
दो दिनों में कम से कम चार बार सदन की कार्रवाई रोकनी पड़ी अध्यक्ष या पीठासीन उपाध्याक्ष को. और इसका सारा श्रेय भाजपा और उसके सहयोगियों को जाता है. हां, सरकार से हाल ही में नाता तोड़े वामपंथी भी इस हुले-हुले में पीछे नहीं रहे. और तो और कॉमरेड वासुदेव आचार्या तो अपने बाद वाले वक्ता को बोलने देने को तैयार ही नहीं दिखे. बार-बार अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी अगले वक्ता को बोलने देने का अनुरोध करते रहे लेकिन कॉमरेड ने उनकी एक न सुनी. भाजपा के तीन सांसदों ने अपना नाटक शुरू न किया होता तो शायद कॉमरेड रूकते भी नहीं.
इससे और नीचे क्या गिरेगी सदन की मर्यादा, नोटों की थैली आ गयी. जिसकी चर्चा पिछले एक हफ़्ते से हो रही थी आज सदन में साक्षात दिखा. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस विश्वास मत के पक्ष में सहयोग जुटाने के लिए कुछ-न-कुछ अतिरिक्त हुआ है जो आम तौर पर नहीं होता. यानी तरह-तरह के सुख-सत्ता, धन-पद और प्रतीष्ठा का प्रलोभन. पर इसका ये अर्थ नहीं कि इस तरह से किसी नाटक का मंचन किया जाए. भाजपा के तीन सांसदों ने जो रोल प्ले किया आज सदन में उससे भाजपा की खलनायकी खुलकर सामने आ गयी. उन्हीं सांसदों ने 4 बजे के क़रीब लोकसभा की कार्रवाई स्थगित हो जोने के बाद ख़ूब फुदक-फुदक कर ख़बरिया चैनलों को बताया कि कैसे-कैसे उन्होंने इस नाटक का मंचन किया. नाम लिया अमर सिंह, अहमद पटेल और किसी एक और नेता का. उन्होंने ये बताया कि कल से ही नेपथ्य में काम चल रहा था. आज सुबह लोकसभा का सत्र आरंभ होने से पहले नाटक की तैयारी कर ली गयी थी. मेरा प्रश्न ये है कि अगर रिश्वत लेने-देने की कार्रवाई दोपहर से पहले पूरी हो गयी थी तो चार बजे तक का इंतज़ार क्यों किया गया ? क्यों ये ड्रामा संसद में खेला गया? अरे भैया, पहली बात तो ये कि कोई आपकी जेब में जबरन पैसा ठूंस नहीं दिया और ठूंसा भी नहीं जा सकता, क्योंकि आपके मुताबिक रुपया एक करोड़ था (शुक्र है पूरा 9 करोड़ नहीं था वर्ना कम से कम ऑटो लेकर लोकसभा जाना होता). यानी आपकी मिलीभगत के बिना ये लेन-देन हो ही नहीं सकती थी. अगर मान लिया जाय कि आपको कोई स्टींग ही करना था आपको तो पुलिस हेडक्वार्टर चले जाते, लोकसभा अध्यक्ष के पास चले जाते और नहीं तो लोक सभा के बाहर मीडिया वालों और आम जनता के सामने एक-एक नोट गिनकर दिखा देते. आपने लोकसभा को कमानी और श्रीराम सेंटर बना दिया. आपको क्या लगता है कि भारत का आम जनमानस आपकी इस कार्रवाई से बड़ा खुश होगा! जिस संसद परिसर में और उसके बाहर चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा एजेंसी तैनात होती है, उस परिसर में लोकसभा में कोई नोटों से भरा बैग लेकर कैसे चला गया? क्या सांसदों को बिना जांच-पड़ताल संसद परिसर में कुछ भी ले जाने की इजाजत है. संभव है ऐसे में किसी दिन कोई बैग में आरडीएक्स भी ले जाता सकता है.
हैं कोई स्वयं साहब. उड़ीसा से आते हैं. भाजपा से संबद्ध हैं. अपने आप को सदन का सबसे तेज़-तर्रार सदस्य समझते हैं. युवा हैं. हमेशा जोश-ओ-खरोश में रहते हैं. शायद ही कोई वक्ता रहा हो जिसके बोलते समय उन्होंने अपना मुंह न खोला हो. और तो और अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी तक को उन्होंने नहीं बख़्शा. आरोप लगाया अध्यक्ष पर कि वे सदन में स्तरीय बहस होने ही नहीं देना चाहते हैं. लगता है जैसे शेष सांसद अनर्गल बकवास करने वाले हैं या कर रहे हैं. हालांकि विश्वास मत के विरोध में बोलने वालों में ज़्यादातर ने मुख्य मुद्दे से इतर ही कहा. ज़्यादातर अनर्गल.
कल कॉमरेड सलीम ने लोकसभा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर बड़ा उग्र भाषण दिया, बड़ी भावुक बातें की. पर उनकी बात में एक बार भी सिंगूर या नंदीग्राम का जिक्र नहीं आया. इस साल की शुरुआत में जिस तरह का अत्याचार बंगाल सरकार और सीपीएम ने नंदीग्राम की ग़रीब और स्वाभिमानी जनता पर किया, मेरे ख़याल से आज़ाद भारत में वैसी मिसाल कम ही मिलेगी. ख़ैर, सीपीएम सदस्य क्यों बोलते सिंगूर पर. लेकिन जगते-सोते वामपंथ को कोसते वाली भाजपा भी सिंगूर और नंदीग्राम पर मौन रही.
अंत में, लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की जितनी भी सराहना की जाए कम होगी. जिस सूझ-बूझ से उन्होंने कार्रवाई का संचालन किया वो उन जैसे व्यक्तित्व वाले लोगों से ही हो सकता है. ‘नोटों के नाटक’ वाले इस ज़माने में शायद अब ऐसे व्यक्तित्व दर्शक दीर्घा में भी नहीं मिलेंगे.
No comments:
Post a Comment