उन दिनों मैं उत्तर बिहार के पूर्णियां शहर में एक आश्रमनुमा स्कूल में पढ़ता था, जो उस स्कूल के तत्कालीन प्रधानाध्यापक सच्चिदा बाबू के स्कूल के नाम से जाना जाता था. सच्चिदा बाबू ने अपनी सेवानिवृति के बाद अपने ही अहाते में कुछ कमरे बनवाकर उसे स्कूल सा शक्ल दे दिया था और उनके परिचितों और शिष्यों के बच्चे वहां ज्ञानार्जन करते थे. ज़्यादातर बच्चे रहते भी वहीं थे. यानी हॉस्टल में.
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शायद छठ की छुट्टी से लौटे थे धमदाहा से. मेरी फुआ का कामत था वहां. हॉस्टल आने पर पता चला कि इंदिराजी को उनके अंगरक्षकों ने गोली मार दी. हॉस्टल में सन्नाटा पसरा था. हेडमास्टर साहब सच्चिदा बाबू बार-बार गमछा से आंखे पोछते रहते थे. हमारी पढ़ाई-लिखाई भी बाधित हो गयी थी. पता नहीं अचानक कहां से पंजाबियों (सरदारों) पर आफत आ पड़ी. फारबिसगंज मोड़ से कचहरी के रास्ते में एक 'पंजाब टेंट हाउस' था, रातोंरात उसने बोर्ड पर 'भारत टेंट हाउस' लिखवा लिया. हमारे स्कूल के क़रीब ही तत्कालीन पूर्णिया शहर के गिने-चुने खू़बसूरत घरों में से एक सरदार मंगल सिंह के घर पर ताबड़तोड़ बमबारी कर दी थी किसी ने. सरदार साहब के परिवार की औरतें बदहवास रोती जा रही थीं. अच्छी तरह याद है तब तमाम ग़ैरसरदार न केवल तमाशा देख रहे थे बल्कि सरदारों के खिलाफ़ अफ़वाहों की खेती कर रहे थे. रोज़ नए-नए अफ़वाह! बचपन के आंकलन के मुताबिक तब शहर के ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में सरदार ही सबसे आगे थे. शायद वो दिलवाड़ा सिंह थे 'ऐतियाना' वाले, और एक और सिख बस व्यवसायी थे. हमारे स्कूल में ही किसी बच्चे ने कहा था कि दिलवाड़ा सिंह ने अपने अहाते में 50 आतंकवादियों को छुपा रखा है, उनके पास रडार-वडार सब कुछ है. वे लोग डीएम और एसपी को उड़ाने वाले हैं ... महीनों ऐसी अफ़वाहें उड़ती रही थीं.
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एक-आध बातें जो ज़हन में आ रही हैं वो ये कि तब कांग्रेस के लोग इस क़दर भावुक हो गए थे कि वे सही-ग़लत का निर्णय न कर सके. आम लोगों में इंदिरा गांधी की हत्या को लेकर रोष था जिसका नाजायज फायदा दंगाइयों ने उठाया. हिन्दु कट्टरपंथियों ने कांग्रेस के कुछ लफुओं को आगे करके अपने मन माफिक काम किया जिसका प्रमाण तत्काल बाद वाले चुनाव में कांग्रेस का समर्थन करके उन्होंने दिया. तब के कई कांग्रेसी आज संघ के विभिन्न मंचों और संगठनों के मार्फ़त अपना काम कर रहे हैं. कुछेक विधायक, सांसद और मंत्री भी बनने में कामयाब रहे. मेरे ख़याल से पूर्णिया की तत्कालीन सांसद माधुरी सिंहा के सुपुत्र पप्पू सिंह ने भी उत्तरार्द्ध में शायद ऐसा ही कुछ किया.
अपनी बात समेटते हुए मैं बस यही कहना चाहूंगा कि दंगाइयों का एक तबक़ा चुनाव से बाहर कर दिया जाए और दूसरा प्रधानमंत्री बनने और बनवाने के लिए अखाड़े में ताल ठोकता रहे. मेरे खयाल से नेचुरल जस्टिस इसे तो नहीं ही कहा जा सकता. इ कौन-सी डिमोक्रेसी है सरजी.
आप के ही अंदाज में कहूं तो- इहे है इंडियन डेमोक्रेसी। पूरे पोस्ट को एक घोंट में पीया हूं, आपने 84 के बहाने आंखों में पूर्णिया को जीवंत कर दिया। खासकर पंजाब-भारत टेंट हाउस वाली बात। मेरा मानना है कि आम लोगों में इंदिरा गांधी की हत्या को लेकर रोष था जिसका नाजायज फायदा दंगाइयों ने उठाया और जो हुआ उसकी राजनीति आजतक और शायद कबतक जारी रहेगी, कहना मुश्किल है।
ReplyDeleteऔर हां, पूर्णिया का सांसद पप्पू सिंह भी रातों-रात हाथ से कमल हो गया। दरअसल बात इ है कि वह अटल प्रवाह में कमल के बैनर तले संसद पहुंचा था। शायद इस बार भी पहुंच जाए, क्योंकि पूर्णिया में पप्पू यादव भी पहुंच गया है तो वोट का काटम-काट तो होगा ही और जाति की लेब्रोटरी में फिर पप्पू जीत जाएगा।
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ReplyDeleteबहुत सटीक अंदाज में सुनाया अपना संस्मरण भाई और सच्चे कहें तो इहे डिमाक्रेसी है-गिरीन्द्र की हाँ में सुर मिलाते. :)
ReplyDelete"एक-आध बातें जो ज़हन में आ रही हैं वो ये कि तब कांग्रेस के लोग इस क़दर भावुक हो गए थे कि वे सही-ग़लत का निर्णय न कर सके. आम लोगों में इंदिरा गांधी की हत्या को लेकर रोष था जिसका नाजायज फायदा दंगाइयों ने उठाया. हिन्दु कट्टरपंथियों ने कांग्रेस के कुछ लफुओं को आगे करके अपने मन माफिक काम किया"
ReplyDeleteहैरत होती है, कोई शख्स एसा भी लिख सकता है!
आपके ऊपर हंसा जाय
आपकी नादानी पर रहम खाया जाय
या आपको इग्नोर किया जाय
किसी जमाने में बिहार में दुनियां के सबसे बड़े गणराज्य थे आज समझ सकता हूं कि वे कैसे मिट गये!
हे प्रभु, सराय और सफर के विदेशी धन के चक्कर में इस गणराज्य को हानि मत पहुंचाओ
हे सखा, आपके नाम पर क्लिक करने से निम्नलिखित टेक्स्ट वाला पन्ना खुल रहा है.
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अब आप ही बताइए कि गणराज्य छद्म धारण करने से जीवित होगा या खुलकर अपनी राय करने से. आप हम पर रहम, तरस, दया में से कुछ खाइए या न खाइए, कम से कम जो खाइए वो इमानदारी से खाइए. आपका और गणराज्य का सेहत अच्छा रहेगा.
भले विचारों के लिए आपका शुक्रिया.
"एक-आध बातें जो ज़हन में आ रही हैं वो ये कि तब कांग्रेस के लोग इस क़दर भावुक हो गए थे कि वे सही-ग़लत का निर्णय न कर सके. आम लोगों में इंदिरा गांधी की हत्या को लेकर रोष था जिसका नाजायज फायदा दंगाइयों ने उठाया. हिन्दु कट्टरपंथियों ने कांग्रेस के कुछ लफुओं को आगे करके अपने मन माफिक काम किया", यानी कि यह दोष भी हिन्दू कट्टरपंथियों के सिर मढ़ना चाहते हैं आप? वाकई तब तो आप कांग्रेसियों को ठीक से नहीं जानते… या तो आप फ़ुल्टू कांग्रेसी हैं या फ़िर नादान हैं जो कांग्रेसियों की फ़ितरत नहीं जानते… थोड़ा इतिहास में पीछे जाइये, गोडसे के कारण महाराष्ट्र के ब्राह्मणों पर कांग्रेसियों ने जो कहर बरपाया था उसे पढ़िये… तब आप उन्हें समझेंगे…
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