आजकल ये कुछ चलन सा बन गया है कि चूतिया, भो.... जैसी गालियों को डालने से ही इन फिल्मकारों को लगने लगा है कि तुमने कुछ कलात्मक सी फिल्म बना डाली है। मज़हर भाई केवल गालियां डालने भर से ही सीन में असर नहीं पैदा होता। उन गालियों को बोलने के लिए अच्छे अदाकारों की और अच्छी सिचुएशन की भी ज़रूरत होती है।
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