30.9.07

ब्रह्मा, विष्णु और महेश के नए अवतार

भारत के राजस्थान प्रांत के जोधपुर नगर में कुछ लोगों ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की नयी तस्वीर जारी की है. ये तस्वीरें एक तरह से तीन महत्तवपूर्ण हिन्दू देवताओं के नए अवतार की घोषणा और नए युग के उद्घोष की कोशिश है. एक हिन्दी ख़बरिया चैनल पर भरोसा करें तो इन देवताओं की तस्वीरों से सुसज्जित कैलेंडर धड़ल्ले से बांटे जा रहे हैं.

ख़बर और उसके साथ की झलकी देखकर बंदे को कुछ ठेस- सी लगी. होश संभालने के बाद अब तक ब्रह्मा, विष्णु और महेश की जितनी भी तस्वीरें बंदे ने देखी है, ये वाली उन सबसे अलग थीं. पहले की तस्वीरों में ये त्रिदेव बड़े सौम्य और निरपेक्ष लग रहे थे. कल वाली तो बिल्कुल अलग थी. एक अज़ीब किस्म की पक्षधरता थी उसमें. चेहरा भी सामान्य नहीं लग रहा था. और तो और पहले की जो तस्वीरें बंदे को याद हैं उनमें वे इतने उम्रदराज़ भी नहीं लगते थे. कल वाले तो साठ पार के दिख रहे थे, बल्कि ब्रह्मा और महेश तो सत्तर से भी ज़्यादा के नज़र आ रहे थे.

नए अवतरित इस त्रिदेव को बंदे ने पहले भी कई मौक़ों पर देखा है. या कहें कि सभा, संसद, सम्मेलन, यात्राओं, जलसों इत्यादि में ये अलग-अलग भूमिकाओं में दिखते रहे हैं. हो सकता है ये वे न हों, या फिर वे ही हों, या अपने पुण्य प्रताप और चमत्कारिक शक्ति के बल पर इन्होंने उनकी शक्ल धारण कर ली हो. पर बंदे ने जब ये शक्ल उस तस्वीर में देखी तो कई बातें, घटनाएं और दुर्घटनाएं उसके ज़हन को झकझोर गयीं. जैसे कि तस्वीर वाले ब्रह्माजी की शक्ल कुछ साल पहले भारत के उपप्रधानमंत्री सह गृहमंत्री और अब भारतीय संसद में विपक्ष के नेता से हू-ब-हू मिलती है. उसी तरह विष्णु वाली शक्ल आठ-दस बरस पहले तक हिन्दुस्तान के सबसे बड़े राज्य के एक पूर्व, पूर्व मुख्यमंत्री, जिनके बाद अब तक उनकी पार्टी को सत्ता में आने का मौक़ा नहीं मिल पाया है – से पूरी तरह मेल खाती थी. और महेश यानी बाबा भोले भंडारी की शक्ल देखकर तो बंदे को ‘हार नहीं मानूंगा/रार नहीं ठानूंगा/काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं/गीत नया गाता हूं’ याद आ गया. इन पंक्तियों के रच‍यिता तो कुछ साल पहले तक भारतीय गणतंत्र के प्रधानमंत्री थे. बंदे ने सुना है अपने प्रधानमंत्रित्व काल के अंतिम दिनों में इंडिया शाइनिंग अर्थात भारत उदय नामक प्रचार-अभियान पर इन्होंने कर-दाताओं के पैसों को जमकर बहाया था. तो महेशजी की शक्ल उसी इंडिया शाइनिंग के प्रणेता से मिलती-जुलती लगी.

वैसे बंदे को कोई ख़ास दिक़्क़त नहीं है. बस ये लगता है कि अगर देवताओं को अवतरित होना ही था तो कम से कम इन शक्लों को न धारण करते. क्योंकि तस्वीर में जो ब्रह्मा है उससे मिलते-जुलते एक शख्सियत पर तो कई आरोप हैं. कुछ तो बेहद गंभीर हैं. अगर भारत के किसी आम नागरित पर ये आरोप लगे होते तो उस पर एक साथ दर्जन भर मुकदमे यहां की कच‍हरियों में चल रहे होते. अब देखिए न, नए ब्रह्मा वाली शक्ल के इस शख्स पर दिसंबर 1990 में उत्तर प्रदेश की एक प्राचीन नगरी में एक मस्जिद-ध्वंस के षड्यंत्र का आरोप है, जिसके चलते इन पर मुकमदा भी चल रहा है, और एक बहुत पुराने आयोग के सामने कभी-कभार सशरीर पेश होकर इन्हें सफ़ाई भी देनी पड़ती है. पर ये भी कम चालाक नहीं हैं, जैसा कि अदालतों में आम तौर पर देखा जाता है कि आरोपी और गवाह होस्टाइल हो जाते हैं – ये जनाब भी कुछ ऐसे ही हो जाते हैं. आरोप यह भी है एक बार 1989-90 में इस जनाब ने एक यात्रा निकाली थी और भड़काउु भाषण दिए थे जिसके चलते जगह-जगह दंगे भड़के और जान-माल की क्षति भी हुई. 2002 में गुजरात में इनकी पार्टी के शासन में एक ख़ास धर्म के लोगों का जमकर क़त्लेआम हुआ. कई स्वतंत्र जांच समितियों की रपट के मुताबिक़ चुन-चुन कर लोगों को जलाया गया था, गर्भवती महिलाओं के पेटों में तलवारें भोंक कर भ्रूण तक का ख़ून किया गया था. जान और अस्मत बचाकर भाग रही युवतियों को सिर पर केसरिया पट्टी बांधे ‘मर्दों’ ने खदेड़-खदेड़ कर पहले तो सामूहिक हवस का शिकार बनाया और फिर हमेशा-हमेशा के लिए उन्हें सुला दिया था. इतिहास बताता है कि तब ये सख्श उपप्रधानमंत्री तो थे ही गृहमंत्री भी थे, पर इन्होंने इंसानियत के खिलाफ़ उस जघन्य अपराध की भर्त्सना भी नहीं की थी, कार्रवाई की बात तो दूर. और भी मौक़े आए जब इन्हें बोलना चाहिए था, न बोले. हालांकि मितव्ययी तो नहीं हैं. उडि़सा में कुष्ठरोगियों का इलाज करने वाले डॉ. ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों को जब जिन्दा जला दिया गया तब भी कैलेंडर वाले ब्रह्मा से मिलते-जुलते शक्ल वाले इस शख्स ने कुछ ख़ास प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी.

विष्णु से मिलते-जुलते शक्ल वाले का कहना ही क्या. ऐसा शासन चलाया कि आज तक उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी की वापसी नहीं हुई. अब तो सुना है कि बड़ा बवाल मचा है पार्टी में और उनके हेडक्वार्टर में भी. अकाल में अपनी पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए. जानकारों को मानना है कि इनकी चाल और इनका चरित्र तस्वीर वाले ब्रह्मा के शक्ल से मिलते-जुलते शख्स के चाल और चरित्र से अंतिम हद तक मेल खाता है. सिर्फ़ चेहरे में अंतर है. अध्यक्षासीन होते ही इन्होंने भी एक-आध यात्राएं निकालीं पर ज़्यादा माहौल न बिगाड़ पाए. कुछ अख़बारों ने तो टांय-टांय फिस्स ही कह दिया था.

महेशजी, तस्वीर में छपे महेशजी से मिलते-जुलते शख्स के बारे में एक बड़े हिस्से में यह भ्रांति है कि वे आदमी -अच्छे हैं पर उनकी पार्टी ग़लत है. बंदे को नहीं मालूम वे कैसे हैं और उनकी पार्टी कैसी है, पर ये लगता है कि ग़लत पार्टी तो दूर की बाद ग़लत समूह में भी अच्छा आदमी दो पल से ज़्यादा नहीं टिक सकता है. कैलेंडर वाले महेशजी से मिलते-जुलते शक्ल वाले महानुभाव ने लगभग अपनी पूरी उम्र उस पार्टी में गुज़ार दी. यानी बंदे का कहने का मतलब ये कि ग़लत या सही पार्टी और व्यक्ति एक जैसे ही हैं. और ग़लत या सही क्यों, दोनों ही ग़लत क्यों नहीं? जोधपुर में बंट रहे कैलेंडर में छपे महेशजी से मिलते-जुलते चेहरे वाले व्यक्ति इस देश के प्रधानमंत्री थे तब मरे हुए गाय के नाम पर कुछ दलितों को खदेड़-खदेड़ कर पीटा गया था और मार दिया गया था. खुले आम कुछ खिचड़ी दाढ़ी वाले बाबाओं ने गाय को इंसान से ज़यादा क़ीमती बताया था, तब एक बार भी महेशजी से मिलते-जुलते मुंह-कान वाले व्यक्ति ने उसका प्रतिवाद नहीं किया था. असल में, उनके बारे में बंदे की यही राय है कि पार्टी-वार्टी जो है सो है ही, तस्वीर वाले महेशजी जैसे दिखने वाले इंसान का व्यक्तित्व काफ़ी उथला रहा है. अपने शासनकाल में इस इंसान ने इंसानविरोधी कामों के लिए ख़ास व्यवस्था की थी, ख़ास तरह के लोगों को ख़ास-ख़ास मंत्रालय का जिम्मा दिया था. शिक्षा के साथ जो हुआ वो तो जगजाहिर ही है. अंधविश्वास, पुरोहिती और कर्मकांड को ऑफि़सियल बना दिया गया, विज्ञान-प्रदर्शनियों के उदघाटन के मौक़े पर देवी वंदना और नारियल फोडू कार्यक्रम होने लगे (हालांकि बाद वाले कभी-कभार पहले भी होते थे). काफ़ी हद तक इस इंसान के बारे में यह भी सच है कि जनहित की बातों को मसखरी में उड़ा देना इसकी प्रवृत्ति रही है. अब भी इस सख्स का नाम कभी-कभार कुछ अनाड़ी उत्साहित पार्टी कार्यकर्ता अगले प्रधानमंत्री के रूप में उछाल देते हैं.

बंदा तो तहे दिल से यही चाहता है कि ईश्वर की कृपा से उसने ग़लत तस्वीर देख ली हो या ख़बर ही प्लांटेड हो. बाई चांस ईश्वर की कृपा से दोनों में से कुछ नहीं हुआ तो बंदे की भावना को गहरी ठेस लगी है. इसके हज़ारों-हज़ार साल की मान्यता धुल गयी है.

6 comments:

  1. भगवान नाम की सत्ता पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है लेकिन जिनको भरोसा है उनके हिसाब से बात करें तो जो लीला करके भगवान जीव को नचाता था वही काम अब उसका जीव कर रहा है। मतलब साफ है दोनों अपने-अपने स्तर पर प्रतिबद्ध स्वार्थी। अच्छा चोट है सर...

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  2. शुक्रिया विनीत


    क्या किया जाए, अपने में ही निपट लेंगे सब.

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  3. राकेश भाई
    ये मूर्ख कुछ भी कर सकते हैं.
    वैसे एक तरह से अच्छा ही है मूर्खताएं सामने आ रही हैं. उम्मीद करता हूँ इनकी यह मार्केटिंग भी इंडिया शाईन की तरह फ्लाप होगी.

    बढिया लिखा है.

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  4. बिल्कुल सही फरमा रहे हैं अवनिश भाई. निगाह में लाना ज़रूरी हो जाता है.

    शुक्रिया

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  5. हमारे एक दोस्त कहते थे की इन लोगों को इनके घर में जाकर मारो. राम क्या इनकी प्रायवेट प्रोपर्टी हैं? और वो कहते थे की प्रभाष जी की तकनीक इसीलिये कारगर है. मैं कभी उनसे पूरी तरह सहमत नही हो पाया लेकिन आपका ये व्यंग्य पढ़कर मुझे वो बात याद आ गई. व्यंग्य में ही सही, आपने वही तकनीक अपनाई है. मज़ा आया!

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  6. क्या कहे मिहिर भाई. ऐसे कहोगे तो फिर कोई ग़लती हो जाएगी बन्दे से. काहे कि अभी तो तुम्हारे प्रदेश में मैया अन्नपूर्णा की आरती और जागरण का किस्सा चल ही रहा है. और वो उस दिन मुम्बई में लालबाग के बादशाह के यहां मिले धन-दौलत की गिनती पता नहीं पूरी हो पायी या नहीं, मालूम ही नहीं है. पता ही नहीं चला कितना माल निकला वहां. बंदे को बहुत धक्का लगा है, गहरी ठेस लगी है. उसके भगवान पर इतने चढ़ावे चढ़े और भगवान को उसका वाजिब शेयर भी नहीं मिला. माटी के बनाए गए थे, माटी में ही मिला दिया सब पानी के रस्ते.

    चलो, ऐसे ही आया करो. हफ़्तावार के हवाले

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