14 मई को जाने-माने बाल चिकित्सक, पीपुल्स युनियन फॉर सिविल लिवर्टिज़ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. बिनायक सेन के जेल जीवन के दो साल पूरे हो गए. डॉ. सेन को माओवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने, राजद्रोह व राज्य के खिलाफ़ युद्ध छेड़ने का आरोपी मानते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने उन पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के अलावा 'छत्तीसगढ़ जनसुरक्षा कानून 2005' और 'ग़ैरक़ानूनी गतिविधि निवारक क़ानून (UAPA) 2004 (संशोधित)' जैसे कठोर क़ानून थोपकर रायपुर की जेल में क़ैद कर रखा है.
ग़रीब आदिवासियों का इलाज करने वाले इस डॉक्टर का दुनिया सम्मान करती है, पर छत्तीसगढ़ सरकार के लिए ये एक खुंखार नक्सलवादी हैं. इतना ही नहीं रायपुर से लेकर दिल्ली तक की अदालतें उन्हें जमानत पर बाहर आने लायक़ नहीं मानती है. तभी तो विभिन्न न्यायालयों द्वारा पिछले दो सालों में जमानत की उनकी अर्जियां एक-के-बाद-एक खारीज की जाती रही हैं. इधर दुनिया भर में डॉ सेन के प्रशंसकों, मित्रों, शुभचिंतकों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को उनके स्वास्थ्य की चिंता लगी हुई है और उन्हें ऐसा लग रहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार उनके खिलाफ़ किसी बड़ी साजिश गढ़ने में जुटी है.
डॉ विनायक सेन और उन जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ होने वाले सरकारी जुल्म व हिंसा के खिलाफ़ दुनिया भर से आवाज़ उठ रही है. नोबेल विजेताओं, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, संस्कृतिकर्मियों, छात्रों, कामगारों समेत स्वैच्छिक संगठनों व उनसे संबद्ध लोगों ने विनायक की रिहाई के लिए आवाज़ बुलंद की है. कैसी विडंबना है, बड़े से बड़े अपराधी न केवल जमानत पर बाहर आते हैं बल्कि चुनाव लड़-जीत कर जनता के लिए क़ानून भी बनाते हैं, और एक डॉ बिनायक हैं जिनके खिलाफ़ न कोई सबूत, न गवाह: फिर भी दो सालों से जेल की चारदिवारी में क़ैद हैं.
बिनायक सेन के साथ हो रहे इस अत्याचार के खिलाफ़ बीते 14 मई की शाम को नयी दिल्ली में एक 'प्रतिरोध कार्यक्रम' का आयोजन किया गया. रबिन्द्र भवन के लॉन्स में हुए उस प्रतिरोध कार्यक्रम में स्वामी अग्निवेश, नंदिता दास, अरुणधत्ती रॉय, संजय काक समेत आंदोलनों, सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों एवं बड़ी संख्या में बिनायक सेन के मित्रों, शुभचिंतकों, प्रशंसकों ने भाग लिया. लगभग ढाई तक चले उस कार्यक्रम में स्कूली बच्चों के अलावा दीप्ति एवं रब्बी शेरगिल जैसे ख्यातिप्राप्त कलाकारों ने गीत गाए तथा मंगलेश डबराल, के सच्चिदानंदन और गौहर रजा ने काव्य-पाठ किया.
डॉ बिनायक सेन पर हो रहे जुल्म पर बोलते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टीस राजेन्द्र सच्चर ने कहा कि बिनायक सेन जैसे सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में फंसाया जाना मानवाधिकार आंदोलनों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डिमोरलाइज़ करने की कोशिश से अधिक कुछ नहीं है. पर न्यायपालिका द्वारा बिनायक को किसी प्रकार की राहत न मिलने पर क्षोभ प्रकट करते हुए जस्टीट सच्चर ने अदालत के रुख को आड़ो हाथों लिया और कहा, 'यदि बिनायक नक्सलाइट है तो मुझे यह कहने में हिचक नहीं है कि मैं भी नक्सलाइट हूं'.
कार्यक्रम के अंत में ख्यातिप्राप्त लेखिका व मानवाधिकार कार्यकर्ता सुश्री अरुणधत्ति रॉय ने कहा कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर दिनोंदिन बढ़ते सरकारी ज़ोर-जुल्म से यह साबित होता है कि सरकारें न केवलनिरंकुश होती जा रही हैं बल्कि बग़रीबों और मेहनकशों से उनके़ जीने का हक़ भी छीन लेना चाहती हैं. हालिया दौर में मानवाधिकार कार्यकताओं पर बढ़ते सरकारी जुल्म को उन्होंने उद्योगपतियों के पक्ष में ग़रीब-गुर्बों की हक़मारी बताया.
कार्यक्रम का संचालन पत्रकार व जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता मुकुल शर्मा ने किया.
हफ़्तावार के पाठकों के लिए पेश है कार्यक्रम की चंद झलकियां:
फेमिनिस्ट कार्यकर्ता दीप्ता और सहेलियों ने गाया संत गुलाबीदास का भजन ...
राजेन्द्र सच्चर का संबोधन ...
के सच्चिदानंदन का काव्यपाठ ...
बिनायक सेन के पक्ष में मंगलेश डबराल ...
गौहर रजा ने पढ़ी चंद नज़्में ...
रब्बी का 'बुल्ले की जाना' ...
अरुणधत्ति रॉय का समापन संबोधन ...
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