलना कम्युनिस्टों की पुरानी आदत है। यही कारण है कि देश की जनता ने वामपंथ को रिजेक्ट कर दिया। तीन राज्यों के बाहर साम्यवाद का कोई नामलेवा नहीं बचा है। भाषण और लेखन के आधार पर भारतीय संस्कृति को गरियाने के अलावा इनकी सक्रियता बस यही है मजदूरों से चंदे वसूलकर कोक-पेप्सी पीना (अब इन्होंने वोडका पीना छोड दिया हैं)। आडवाणीजी ने इनकी विचारधारा को भारत में ध्वस्त कर दिया हैं। इसलिए देश के नायक आडवाणीजी वामपंथियों के दुश्मन हो, इसमें कोई अचरज की बात नहीं है। स्वतंत्र भारत में लालकृष्ण आडवाणी जैसा प्रतिभाशाली राजनेता पैदा नहीं लिया। वे अद्भुत है। नेताओं की दो कैटेगरी होती है। एक, जो क्षेत्र पर अच्छी पकड रखते है और दूसरे, जिनकी बौदिधकता प्रखर होती है। लालकृष्ण आडवाणी रेयर है। उनका दोनों क्षेत्रों पर असामान्य अधिकार है। ध्यान दीजिए, वह कौन राजनेता है जिन्होंने कांग्रेस के वर्चस्व को तोडा, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को प्रखर किया, छद्म धर्मनिरपेक्षता को धराशायी किया, वामपंथियों को चुनौती दी, जिनके नेतृत्व में भाजपा के सांसदों की संख्या 2 से 181 हो गयी, जिन्होंने पांच बार रथयात्रा का आयोजन कर अखिल भारतीय जन-मन को छुआ, जिन्होंने जनसंघ के अध्यक्ष के रूप में जयप्रकाश नारायण को पार्टी अधिवेशन में आमंत्रित कर पार्टी का प्रशंसक बना लिया, जिनकी ईमानदारी-नैतिक निष्ठा असंदिग्ध है। भाजपा की ओर से आडवाणीजी की प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में घोषणा से कार्यकर्ताओं का उत्साह दुगुना हो गया है। एनडीए नेताओं ने जिस तरह से बयान दिए है और अखबारों ने जो संपादकीय लिखे है, उससे साबित है आडवाणीजी के मुकाबले आज कोई नेता नहीं है। 80 साल की आयु में भी उनकी सक्रियता युवाओं को लजा देती है।
ReplyDeleteभाई साहब कल तक आपसे शिकायत थी अब तो बिल्कुल नहीं है
ReplyDeleteकल अन्तुले का बयान सुना. यहां तो एक से एक देशद्रोही भरे पड़े हैं, किस किस से निबटेंगे... एक से बढकर एक
जब इतने सारे लोग तालियां फटकार कर कमर हिला रहे हैं तो अकेले आपको ही क्यों बुरा भला कहें, आप भी लगे रहो..
वैसे ये एनजीओ वाले खूब हैं, आपको इतना पैसा दे देते हैं कि टैक्सपेयर बन गये हो! भई वाह,
चालू रखो, चालू रखो, इत्मीनान से
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ReplyDeleteआपकी बातें कितनी असुविधाजनक हैं, आप देख ही रहे हैं । आपको कुछ भी कहने की जरूरत नहीं रह गई । जो आपने नहीं लिखा, वह भी पढवा दिया भाई लोगों ने ।
ReplyDeleteआप मित्रों का शुक्रिया. इतनी सूचनाप्रद प्रतिक्रियाओं के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद. विशेषकर संजीवजी, सुरेशजी, मिहिरभोजजी और अदृश्य दिनेशजी का. शुक्र है इस बार आपमें से किसी ने मेरी रिश्तेदारी साबित करने में दिलचस्पी नहीं ली. कुछेक लोगों ने मेरी वैचारिक समझ को मुझसे भी ज़्यादा 'ज़ोरदार' ढंग से उठाने की कोशिश की है. आपके इस प्रयास के लिए आपको बधाई!
ReplyDeleteपर मित्रों आपमें से कोई यदि मेरी तीनों प्रस्थापनाओं और सुझावों पर भी कुछ राय व्यक्त कर पाते तो बड़ी मेहरबानी होती. जान तो जाता कि आप इतने प्रकार के द्रोह में संलिप्त व्यक्ति के बारे क्या विचार रखते हैं.
पर उम्मीद है कि आप ऐसा कुछ नहीं लिखेंगे जिससे आपको संघ से कट लेना पड़े. व्यक्तिगत बातचीत में कुछ हिन्दुवादी मित्रों ने भी स्वीकारा है कि आडवाणीजी ने देश की जनता और भगवान राम के साथ जो छल किया है उसके लिए उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए.
और भइया, ये पाक हिन्दुस्तानीजी कौन हैं. मुझे नहीं मालूम कि इनको स्वयं को पाक कहने की ज़रूरत क्यों पड़ गयी! उम्मीद करता हूं कि आप पाक ही होंगे, पर अपनी प्रतिक्रिया को सार्वजनिक करने से पहले उड़ा क्यों दिया आपने? जान तो पाता आपकी राय.
रजनीशजी आपसे बस यही विनती है कि मैं अपनी राय बेवाक़ी से ही ज़ाहिर करता रहूंगा. लटर-पटर और घालमेल में कुछ नहीं रखा है.
एयर गन चलाते बच्चे तो मेले मे भी दिख जाते है . आपने ज्यादा ही उम्मीद करली इन संघियों से बातो के शेर है इन से कुछ नही होगा वह अपने लोग है जो मओवादिओं और नाक्साल्वादिओं की फोज पालते है .
ReplyDeleteDear Rakesh
ReplyDeleteWhat sort of stupidity you are showing!!! In your opinion Mr Advani may be “Anti National Element” its fine but are you a true nationalist? While you are drawing any opinion on open forum you should be very careful.
If you are so peace loving, please at the time of narrating the story of Hard Hinduism you should also narrate the story of Hard Muslim too and condemn the both at same velocity.
I think notorious person like you are more responsible to adopting the hard hinduism to a Common Hindu.
“Bhagvan ke liye logo ko bhadkan band karo”