21.1.09

'व' की जगह हम 'ब' या 'भ' से ही काम चला लेंगे ....

हिन्‍दी ही चलती है हमारे प्रदेश में भी. घर में चाहे बज्जिका बोलते हों या भोजपुरी या मैथिली या फिर अंगिका; घर से निकलते ही सब हिन्‍दी में तब्‍दील हो जाती है. पर इस बदली हुई हिन्‍दी पर घर के अंदर बोली जाने वाली बोली का वर्चस्‍व होता ही है, स्‍थापित नहीं करना पड़ता है. फिलहाल मैं उस बहस में नहीं पड़ना चाहता कि घर के अंदर बोली जाने वाली बोली भाषा विज्ञान की दृष्टि से ठीक होती है या बेठीक. इतना ज़रूर है कि उसे बोलने - बरतने में बड़ा मज़ा आता है. पर यही हिन्‍दी बनकर जब जबान से बाहर आती है कि उसमें एक अटपटापन होता है.
दादी कहती थीं, 'चल रे लडिका सS, महाबीरी धजा पूजे; सब कोने के पेरा देबउ'. बालपन की बात को याद करके आज भी बड़ा सामान्‍य लगता है दादी का हम सब बच्‍चों को उस तरह कहना. पर वही बात जब छुट्टियों के बाद वापस हॉस्‍टल लौट कर दोस्‍तों से कुछ इस तरह कहते थे :
'एक दिन अपनी दादी के साथ महाबीरी धाजा के पूजा में गये थे हम'
तो बिल्‍कुल ठीक-ठीक तो नहीं ही लगता था.
एक बोली के तौर पर घरों के अंदर बोली जाने वाली और घर से बाहर इस्‍तेमाल की जाने वाली हिंदी में से किसी की महत्ता को कम करके नहीं आंक रहा हूं. दोनों की अपनी जगह है. कई मर्तबे दोनों एक-दूसरे को समृद्ध बनाते हैं. पर यही लगता है कि दोनों के अंदाज़ को अगर अक्षुण्‍ण रखा जा सके तो क्‍या ही बढिया होगा.
ऐसा कहते वक्त मैं आम तौर पर बिहार में बरते जाने वाली हिन्‍दी को ज़रूर रेखांकित करना चाहूंगा. यह कहना कि हिंदी की वर्णमाला से बिहार में यदि 'व' निकाल भी लिया जाए तो वहां संप्रेषण की समस्‍या नहीं आएगी, ग़लत और अतिशयोक्ति नहीं मानी जानी चाहिए. लोग इस 'व' की जगह कहीं 'ब' से तो कहीं 'भ' से काम चला लेते हैं. धड़ल्‍ले से चल रहा है. मजाल है कि स्‍कूल या कॉलेज में मास्‍साहब टोक दें कि पट्ठा ग़लत बोल रहा है.

7 comments:

  1. सरजी, लगे हाथ नेशनल म्यूजिम की जो बस स्टॉप है, वहां जो लिखा है उसकी भी बोर्ड लगा देते तो बात और साफ हो जाती कि सरकारी महकमे में घुसकर हिन्दी ऑफिसर कौन-सी हिन्दी पालते-पोसते हैं, अबकि वहां भी फोटू खीचेवाला मसीन लेके जाइएगा ।

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  2. सर आप तो पोलबे खोल दिए. हमरे जिला में तो लोग खूब कहते है- महाबीर स्थान ..
    एक चीज और इस बात को लेकर गूगल भी गंभीर हैं क्योंकि यहाँ व् V से आता है और ब B से

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  3. तुम्‍हरे कमिश्‍नरी में देखे थे 'यदुबंशी रथ'. उसी के छत पर सवार होके सुपौल से त्रिवेणीगंज गए थे हम. :)

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  4. कभी हिन्दी समाचारों की नीचे चलती पट्टी पर भी गौर करियेगा

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  5. जी डॉ. साहब बिल्‍कुल ठीक ध्‍यान दिलाया आपने. बड़े-बड़े घपले हो जाते हैं ...

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  6. कभी दक्षिण भारत आकर देखें|H को HECH बोला जाता है|

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  7. Guru, mujhe phone karna. contact book mein kisi virus ke karan aapka aur kai mitron ka number kho gaya. aapka number khoj raha hun. kripya phone karen. Rahul Pandita

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