28.11.07

हलद्वानी यात्रा: तीसरी किस्त

धीरे चलाएं गाड़ी, झटका लगता है

गाड़ी पता नहीं कौन-सी थी. शायद लग्ज़री में गिनती होती है उसकी. पर सच कहूं तो पुराने एम्बेस्डर में पीछे बैठने में जो आनंद है वो इस लग्ज़री गाड़ी में नहीं थी. हो सकता है गाडि़यों के मेरे उथले तजुर्बे के कारण मेरे आनंद में कमी रह गयी हो. किसी ज़माने में पिताजी के पास एक महिन्द्रा जीप हुआ करती थी. याद है एक बार वे गर्मी की छुट्टियों में दीदी, माई, राजा, शंभु भैया और मुझे बिठाकर मुज़फ़्फ़रपुर ले गए थे शॉपिंग कराने. बड़ा आनंद आया था. उसके बाद तो छोटे वाहनों पर सवारी करने का मौक़ा बहुत दिनों तक नहीं मिला. दसवीं की परीक्षा के बाद दो-एक बारात में ज़रूर जीप पर लदना पड़ा. लंबे समय तक फ़ोर व्हीलर टाइप से कोई ख़ास संबंध नहीं रहा. साल भर पहले शीतल को 38 साल से दिल्ली विश्‍वविद्यालय को अपनी सेवा दे रहे पिता के सौजन्य से एक वेगन आर का स्वामित्व मिला. सम‍झिए कि बंदे का फ़ोर-व्हीलर सेंस थोड़ा-थोड़ा डेवेलप होने लगा. तो कह रहा था कि हलद्वानी ले जानी वाली गाड़ी लग्ज़री श्रेणी की होने की बावजूद उतना आनंद नहीं दे पा रही थी जितना शीतल की वेगनआर या हमारी कॉलोनी की गेट पर वाले टैक्‍सी स्टैंड की पीली और हरी पट्टी वाली काली एम्बेस्‍डर देती है. उत्तर प्रदेश में प्रवेश पर जब सिंचाई विभाग, उत्तरप्रदेश सरकार वालों की ओर से स्वागत हुआ गाजियाबाद के क़रीब तब तक दो या तीन मर्तबा टांगों को इधर-उधर कर चुका था. प्रदीपजी ने शायद मेरी स्थिति भांपते हुए कहा भी था कि सीट आरामदायक़ नहीं है. रह-रह कर पैरों और पीठ की हरकतें होती रही. देसी लहज़े में कहें तो हम कछमछाते रहे. उधर लगभग 2 घंटे से लगातार बातचीत के कारण शायद हमारे मुंह थकने लगे थे. हालांकि प्रदीपजी और रामप्रकाशजी रह-रह कर शुरू हो जाते थे. कॉलेज और कॉलेज की समस्याएं उनकी बातचीत की धूरी थी. जैसे ही वृहद दायरे से उनका संपर्क टूटता, वे आपस में जुड़ जाते. पीछे बैठी मधु और विधिजी भी आपस में बातचीत करती थीं. पर लगातार नहीं और अंदाज़ फुसफुसाहट वाला. जानने के लिए कि क्या खिचड़ी पक रही है उनके बीच, कानों को ‘परेड सावधान, दोनों के दोनों केवल पीछे सुनो’ का कमांड देना पड़ता था. मुझे यह क़बूलने में कोई गुरेज़ नहीं है कि मेरे दोनों के दोनों कान एक साथ कई दिशाओं की हरकतों को सुनते हैं या यों कहें कि कई दफ़े सूंधते है. जी के अलावा मेरे शरीर का सबसे ग़ैर-अनुशासित और उद्दंड अंग मुए ये कान ही हैं. ऐसे चतुर-सुजान हैं कि आंख को भी कई बार अपनी गतिविधि में शामिल कर लेते हैं. और जब दोनों हाइपर ऐक्टिव हो जाएं तो समझिए कि बंदा बुरा फंसने वाला है. पर हलद्वानी जाते वक़्त ऐसा कुछ नहीं हुआ. ‘कानी-कार्रवाई’ के अनुसार उनकी बातचीत का बड़ा हिस्सा पिछले दिन उनके कॉलेज-गेट के नजदीक हुआ हादसा था. हुआ ये कि कॉलेज की दो छात्राएं गेट के पास सड़क पर चल रही थीं. पीछे से एक स्कूटर सवार आया और उनके बीच से निकाल ले गया, जिससे लड़कियां दूर जाकर गिरीं. जब तक संभल पातीं उससे पहले ही पीछे से आती ब्लू लाइन ने एक को रौंद दिया. तत्काल मौत हो गयी. बी ए ऑनर्स (सोशल वर्क) फ़र्स्ट इयर की छात्रा थी. उस हादसे के बाद कॉलेज की छात्राएं उग्र हो गयीं. सड़क जाम और तमाम तरह की गतिविधियां शुरू हो गयीं. मधुजी के मुताबिक़ ‘मुझे चिंता ये हो रही थी कि बच्चे समय से अपने-अपने घर चले जाएं. क्योंकि पुलिसवाले बच्चों को ही उल्टा डांट रहे थे.’ मधुजी और विधिजी इस चक्कर में 19 नवंबर को देर शाम तक कॉलेज में रूकी रहीं. बहुत थक गयी थीं. और आज हमारे साथ चल रही थीं उत्तराखंड मुक्त विश्‍वविद्यालय के बुलावे पर ‘पत्रकारिता और जनसंचार’ का पाठ्यक्रम तय करने. तीन बजे भोर में ही उठ गयी थीं. मेरे पैरों और पीठ की हरकतें तो होती ही रहीं. रामप्रकाशजी पीछे मुड़-मुड़ कर बतियाते रहे. इस बीच पीछे-से आवाज़ आयी, ‘बोलिए, धीरे चलाएं गाड़ी. झटका लगता है.’ ये व्यथा विधिजी की थी. 110-120 किलोमीटर की रफ़्तार से जब गाड़ी चल रही हो, और वो भी हेमामालिनी की गाल पर, अचानक ओमपुरी वाली पर आते ही अनुभव तो बदल ही जाएगा. तत्काल ब्रेक लगाया गया तो झटके भी लगेंगे. एक-आध बार तो मेरी आंतें भी हिल गयी थीं. हेमामालिनी की गाल का संदर्भ स्पष्ट कर देना मुनासिब लग रहा है नहीं तो दुनिया को जो सोचना होगा वो तो सोचेगी ही, बीवी अलग से सफ़ाई मांगेगी. ग़रज ये कि मुख्‍यमंत्री बनते ही 1989-90 में लालू प्रसाद यादव ने बिहार की सड़कों को हेमामालिनी की गाल जैसी चिकनी बना देने का वायदा किया था. उनके शासन के दो-एक बरस गुज़र जाने के बाद विरोधियों ने आरोप लगाना शुरू किया कि कहां हे‍मा‍मालिनी का गाल बना रहे थे प्रदेश की सड़कों को, ओमपुरी वाला बना कर छोड़ दी. हलद्वानी के रास्ते में ज़्यादातर सड़कें ये एहसास करा रही थीं कि अगर लालूजी वादाखिलाफ़ी नहीं करते तो शायद वहां भी ऐसी सड़कें होतीं.
क्रमश:

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