9.8.08

शूटर फुस्स, अब चप्पू का भरोसा

बजरंगलाल ठाकुर एकल नौकायान के क्वार्टर फ़ाइनल में तुम पहुंचे. तुम्हें बधाई! हमारी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं ! हम चाहते हैं कि तुम सेमिफ़ाइनल और फ़ाइनल का सफ़र तय करो. उम्मीद भी है तुमसे. तुमने शूटिंग या टेनिस जैसा हाई प्रोफ़ाइल खेल के माध्यम से नहीं बल्कि नौकायान के ज़रिए ये उम्मीद जगायी है. साढे तीन बजे वाली बुलेटिन में ज़ी न्यूज़ पर समाचार वाच रही महिला नेओलंपिक में भारत के लिए थोड़ी ख़ुशी थोड़ा ग़मकहते हुए नामी-गिरामी खिलाडियों के ओलंपिक से बाहर होने की ख़बर के साथ जब कहा कि तुमने नौकायान में भारत की उम्मीद जगायी है तब पहली बार मैं तुम्हारा नाम सुना. इंतज़ार करता रहा कि तुम्हारी तस्वीर भी दिखायी जाएगी. पर तुम नहीं दिखे. बार-बार तुम्हारे प्रदर्शन का जिक्र किया समाचार वाचिका ने पर एक बार भी तुम्हारी तस्वीर नहीं दिखी. बल्कि चर्चा तुम्हारे कारनामे की हो रही थी और दिखायी जा रही थी तस्वीर उनकी जो प्रतियोगिता से बाहर हो गए हैं. इससे तो मैं यही समझ पाया कि तुम्हारी कोई फ़ाइल तस्वीर भी नहीं है चैनल के पास. बड़ी हैरानी हुई.
पर अगले ही पल ये सब सामान्य लगने लगा. बजरंग यही तो होता रह है हमारे देश में. सामान्य, पिछड़े ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वालों के साथ यही तो होता आया है. और फिर तुम्हारा खेल भी नौका की सवारी है. तुम घुड़सवारी तो कर नहीं रहे हो और ही तुम टेनिस खेल रहे हो या शूटिंग कर रहे हो. मुमकिन है कि तुमने अपने गांव के पास वाली नदी या तालाब में नाव खेने से अपने खेल-जीवन की शुरुआत की हो. तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए स्पेशल नाव तो नहीं ही बनवायी होगी जैसे आजकल के शहरी पिताओं का एक बड़ा तबक़ा अपने बच्चे के लिए शूटिंग, टेनिस, बैडमिंटन या क्रिकेट का किट ख़रीदता हैं और कोचिंग का पता ढूंढता फिरता हैं. उल्टे मुझे तो ये लगता है कि शुरुआत में जब नौकायान में तुम्हारी दिलचस्पी बढ़ रही होगी तब शायद तुम्हें बड़े-बूढे झिड़क भी देते होंगे.
तुम्हें शायद उतना उम्दा प्रशिक्षण नहीं मिला होगा जितना हमारे शूटरों या टेनिस प्लेयर्स ने लिया होगा. सुनता रहा हूं कि ओलंपिक खेलना भी बड़ी प्रतीष्ठा की बात होती है खिलाडियों के लिए. कितनी मशक्कत करनी पड़ी होगी तुम्हें इस 58 सदस्यीय भारतीय ओलंपिक दल में अपना जगह बनाने के लिए, मैं आसानी से अंदाज़ा लगा सकता हूं. दोस्त फिर से एक बार तुम्हें मुबारकबाद! अपने देश में ठेठ-देसी खेलों को उभरने ही कहां दिया जाता है. और तो और फिल्म और मीडिया भी बहुत सराकात्मक छवि नहीं बनाती दिखता है देसी खेल-खिलाडियों की. देसी तो छोड़ो, राष्ट्रीय खेल हॉकी की दुर्दशा नहीं देख रहे! हाल में बड़ी अच्छी फिल्म आयी थी. वही, जिसमें शाहरुख ख़ां कोच बने थे. देखा नहीं था टिर्की सरनेम वाली झारखंड की लड़की को कैसे दिखाया गया था, साथी खिलाडियों के बीच कैसे उसे मज़ाक का पात्र बनाया गया था. ऐसे में तुम्हारा आगे आना, ओलंपिक में मशक्कत करते देखना सचमुच बड़ा सुखद है.
दोस्त तुम शायद फ़ाइनल तक पहुंच जाओ. संभव है पदक भी मिल जाए तुम्हें. कांसे का पदक भी लेकर अगर तुम गए तो एक-आध हफ़्ते तक यह देश एक अजीब किस्म की हिस्ट्रिया का रोगी दिखने लगेगा. नेताओं और मंत्रियों की ओर से तुम्हें बधाइयां मिलेंगी, इन सफ़ेदपोशों में तुम्हारे बग़ल में खड़े होकर फ़ोटो खिंचवाने की होड़ भी लगेगी. संभव है प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तुम्हें दावत पर भी बुलाएंगे. खेल मंत्रालय में बैठा कोई ब्यूरॉक्रेट मंत्री महोदय को अगले अर्जुन पुरस्कार की सूचि के लिए तुम्हारा नाम सुझाकर उनके और क़रीब आने का एक और मौक़ा ढूंढ लेगा. पर जितनी तेज़ी से ये क्रियाएं होंगी उतनी ही तेज़ी से शायद तुम भुला भी दिए जाओगे. जो नहीं होगा और जिसका मुझे अंदेशा है वो ये कि तो कोई उद्योगपति तुम्हारे नाम लाख-दो-पांच लाख की पुरस्कार/प्रोत्साहन राशि की घोषणा करेगा, कोई रीबॉक, नाइकि, एडिडास, प्रोलाइन तुम्हें अपना ब्रैंड एम्बैसडर बनाएगा, किसी कार-निर्माण कंपनी का निदेशक/प्रबंध निदेशक (या कोई अन्य प्रतिनिधि) तुम्हारे हाथ में कार की कुंजी थमाएगा, तुम्हारे राज्य का मुख्यमंत्री तुम्हें राजधानी/जिला मुख्यालय में घर बनाने के लिए प्लॉट देने की अनुशंसा करेगा, कोई बैंक या वैसा सरकारी उपक्रम तुम्हें अपने यहां नौकरी पर रखेगा जो अभिजात खेलों से जुड़े खिलाडियों को एक-आध अंतर्राष्ट्रीय ट्रीप के लिए चुन लिए जाने भर पर उनके पीछे-पीछे नौकरी लिए भागता फिरता है, किसी अभिनेत्री के साथ तुम्हारा चक्कर चलने कीअफ़वाहतो दूर तुम्हारे पास मॉडलिंग या कमर्सियल का ऑफ़र भी नहीं आएंगा.
दोस्त ये अंदेशा आधारहीन नहीं है. गावस्कर, कपिलदेव, तेंदुलकर, विजय अमृतराज, प्रकाश पादुकोण, सानिया मिर्जा, राज्यवर्द्धन, धोनी से लेकर इशांत, पियुष, पेस, आरपी तक में बड़ी आसानी से तुम एक परंपरा देख लोगे. एक परंपरा और है जो ध्याचंद, मिल्खा, परग, पी टी उषा, कुंजरानी और पिल्लै जैसों को मिलाकर बनती है. दोस्त तुम और तुम जैसों सैकड़ों देसी खेलों से जुड़े इन दोनों परंपराओं से बाहर हैं. इतना कि स्मृति में भी नहीं रहे हैं.
यानी ऐसा कुछ नहीं होगा जिससे तुम्हारी पारिवारिक, आर्थिक या सामाजिक हैसियत में सुधार हो. फिर तु्म्ही बताओ, जब ये सब नहीं होगा तो तुम्हारे या मेरे गांव का बच्चा कैसे भागेगा नौकायान के पीछे? या तीरंदाज़ी के पीछे? पर यक़ीन मानो दोस्त, बच्चे ज़रूर भागेंगे तु्म्हारे पीछे, करेंगे तुम्हारा अनुसरण. क्योंकि ओलंपिक जैसा विश्वमंच है. और कुछ हो हो, आज भी हमारे-तुम्हारे जैसी पृष्ठभूमि वालों के लिए विश्व की मानचित्र में अपना अक्स देखना बड़ा प्यारा लगता है. आज तु्म्हारी जिस तस्वीर को देखने के लिए मैं तरस रहा हूं. कल से दुनिया देखेगी. कभी-कभी ये भी बड़ा सुखद अनुभव होता है दोस्त. बजरंग लाल ठाकुर तुम क्वार्टर फ़ाइनल से फ़ाइनल में पहुंचो, तुम पदक जीतो ये ही मेरी शुभकामना है. तु्म्हें पदक नहीं भी मिला तो निराश होना. आज ख़बर सुनने तक तुमने जो कर दिया था, सच मानो, हम तो उस ख़ुशी में ही झूमते नहीं थक रहे हैं.

अंत में अपना हाल

आज चन्द्रा (पत्नी) के मामाजी की तेरहवी थीं. शामिल होने फिरोजाबाद जाना था. सुबह साढ़े छह बजे स्टेशन के लिए मोटर साइकिल से निकला. आधे रास्ते में जाकर मोटरसाइकिल गिर गयी और मैं चोटिल हो गया. बायीं तरफ़ के लगभग सभी जोड़ों में चोट लगी है. एक राहगीर के सहारे उठा. उन्होंने ही बाइक खड़ी की और मुझे बग़ल के ट्रोमा सेंटर में जाने की सलाह दी. पर इस डर से कि अगर एक्सीडेंट का केस लेकर मैं गया तो पुलिस आएगी बीच में, मैं ट्रोमा सेंटर के बजाय घर चला गया. लहू-लुहान देखकर बीवी परेशान हो गयी. दर्द से मेरी कराह (जिसमें आंसू भी शामिल है) सुनकर बिटिया किलकारी जग गयी. छूटते ही उसने कहा, 'पापा, कल जो बैंडेड मेरे लिए लाए थे, तुम लगा लो चोट ठीक हो जाएगी.' पत्नी से फ़ोन किया शीतल को. कॉल सेंटर की नाइट ड्यूटी कर के घर पहुंचा ही था शीतल. सुनकर गया अपनी गाड़ी लेकर. ले गया मुझे ट्रोमा सेंटर. फिर सूई-दवा, ड्रेसिंग-व्रेसिंग हुई. वापस गया. जैसे-जैसे शाम हो रही है इंजेक्शन का असर कम हो रहा है. फिर से दर्द बढ रहा है. कुछ और हिस्सों में दर्द महसूस हो रहा है. पर नौकायान और बजरंग लाल ठाकुर जैसे देसी खेल-खिलाड़ी ने ओलंपिक में आस बंधाई है. जब-जब सोचता हूं बजरंग के बारे में, दर्द कम हो जाता है.


1 comment:

  1. क्या आप को ओलपिक से कोई उम्मीद है कि हम कुछ कर पायेगे। मुझे नहीं , शायद सिनिकल हूँ…:)

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