हमारी प्रगति इतनी तेज़ रफ़्तार से हुई कि हमें पता ही नहीं चला कि कब हाने अपनी जिन्दगी के ढर्रे बदल लिए!
मुन्नाजी जवाहर की बाद वाली पीढ़ी के पहले नुमाइंदा हैं उस परिवार से. बक्सर से ही आई कॉम करने के बाद पिछले तीन-चार सालों से वह अपने चाचा के काम में हाथ बंटा रहे हैं. बदले में चाचा अपनी कमाई में से कुछ उनके साथ बंटा रहे हैं. माने ले-देकर घर का माल घर में ही रहे, चाचा भतीजा ने इसका अच्छा प्रबंध कर लिया था.
अनजाने में लोगों से मिलने-मिलाने के ऐसे शॉर्ट-कट का आविष्कार हो गया कि नमस्कार, राम-राम, नमस्ते ... भी हमसे ज़्यादा गतिशील हो गए. मुंह से निकलने से पहले ही सामने वाले ने लपकना शुरू कर दिया अभिवादनों को. सम्यता ने ऐसी पलटी मारी कि दुआ-सलाम निबटारे के काबिल भी नहीं बचा. मुंह से अभिवादनों और सवालों का जवाब देने और सामने वाले के पंजे में चार उंगलियां सटाने का काम आम तौर पर जवाहर भी साथ-साथ ही कर लेते हैं. दिन भर चलते रहने वाली इन ‘ज़रूरी’ औपचारिकताओं के बीच में अन्य बातों के अलावा वे हमेशा की तरह इस बेहद ज़रूरी काम को बड़ी मुस्तैदी से निबटाते हैं, ‘बिनोदवा, कहां गया रे बिनोदवा ? हउ बहत्तर नंबर आला के पर्ची कहां रख दिया ? अरे शर्मा, पूछ न बिनोदवा से कि काहां रखा है पर्चीया? एंगई घिसीर-घिसीर के काम करवS शर्माजी त दिनवा कइसे कटी तोहार ?’
‘अरे अबहीं ले खड़े हैं आदर्श बाबू आप! का कहते हैं सर, अहमदाबाद के चार गो पाटी का माल पिछले सुक्कर को गया था ट्रांसपोर्ट से, पाटी कहती है माले नहीं पहुंचा अभी ले. जानते हैं सर अगर मलवा डिलिवर नहीं होगा नुं त इ दोकनदार सब खून चूस लेगा हमरा. देख नहीं रहे थे बहत्तर नंबर आला का अदमिया कइसे बइठा हुआ था. दसे बजे से बैठा हुआ था. इ स्साला सS को बुझाइए नहीं रहा है. लगता है आपन बाप का जमीन बेच कर भरेगा हर्जाना. घर-दुआर, खेत-पथार सब बिका जाएगा तबो हर्जाना पूरा नहीं होगा.’ लगभग एक ही सांस में बोल गए जवाहर. जवाहर के इस क़दर सूखे होठ आदर्श ने पहले कभी नहीं देखे थे और न ही ऐसी झुंझलाहट. अपने सहकर्मियों को पर्याप्त डांट-फटकार लेने के बाद जवाहर एक बार अपने चेहरे पर नॉर्मल्सी ओढते हुए आदर्श से मुखातिब हो रहे थे,
का कहते हैं सर, अहमदाबाद के चार गो पाटी का माल पिछले सुक्कर को गया था ट्रांसपोर्ट से, पाटी कहती है माले नहीं पहुंचा अभी ले. जानते हैं सर अगर मलवा डिलिवर नहीं होगा नुं त इ दोकनदार सब खून चूस लेगा हमरा. देख नहीं रहे थे बहत्तर नंबर आला का अदमिया कइसे बइठा हुआ था. दसे बजे से बैठा हुआ था. इ स्साला सS को बुझाइए नहीं रहा है. लगता है आपन बाप का जमीन बेच कर भरेगा हर्जाना.
‘चलिए छोडिए, ए धंधा में त इ सब होते रहता है, आपना सुनाइए कइसन चल रहा है आपका कितबिया का काम ?’ उन्होंने फिर से अपने सवालों का पुराना गट्ठर खोलकर आदर्श के सामने बिखेर दिया था, ‘आच्छा सर, अभी ले हमरा समझ में नहीं आया कि आप लोगों का जीवनी चरित पूछते काहे घूम रहे हैं ? केतना आदमी का जीवनी चरित लेना है आपको ? आप मेरा जीवनी चरित पूछ रहे हैं, आ कह रहे हैं कि आउर आदमी से बतियाना है. मैं त सच बताउं आदर्श बाबू, दू महीन्ना हो गया लेकिन अभी ले आपको ठीक से नहीं बूझ पाया हूं कि आप करना का चाहते हैं.’
अनगिनत सवाल आदर्श के सामने बिखरे पड़े थे. तय नहीं कर पा रहा था कि इन सवालों के साथ वह क्या करे. इस बीच आम तौर पर कंधे पर लटकने वाले झोले को उतारकर उसने अपनी गोद में रख लिया था. उसकी उंगलियां उसके गंजे सिर में कुछ तलाश करने लगी थीं, शायद जवाहर के सवालों के जवाब ढूंढने या उनसे बचने का नुस्खा. तभी ‘हइयो नगवा राख ल हो रामकुमार’ सुनते ही उनकी उंगलियां फ़्रीज हो गयीं. सलाह मुन्नाजी ने दी थी. मुन्नाजी जवाहर की बाद वाली पीढ़ी के पहले नुमाइंदा हैं उस परिवार से. बक्सर से ही आई कॉम करने के बाद पिछले तीन-चार सालों से वह अपने चाचा के काम में हाथ बंटा रहे हैं. बदले में चाचा अपनी कमाई में से कुछ उनके साथ बंटा रहे हैं. माने ले-देकर घर का माल घर में ही रहे, चाचा भतीजा ने इसका अच्छा प्रबंध कर लिया था. ऐसी मिसाल और इस प्रबंधकीय ज़माने में हज़ारों में एक भी मुश्किल से ही मिलती है. अरे ये क्या! रामकुमार ने खैनी थूका और पसीना पोछकर गमछा सरियाते हुए कहा, ‘हं, तुमको नहीं न खींचना है ठेला. तुम त इ सोचवे करोगो कि एक ठेला का माल और लदा जाए रमकुमरवा के गाड़ी पर. साले ख़ुद खींचना होता तब न गांड़ फटता. अभी तो इहे सोच रहा होगा तुम कि गदहा पर जेतना लादना है लाद दो ...’ रामकुमार के वक्तव्य, तेवर और उसकी गति से ऐसा लग रहा था कि वह एफ़एम नाइंटी एट प्वाइंट थ्री की तरह नॉन स्टॉप चलेगा. वो तो शुक्र मानिए मुन्नाजी का कि उन्होंने नॉन स्टॉप में से नॉन निकाल लिया. पर क़ायदे से सोचा जाए तो मुन्नाजी ने रामकुमार से उस बचे नग को लादने की बात कह कर कोई गुनाह नहीं किया था, क्योंकि अन्य मंडियों की तरह इस इलेक्ट्रॉनिक मार्केट में भी माल ढुलाई का यही तरीक़ा प्रचलित है, जो अत्यंत प्राचीन है.
full form mein batting kar rahe hain sir in dino...bahut khub
ReplyDeleteभैया बड़ी इच्छा थी कि मैं भी कुछ ऐसी लिखाई-पढाई करूं जिसे साहित्य माना जाता है. कोशिश तो रहेगी कि कुछ किया जाए.
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